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क्या पश्चिम और रूस के बीच मध्यस्थ बन सकता है भारत?

मुरली कृष्णन
१५ सितम्बर २०२३

अपने हितों के लिए आपस में भिड़ते देशों के बीच भारत ने खुद को एक तटस्थ पार्टनर के रूप पेश किया है. सफल जी-20 सम्मेलन ने भारत को एक भरोसेमंद पुल की भूमिका दी है.

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नई दिल्ली के जी-20 शिखर सम्मेलन में नरेंद्र मोदी और जो बाइडेन
तस्वीर: Evan Vucci/AP/picture alliance

नई दिल्ली में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन के साझा घोषणा पत्र में रूस के यूक्रेन युद्ध के बाबत बहुत तीखी भाषा इस्तेमाल नहीं की गई. असल में भारत ने अमेरिका और यूरोप को रूस के प्रति नर्म भाषा इस्तेमाल करने पर सहमत किया. नई दिल्ली को पता था कि वैश्विक कर्ज, खाद्य सुरक्षा और जलवायु संबंधी मुद्दों की फाइनेसिंग जैसे मसले गरीब देशों को परेशान कर रहे हैं. ऐसे में इन देशों की चिंताओं को ख्याल रखते हुए एक सहमति बनानी जरूरी थी.

 

दुनिया की 20 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने बिना किसी विरोध के आधिकारिक रूप से साझा घोषणा पत्र को स्वीकार किया. दिल्ली में सामने आए इस दस्तावेज में रूस को लेकर जो भाषा थी, वो 2022 के बाली डिक्लेरेशन से कहीं ज्यादा नर्म थी. बाली के घोषणा पत्र में यूक्रेन के खिलाफ क्रेमलिन के युद्ध की कड़ी निंदा की गई थी.

नई दिल्ली में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन पर रूसी विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव ने संतोष जताते हुए कहा, "हम सम्मेलन के यूक्रेनीकरण के पश्चिमी एजेंडे को टालने सके."

जी20 नई दिल्ली: घोषणापत्र में यह मुद्दे रहे सबसे खास

'पुतिन पर मोदी का अहसान'

विदेश नीति विशेषज्ञ और कूटनीतिज्ञों के मुताबिक सम्मेलन ने कूटनीतिक और आर्थिक हलकों में भारत की छवि मजबूत की है. इसके साथ ही जी-20 सम्मेलन ने यह भी दिखाया कि भारत कैसे अपने ऐतिहासिक रणनीतिक पार्टनर रूस और नए दोस्त पश्चिम के साथ संबंधों को संतुलित कर सकता है.

भारत के पूर्व  कूटनीतिक अधिकारी अजय बिसारिया ने डीडब्ल्यू से कहा, "अहम संबंधों को संतुलित करने से ज्यादा, भारत भूराजनीति में खाई को पाटने की कोशिश की कर रहा है. यह पूरब-पश्चिम और उत्तर-दक्षिण के विभाजन पर लागू होती है."

बिसारिया के मुताबिक, "यूक्रेन युद्ध के दौरान, भारत पुतिन और जेलेंस्की दोनों से बातचीत करता रहा है, और इसी दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नियमित रूप से बाइडेन और माक्रों जैसे पश्चिमी नेताओं से भी बात करते रहे. अकसर ये पक्ष, अपना संदेश दूसरे पक्ष तक पहुंचाने के लिए भारत का इस्तेमाल करते हैं."

बिसारिया को लगता है कि यूक्रेन शांति वार्ता के लिए भारत सही ठिकाना हो सकता है, "शांति वार्ता के लिए ललक अब तक बहुत कम रही है, लेकिन मुझे भरोसा है कि जब युद्ध में शामिल पक्ष मेज पर आएंगे, तब भारत अपनी सेवाएं और कूटनीति ऑफर कर मध्यस्थता या समापन में मदद कर सकता है."

किस ओर बढ़ रहे हैं भारत और सऊदी अरब के रिश्ते

फ्रांस में भारत के पूर्व राजदूत मोहन कुमार के मुताबिक रूस के नेताओं को अगर यह लगता है कि दक्षिणी दुनिया के देश, यूक्रेन युद्ध में उसके तर्क से सहमत हैं, तो यह भारी गलती है. मोहन के मुताबिक ग्लोबल साउथ के कई देश जल्द इस विवाद को खत्म होते देखना चाहते हैं.  डीडब्ल्यू से बात करते हुए मोहन कुमार ने कहा, "नई दिल्ली के जी-20 सम्मेलन ने रूस को एक जीवनदान दिया है और इसमें भागीदारी नहीं निभाना और विश्व शांति के लिए रुख नहीं बदलना, उसके लिए आत्मघाती हो सकता है. पुतिन इस मामले में मोदी के अहसानमंद होंगे और हो सकता है कि भविष्य में सही मौका आने पर भारत इसे भुनाए."

फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने भारत को कूटनीतिक दुविधा में डाल दिया था. उसके अहम रणनीतिक पार्टनर आमने सामने थे. भारत ने बार बार जोर दिया कि वह रूस और अमेरिका के साथ अपने रिश्तों को मिक्स मैच नहीं करेगा. वह दोनों को स्वतंत्र ढंग से देखता है. नई दिल्ली ने यह भी साफ किया कि वह किसी एक पक्ष को अपनी विदेश नीति को प्रभावित नहीं करने देगी.

जी20 घोषणा पत्र पर सहमति बनने से पहले क्या-क्या हुआ?

ग्लोबल साउथ के करीब आती दुनिया?

सुजान चिनॉय, मनोहर पार्रिकर इंस्टिट्यूट फॉर डिफेंस स्ट्डीज एंड एनालिसिस के महानिदेशक हैं. चिनॉय ने डीडब्ल्यू से कहा कि पश्चिम और रूस, "दोनों शायद भारत जैसे भरोसेमंद देश के जरिए अपने बड़े भूरणनीतिक हितों को संतुलित करने को प्राथमिकता देते हैं, भारत ग्लोबल साउथ की आवाज का प्रतिनिधित्व करता है."

जी-20 की अध्यक्षता के दौरान भारत ने ग्लोबल साउथ देशों को सम्मेलन में हिस्सा लेने का मौका दिया. साथ ही अफ्रीकन यूनियन को जी-20 ज्वाइन कराने में सफलता हासिल की. 

क्या भारत ने वाकई ब्रिक्स के विस्तार का समर्थन किया है

मोहन कुमार कहते हैं, "अगर दिल्ली का सम्मेलन यूक्रेन के मुद्दे पर सहमति के कारण नाकाम होता तो, एक फोरम के रूप में जी-20 भी ठीक ना किये जाने वाले नुकसान का सामना करता, वो भी ब्रिक्स जैसे ग्रुपों की तुलना में, जो फैल रहा है."

कितनी सफल रही भारत की जी20 अध्यक्षता?

'विभाजित विश्व को जोड़ने की कोशिश'

विश्लेषक कहते हैं कि भारत, ग्लोबल साउथ और पश्चिमी देशों के साथ साझेदारियां बढ़ाकर खुद को मजबूती से चीन के बढ़ते प्रभाव के सामने पेश कर रहा है. एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के सीनियर फेलो सी राजा मोहन कहते हैं, "भारत का मुख्य मतभेद आज चीन से है. रूस तो एक विरासत वाली समस्या है, जिससे संभाला जाना है. भारत का बैलेंसिंग एक्ट, एशिया में नई सुरक्षा व्यवस्था पैदा करना है. इस मामले में रूस, भारत की बहुत कम मदद कर सकता है."

जी-20 फोरम ने बीजिंग के ग्लोबल साउथ के प्रतिनिधित्व के दावे को कमजोर किया है. खास तौर पर भारत-मध्य पूर्व- यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर के एलान ने. इसे चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का प्रतिद्वंद्वी कहा जा रहा है.

सी राजा मोहन ने डीडब्ल्यू से कहा, "भारत के लिए, पश्चिम सबसे अहम कारोबारी साझेदार है, पूंजी और तकनीक का दिग्गज स्रोत, और प्रवासी भारतीयों का मुख्य ठिकाना. चीन की तरफ से बढ़ रही चुनौती से निपटने के लिए जी-7 से सहयोग भारत के लिए बहुत अहम है."

जर्मनी में भारत के राजदूत रह चुके गुरजीत सिंह के मुताबिक, भारत "विभाजित विश्व को जोड़ने की भूमिका" निभा रहा है. डीडब्ल्यू से उन्होंने कहा, "ग्लोबल साउथ और जी-7 के बीच अग्रणी वार्ताकार के रूप भारत की बढ़त दिखाई पड़ रही है. नोट करने वाली अहम बात ये भी है कि पश्चिम और रूस को जोड़ने की क्षमता यहां मौजूद है और उसे चुपचाप इस्तेमाल किया गया है, इसे सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित नहीं किया गया है."