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बिहार में बढ़ते बाघों से बढ़ा स्थानीय लोगों का संकट

मनीष कुमार
१४ अक्टूबर २०२२

बिहार में बाघ की बढ़ती संख्या से सरकार खुश है लेकिन स्थानीय लोगों का संकट बढ़ गया है. हाल ही में नरभक्षी बने एक बाघ को सरकार के आदेश पर मार दिया गया. संख्या बढ़ने से बाघों के लिए जगह कम पड़ने लगी है.

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बढ़ते बाघों की संख्या से बढ़ी मुसीबत
वाल्मिकीनगर अभयारण्य में बाघ को नरभक्षी घोषित कर मार दिया गयातस्वीर: Manish Kumar /DW

बिहार में वाल्मिकीनगर टाइगर रिजर्व (वीटीआर) के एक बाघ के नरभक्षी बनने के बाद सरकार के आदेश पर उसे मार दिए जाने की घटना से अभयारण्य के आसपास के इलाकों में बसे लोगों की सुरक्षा और प्रोजेक्ट टाइगर के औचित्य पर बहस शुरू हो गई है.  बीते सालों में इंसानों पर जंगली जानवरों के हमलों की संख्या बढ़ती जा रही है.

वीटीआर बिहार का एकमात्र टाइगर रिजर्व है. इसे देश का पांचवां सर्वश्रेष्ठ टाइगर रिजर्व और वन्य जीव अभयारण्य माना जाता है. यहां रॉयल बंगाल टाइगर प्रजाति के बाघ हैं. वीटीआर से निकले एक बाघ ने सिर्फ सितंबर महीने में ही छह लोगों की जान ले ली. इसके अलावा कई लोग घायल हुए हुए और कई मवेशियों की भी जान गई.

आसपास के करीब 50 से अधिक गांवों के लोग इस नरभक्षी की वजह से एक महीने से ज्यादा समय से डर के साये में जी रहे थे. इससे पहले भी बाघ ने लोगों की जान ली थी, लेकिन इतनी भयावह स्थिति पहली बार आई. आखिर इसे नरभक्षी घोषित कर मार दिया गया. बिहार में यह पहला मामला था.

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बढ़ती संख्या और कम पड़ता जंगल का क्षेत्र

विशेषज्ञों का कहना है कि अभयारण्य में टाइगर की बढ़ती संख्या ही खुद बाघ और आस पास के लोगों के लिए खथरा बन गई है. 898 वर्ग किलोमीटर में फैले वीटीआर में 2018 में इनकी संख्या 31 थी जो अब 50 से अधिक हो चुकी है. वन विभाग के अनुसार एक बाघ के लिए कम से कम 50 वर्ग किलोमीटर का जंगल क्षेत्र चाहिए. वीटीआर में इन 50 बाघों के लिए 2500 वर्ग किलोमीटर के इलाके की जरूरत है. वर्तमान में वीटीआर के एक बाघ के हिस्से में महज 18 वर्ग किलोमीटर का इलाका है.

बढ़ते बाघों की संख्या से बढ़ी मुसीबत
वाल्मिकीनगर बाघ अभयारण्य में बिहार का अकेला टाइगर प्रोजेक्ट चल रहा हैतस्वीर: Manish Kumar /DW

इस वजह से बाघ ना सिर्फ आपस में उलझ रहे हैं बल्कि अक्सर ये आस पास के रिहायशी इलाकों में घुस जा रहे हैं. वीटीआर के डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (डीएफओ) डॉ. नीरज नारायण जंगली जानवरों के हमले की वजह मनुष्यों और जानवरों के बीच के संघर्ष (कनफ्लिक्ट) को भी मानते हैं. उनके अनुसार वीटीआर के आसपास का इलाका घनी आबादी वाला है. भोजन और पानी की तलाश में जंगली जानवर आबादी वाले इलाके में चले आते हैं.

पूरे वीटीआर की ना तो घेराबंदी की जा सकती है और ना ही इतने गांवों के लोगों को दूसरी जगह शिफ्ट किया जा सकता है. वीटीआर के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. नेशामणि का कहना है कि बाघों का भटकाव केवल वीटीआर में ही नहीं है, बल्कि देश के सभी टाइगर रिजर्व में ऐसा हो रहा है. बाघों की संख्या बढ़ने से उनके लिए जगह कम होती जा रही है.

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विशेषज्ञों का कहना है कि गन्ने के खेत में बाघिन का बच्चों को जन्म देना वीटीआर के क्षेत्र में बाघों के इलाकाई संघर्ष का एक उदाहरण है. बाघ के डर से बाघिन उस क्षेत्र विशेष से बाहर निकल जाती है और अपने शावकों को बचाने के लिए गन्ने के खेत में शरण लेती है. इसी तरह संघर्ष की स्थिति में जब कोई बाघ जख्मी हो जाता है तब जंगल से निकल कर वह आबादी वाले इलाके में पहुंच जाता है और इंसान व पशुओं पर हमले करता है.

जो बाघ नरभक्षी बन गया था, वह डर की वजह से कभी जंगल में गया नहीं और उसका मूवमेंट आबादी वाले इलाके से सटे वनक्षेत्र में ही रहा. वह इन्हीं इलाकों में भोजन की तलाश में रहा. रॉयल बंगाल टाइगर के अलावा यहां नीलगाय, भालू, तेंदुआ, लकड़बग्घा, जंगली सूअर, जंगली कुत्तों, हिरणों व हाथियों के लिए भी प्राकृतिक आवास सिकुड़ता जा रहा है.

बाघों की बढ़ती संख्या से बढ़ी मुसीबत
बाघ और दूसरे जंगली जानवर अकसर गांवों में घुस जा रहे हैंतस्वीर: Manish Kumar /DW

कभी हाथी तो कभी सांप से खतरा

वीटीआर के उत्तर में नेपाल का प्रसिद्ध चितवन नेशनल पार्क है, जबकि पश्चिमी हिस्सा उत्तर प्रदेश से सटा है. लोग केवल बाघ से ही परेशान नहीं हैं, अकसर उन्हें हाथी, तेंदुओं, जंगली भालुओं, सांपों, नीलगायों व जंगली कुत्तों समेत कई जानवरों का प्रकोप झेलना पड़ता है. नेपाल के चितवन नेशनल पार्क से भी जंगली जीव-जंतु वीटीआर के आसपास के इलाके में पहुंच जाते हैं.

हाल ही में नेपाल से भटक कर सात हाथियों का झुंड वीटीआर में घुस गया. गोनौली और हरनाटांड़ वन क्षेत्र में उत्पात मचाते हुए ये हाथी दोन गांव तक पहुंच गए. इस इलाके के लोगों की धान की फसल को इन हाथियों ने तहस-नहस कर दिया. इस स्थिति में कई गांवों के लोगों की खेतीबाड़ी तो दूर, उनका घर से निकलना तक दूभर हो जाता है.

कुछ दिन पहले वाल्मीकिनगर थाना क्षेत्र के पप्पू यादव के घर में कोबरा सांप घुस आया. करीब एक घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद वनकर्मियों ने उस दस फीट लंबे सांप को पकड़ लिया. रेंजर रोबिन आनंद बताते हैं कि इस प्रजाति का कोबरा काफी विषैला होता है.

इसी तरह बगहा प्रखंड में शौच के लिए निकले सुनील मांझी पर नदी से निकल कर मगरमच्छ ने उनका एक पैर जकड़ लिया. सुनील की चीख-पुकार सुन पहुंचे गांव के लोगों ने किसी तरह उन्हें बचाया. स्थानीय निवासी रमाकांत मांझी कहते हैं, "आदमखोर बाघ भले ही मारा गया, लेकिन हमारी चिंता एक बाघ ही नहीं है. वीटीआर के सभी जानवर हिंसक हैं, सभी से बचाव जरूरी है." रमाकांत की बेटी को बाघ घर से उठाकर ले गया था.

जंगली जानवरों से इलाके की बड़ी आबादी की परेशानी को देखते हुए भारतीय थारू कल्याण महासंघ ने एक सुरक्षा समिति का गठन किया है. 

बाघ बचाओ परियोजन पर सवाल

बाघ के मारे जाने के बाद यह बहस भी शुरू हुई कि क्या यही एकमात्र विकल्प बचा था. वन्य प्राणी विशेषज्ञ आर सी मेहता कहते हैं, ‘‘जिस तरह एक योजना के तहत महज कुछ ही घंटों में बाघ को मार गिराया गया, उसी तरह उसे बेहोश कर कब्जे में करने की योजना पर क्यों नहीं काम हुआ.''

उनका यह भी कहना है कि बीते मई माह में जब बाघ ने दो लोगों की जान ले ली तो वन विभाग ने इस संबंध में योजना क्यों नहीं बनाई कि इसे नरभक्षी बनने से कैसे रोका जाए.

रिटायर्ड फॉरेस्ट ऑफिसर एस के सेन कहते हैं, ‘‘संभव हो तो वीटीआर में नये कॉरिडोर बनाने के विकल्प पर विचार किया जाना चाहिए. इससे उनका आवास की व्यवस्था हो सकेगी और वे एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में आना-जाना कर सकेंगे. साथ ही इनके जंगलों से निकलने पर भी काफी हद तक अंकुश लग सकेगा.''

प्रोजेक्ट टाइगर के तहत बाघों की संख्या बढ़ती है तो इस बढ़ी हुई स्थिति में उनके संरक्षण की कोई कारगर योजना बनानी होगी अन्यथा एक ओर जहां बेकसूर लोग उनका निवाला बनते रहेंगे, वहीं दूसरी ओर आदमखोर बनने पर बाघ भी मौत के घाट उतारे जाते रहेंगे.