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कानून और न्यायभारत

‘सहमति से सेक्स की उम्र’ कम करने की क्यों दी जा रही दलील

निधि सुरेश
३० दिसम्बर २०२२

भारत में 18 साल से कम उम्र के किसी व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाना ‘बलात्कार’ माना जाता है. अब कई उच्च अदालतें अब इस नीति में बदलाव करने की मांग कर रही हैं. न्यायाधीशों में देश के मुख्य न्यायाधीश भी हैं. आखिर क्यों?

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Indien | Junges Paar
तस्वीर: Yogesh S. More/IMAGO

भारतीय अदालतों ने सरकार से यह आग्रह किया है कि वे सहमति से यौन संबंध बनाने की उम्र से जुड़े कानून पर फिर से विचार करें और इसे 18 साल से घटाकर 16 साल कर दें. नवंबर महीने में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने भारत के विधि आयोग से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की. इस आयोग का गठन सरकार द्वारा किया गया है, जिसमें शामिल विशेषज्ञ मौजूदा कानूनों में सुधार करने को लेकर सरकार को सलाह देते हैं.

इसके बाद, 10 दिसंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने सहमति से यौन संबंध बनाने की उम्र से जुड़ी ‘बढ़ती चिंता' पर विचार करने के लिए संसद से अपील की. उन्होंने कहा, "न्यायाधीश के तौर पर, मैंने देखा है कि इस तरह के मामलों में फैसला लेना काफी चुनौती भरा होता है.” हालांकि, न्यायपालिका की तरफ से की गई कई अपीलों के बावजूद, भारत सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह कानून में बदलाव पर विचार नहीं करेगी. पिछले सप्ताह, महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि इस मामले पर फिर से चर्चा करने का ‘सवाल ही नहीं उठता'.

भारत की न्यायपालिका क्यों कर रही अपील?

वर्ष 2017 में, कर्नाटक में 17 साल की एक लड़की अपने घरवालों की इच्छा के विपरीत अपने प्रेमी के साथ रहने चली गई. इससे नाराज लड़की के घरवालों ने लड़के के ऊपर बलात्कार की शिकायत दर्ज करा दी. जब लड़की 18 साल की हुई, तो उसने आरोपी से शादी कर ली. अब उन दोनों के दो बच्चे भी हैं. इस मामले की सुनवाई करते हुए निचली अदालत ने लड़के को बलात्कार के आरोप से बरी कर दिया था, लेकिन लड़की के परिजनों ने इस फैसले के खिलाफ कर्नाटक उच्च न्यायालय में अपील की. नवंबर 2022 में, उच्च न्यायालय में अपील पर सुनवाई हुई.

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यहां दो न्यायाधीशों की पीठ ने पाया कि अदालतों में "16 साल से अधिक उम्र की नाबालिग लड़कियों से संबंधित कई मामले सामने आए, जो प्यार में पड़ गईं और इस बीच लड़के के साथ यौन संबंध बनाए.” इसके बाद, न्यायाधीशों ने कहा कि "16 साल और उससे अधिक उम्र की लड़की की सहमति पर भी विचार करना होगा.”

इसके अलावा, अदालत ने यह भी बताया कि पॉक्सो यानी प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) के तहत दर्ज होने वाले मुकदमों की संख्या बढ़ती जा रही है. इस अधिनियम के तहत, 18 वर्ष से कम उम्र के किशोरों के बीच सहमति से बने यौन संबंध को भी अपराध माना जाता है.

क्या है पॉक्सो एक्ट?

दिल्ली में 2012 में हुए निर्भया गैंगरेप मामले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. इसके बाद भारत में बलात्कार से जुड़े कानून में व्यापक तौर पर बदलाव किए गए. इससे पहले, 1992 में भारत ने यूएनसीआरसी (यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन राइट्स ऑफ चाइल्ड) को अपनाकर बच्चों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्धता जताई थी, लेकिन 2012 में पॉक्सो एक्ट बनने तक बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों से निपटने के लिए कोई कठोर कानून नहीं था.

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पॉक्सो एक्ट का उद्देश्य बच्चों को हर तरह के यौन शोषण से बचाना है. इसके तहत, अपराध की श्रेणी के मुताबिक 20 साल के कारावास से लेकर फांसी की सजा तक का प्रावधान है. कानूनी तौर पर 16 साल की लड़की को ‘बच्चा' माना जाता है और 18 साल से कम उम्र के किसी व्यक्ति के साथ यौन गतिविधि को बलात्कार माना जाता है.

कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा की गई अपील में, न्यायाधीशों ने यह भी कहा कि नौवीं कक्षा से ऊपर के बच्चों को इस बारे में जानकारी देने की जरूरत है कि पॉक्सो एक्ट और भारतीय दंड संहिता के तहत कौन-कौन से काम अपराध माने जाते हैं. साथ ही, स्कूलों में बेहतर यौन शिक्षा भी दी जानी चाहिए.

‘बच्चे' की परिभाषा को संशोधित करने की दिशा में रुकावट

मद्रास उच्च न्यायालय ने 2021 में पॉक्सो एक्ट के तहत दायर बलात्कार के एक इसी तरह के मामले को खारिज करते हुए कहा कि ‘बच्चे' की परिभाषा को 18 से घटाकर 16 साल कर दिया जाना चाहिए. अदालत ने यह सिफारिश की कि, "16 साल की उम्र के बाद सहमति से बने यौन संबंध या शारीरिक संपर्क को पॉक्सो एक्ट के कठोर प्रावधानों से बाहर रखा जा सकता है.”

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हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि दोनों की उम्र में पांच साल से ज्यादा का अंतर नहीं होना चाहिए, ताकि यह पक्का किया जा सके कि कोई ज्यादा उम्र का व्यक्ति किसी कम उम्र की लड़की का गलत फायदा न उठा सके. 2019 में, बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की समिति ने सदस्य देशों से उन आपराधिक कानूनों में सुधार करने का आग्रह किया जो सहमति से यौन संबंध बनाने वाले किशोरों को अपराधी की श्रेणी में शामिल करते हैं.

पॉक्सो एक्ट के तहत मिली कई शिकायतें ‘रोमांटिक मामले'

भारत के तीन राज्यों में पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज हुए मामले को लेकर 2022 में एक अध्ययन किया गया. इसमें पाया गया कि 23.4 फीसदी मामले ‘रोमांटिक' थे, जिनमें पीड़िता और आरोपी के बीच सहमति से संबंध बने थे. इस सर्वे के दौरान, पश्चिम बंगाल, असम और महाराष्ट्र में कुल 7,064 मामलों की जांच की गई. यह सर्वे यूनिसेफ और यूएनएफपीए के साथ मिलकर एनफोल्ड प्रोएक्टिव हेल्थ ट्रस्ट नामक एनजीओ ने किया था.

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सर्वे के नतीजों में यह भी जानकारी दी गई कि इन ‘रोमांटिक मामलों' में 70.8 फीसदी मामले की शिकायत लड़की के माता-पिता ने दर्ज करायी थी. ट्रस्ट में शोध निदेशक के पद पर कार्यरत स्वागत राहा ने कहा कि कुल मिलाकर बात यह है कि युवाओं के बीच सहमति से बनने वाले यौन संबंध के अपराधीकरण के नकारात्मक पहलुओं को सामने लाना है. उन्होंने कहा, "ऐसे मामलों में दोनों किशोरों का जीवन पूरी तरह तबाह हो जाता है. लड़कों को निगरानी गृह या जेल भेज दिया जाता है और वे पूरी जिंदगी अपराधी होने की पहचान के साथ गुजारते हैं.”

राहा ने कहा कि कई मामलों में लड़कियों को भी आश्रय गृहों में रखा जाता है, क्योंकि वे माता-पिता के पास घर नहीं जाना चाहती हैं. वह आगे कहती हैं, "इसके अलावा, दोनों किशोरों की प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचता है, क्योंकि एक बार अपराधी का ठप्पा लगने के बाद पूरी जिंदगी उन्हें इसी पहचान के साथ गुजारनी पड़ती है. समाज भी उन्हें अकसर इस बात की याद दिलाता रहता है.”

न्यायपालिका का भी बढ़ जाता है काम

करीब 61 फीसदी ‘रोमांटिक मामलों' में अदालतें इस बात से सहमत थीं कि लड़की और आरोपी के बीच सहमति से संबंध बने. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की क्राइम इन इंडिया 2021 रिपोर्ट के अनुसार, पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज 92.6 फीसदी मामले अभी भी लंबित हैं. भारत की आबादी लगभग एक अरब 40 करोड़ है. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, इनमें 10 से 19 वर्ष के बच्चों की संख्या करीब 25.3 करोड़ है.

इस वजह से जब ‘रोमांटिक मामले' पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज किए जाते हैं, तो अदालतों का बोझ बढ़ाते हैं. राहा का कहना है कि इस मामले में ज्यादातर आरोपियों को बरी कर दिया जाता है. इससे पता चलता है कि हमारी कानून व्यवस्था भी मानती है कि यह कानून सामाजिक हकीकत के मुताबिक नहीं है. वह आगे कहती हैं, "कानूनी तौर पर यह स्वीकार करना होगा कि युवा लोग आपसी सहमति से यौन संबंध बनाते हैं और इसे अपराध की श्रेणी में लाना इसका हल नहीं है, भले ही सहमति की उम्र 18 साल ही क्यों न हो.”