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प्रकृति और पर्यावरणसंयुक्त राज्य अमेरिका

खेती से ग्रीन हाउस उत्सर्जन में भारत तीसरे नंबर पर

७ मई २०२४

विश्व बैंक का कहना है कि अगर दुनियाभर में खेती के तौर-तरीके बदल लिए जाएं तो ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में इस दशक के आखिर तक बड़ी कमी आ सकती है.

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भारत में खेती
कृषि से कार्बन उत्सर्जन में भारत तीसरे नंबर परतस्वीर: DW

विश्व बैंक ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि खेती के तौर-तरीकों में कमी करके ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी की जा सकती है. रिपोर्ट के मुताबिक ग्रीन हाउस गैसों के कुल उत्सर्जन तीन चौथाई के लिए विकासशील देश और उसके एक तिहाई के लिए कृषि उद्योग ही जिम्मेदार है.

इसमें से दो तिहाई उत्सर्जन मध्यम आय वाले देशों से आता है. जिन दस देशों में कृषि के कारण सबसे ज्यादा उत्सर्जन होता है उनमें पहले तीन स्थानों पर चीन, ब्राजील और भारत हैं. रिपोर्ट कहती है कि कृषि व खाद्य उद्योग सालाना लगभग 16 गीगाटन कार्बन उत्सर्जन करता है जो दुनिया की गर्मी और बिजली उत्पादन के कारण होने वाले उत्सर्जन का लगभग छठा हिस्सा है.

अमीर और गरीब देशों को सलाह

विश्व बैंक के वरिष्ठ प्रबंध निदेशक आक्सेल वान ट्रोट्सेनबुर्ग ने कहा, "अपने ग्रह की रक्षा के लिए हमें खाना पैदा करने और उपभोग करने के तरीके बदलने होंगे.”

रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि और खाद्य उद्योग के पास लगभग कार्बन उत्सर्जन में एक तिहाई की कमी करने का बड़ा मौका है. ‘सस्ते और आसानी से उपलब्ध' उपाय अपनाकर इस समस्या से निपटा जा सकता है. रिपोर्ट में सरकारों से अनुरोध किया गया है कि इस समस्या के निपटान में ज्यादा निवेश किया जाए.

नेट जीरो से बचेगी हमारी पृथ्वी...

विश्व बैंक ने मध्यम आय वाले देशों से आग्रह किया है कि ऐसे बदलाव करें जिनसे पशुपालन और भूमि के इस्तेमाल में कम कार्बन उत्सर्जन हो. एक बयान में वान ट्रोट्सेनबुर्ग ने कहा, "मध्यम आय वाले देश जंगल, पारिस्थितिकी तंत्र और खाद्य उत्पादन के तौर-तरीकों में बदलाव करने मात्र से 2030 तक कृषि और खाद्य उद्योग के उत्सर्जन को एक तिहाई तक कम कर सकते हैं.”

इस बदलाव के लिए धन जुटाने के लिए इन देशों को बर्बादी बढ़ाने वाली कृषि सब्सिडी घटाने की सलाह दी गई है. साथ ही रिपोर्ट में चौथे सबसे बड़े ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जक देश अमेरिका और अन्य धनी देशों को सलाह दी गई है कि मध्यम आय वाले देशों की मदद करे और "अधिक उत्सर्जन वाले खाद्य उत्पादों से सब्सिडी कम करें.”

गरीब देशों के लिए विश्व बैंक की सलाह है कि "ज्यादा उत्सर्जन करने वाला ऐसा ढांचा बनाने से बचें, जिसे अमीर देशों को भी अब हटा देना चाहिए.”

भारी निवेश की जरूरत

रिपोर्ट के लेखक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि कृषि और खाद्य उद्योग में उत्सर्जन कम करने के लिए जो निवेश करना होगा, उसका लाभ कीमत से कहीं ज्यादा होगा. उन्होंने लिखा है, "2050 तक कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो तक लाने के लिए और 2030 तक कृषि व खाद्य उद्योग के उत्सर्जन को आधा करने के लिए 260 अरब डॉलर की जरूरत होगी. इससे लगभग दोगुना धन हर साल कृषि सब्सिडी पर खर्च किया जाता है, जो पर्यावरण के लिए नुकसानदेह है. सब्सिडी कम करने से इस निवेश के लिए कुछ धन मिल सकता है लेकिन नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने के लिए और ज्यादा धन की जरूरत होगी.”

रिपोर्ट के मुताबिक फिलहाल कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए जो कुल निवेश किया जा रहा है, कृषि व खाद्य उद्योग में उसका हिस्सा मात्र 2.4 फीसदी है. हालांकि रिपोर्ट इस बात को लेकर भी आगाह करती है कि कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए बदलाव करते वक्त इस बात का ध्यान रखा जाए कि लोगों की नौकरियां ना जाएं और खाद्य आपूर्ति प्रभावित ना हो.

रिपोर्ट कहती है, "कुछ ना करने के खतरे कहीं बड़े हैं. इससे ना सिर्फ लोगों की नौकरियां जाएंगी बल्कि खाद्य आपूर्ति भी प्रभावित होगी. और हमारा ग्रह रहने लायक नहीं बचेगा.”

विवेक कुमार (रॉयटर्स)