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लाचार होता कार बाजार

२७ मार्च २०१३

अभी खरीदें, पैसे बाद में... भारतीय कार बाजार ऐसे ऑफर से भरे पड़े हैं, लेकिन इस साल इनकी हालत खस्ता हो रही है. पिछले 12 साल में कार बाजार अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है और गिरती अर्थव्यवस्था इसकी सबसे बड़ी वजह है.

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तस्वीर: Fabrice Coffrini/AFP/Getty Images

जर्मनी की फोक्सवैगन कार ने एक इश्तिहार दिया है, "आगे बढ़िए, खुद को चकोटी काटिए." यह विज्ञापन कंपनी के वेंटो मॉडल की बिक्री के लिए है, जो भारत में सिर्फ एक रुपये में मिल रही है. जी हां, पुरानी कार के साथ सिर्फ एक रुपया अभी दीजिए और बाकी एक साल बाद. कार की कीमत करीब 10 लाख रुपये है.

दूसरे ऑफर भी हैं. मिसाल के तौर पर बिना ब्याज के कार कर्ज या 20 फीसदी तक की बंपर छूट. ग्राहकों को हर तरह से खींचने की कोशिश हो रही है लेकिन खरीदार है कि शोरूम तक फटकता ही नहीं. एशिया के तीसरे सबसे बड़े कार बाजार में कार जमा होते जा रहे हैं और खरीदार छिटकता जा रहा है.

कार बाजार का पूर्वानुमान बताने वाली अंतरराष्ट्रीय कंपनी एलएमसी ऑटोमोटिव के भारत में मैनेजर अम्मार मास्टर का कहना है, "मंद पड़ती अर्थव्यवस्था की वजह से कार उत्पादकों को कीमतें कम करनी पड़ रही हैं और इसमें भारी छूट देनी पड़ रही है." भारतीय कार उत्पादक सोसाइटी (सियाम) के आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल फरवरी के मुकाबले भारत में कारों की बिक्री 26 फीसदी गिर गई है. साल 2000 के बाद से यह सबसे खराब प्रदर्शन है.

सियाम के उप महानिदेशक सुगतो सेन इसके लिए भारत की गिरती अर्थव्यवस्था को सीधे तौर पर जिम्मेदार मानते हैं. पिछले दशक में भारत की विकास दर कभी 10 फीसदी के आंकड़े को छूने वाली थी, जो इस साल मात्र पांच फीसदी होती दिख रही है. उनका कहना है, "अगर किसी को कार की जरूरत नहीं है, तो वे कार नहीं खरीद रहे हैं. वे इस पैसे को दूसरी जगह लगाएंगे."

Autoproduktion in der Ukraine
तस्वीर: picture-alliance/dpa

भारत में जहां कार बाजार गिर रहा है, वहीं दुनिया का सबसे बड़ा कार बाजार चीन में आगे बढ़ रहा है. दोनों देशों की संयुक्त आबादी दो अरब से ज्यादा है और दोनों तेजी से बढ़ती हुई विश्व अर्थव्यवस्थाएं मानी जाती हैं. आईएचएस ऑटोमोटिव के दीपेश राठौड़ का कहना है कि भारत से बिलकुल विपरीत चीन के कार उत्पादक मांग के अनुरूप कार उत्पादन भी नहीं कर पा रहे हैं. और यहां भारतीय उत्पादकों के पास जरूरत से ज्यादा कारें जमा हो गई हैं.

दो साल पहले 2010-11 में भारत का कार बाजार 20-30 फीसदी बढ़ा था, जिसके बाद जर्मनी की फोक्सवैगन सहित कई विदेशी कार कंपनियां भारत में भविष्य का बाजार देखने लगीं. यूरोप में पिछले पांच साल से मंदी का आलम है. इससे निपटने के लिए इन कंपनियों ने भारत में संयंत्र लगाने के लिए अरबों अरब रुपये का निवेश किया.

फोर्ड ने भारत में काफी बड़ा दांव खेला है. लेकिन उसका कहना है कि इस साल फरवरी में उसकी बिक्री 44 फीसदी गिर गई. जनरल मोटर्स की सालाना बिक्री 20 फीसदी तक नीचे चली गई, जबकि फोक्सवैगन की कारें भी आठ फीसदी कम बिकीं.

लेकिन सबसे ज्यादा असर भारतीय कंपनी टाटा को ही उठाना पड़ा है. कंपनी ने एलान किया है कि उसकी नैनो कारों की बिक्री पिछले साल 70 फीसदी कम हो गई है.

मारुति सुजुकी के चेयरमैन आरसी भार्गव का कहना है कि उन्हें आने वाले दिनों में कार बाजार में कोई चमक नहीं दिख रही है और उन्हें अंदेशा है कि अगले साल भी ऐसी ही हालत रहेगी. भारतीय कार बाजार में मारुति सुजुकी की 50 फीसदी भागीदारी है. भार्गव का कहना है, "उद्योग अच्छे दौर से नहीं गुजर रहा है. सिर्फ बेहतर अर्थव्यवस्था और लोगों के हाथ में ज्यादा पैसे आने के बाद ही स्थिति बदल सकती है."

विशेषज्ञों का मानना है कि बढ़ती महंगाई से उपभोक्ता घबरा गए हैं और उस पर से ब्याज दरें भी बढ़ती जा रही हैं. राठौड़ का कहना है, "अर्थव्यवस्था से लोगों को अच्छा अहसास नहीं हो रहा है."

भारतीय कार बाजार में सिर्फ एसयूवी थोड़ी चमक बिखेर रहे हैं. शानो शौकत की निशानी बनती जा रही चौड़ी एसयूवी कारों की बिक्री करीब 35 फीसदी बढ़ी है. फ्रांसीसी कार निर्माता रेनां की डस्टर भारत में काफी लोकप्रिय हो रही है.

हालांकि इन चिंताओं के बाद भी भारत में कार बाजार तेजी से बढ़ सकता है. सियाम के सेन इसकी वजह बताते हैं कि अब भी सिर्फ 12 फीसदी भारतीयों के पास कार है और यहां खपत की बेशुमार गुंजाइश है.

एजेए/एमजे (एएफपी)

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