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मानवाधिकारसंयुक्त राज्य अमेरिका

अमेरिका टिकटॉक पर प्रतिबंध क्यों लगाना चाहता है?

साहिबा खान
२६ अप्रैल २०२४

टिकटॉक की कामयाबी ने शायद उसे दोस्त से ज्यादा दुश्मन दिए हैं. कई देशों में प्रतिबंधित टिकटॉक के सामने अमेरिका ने बिकने या फिर प्रतिबंध झेलने का विकल्प रखा है, मगर क्यों?

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अमेरिका में सरकार को लगता है कि टिकटॉक इस्तेमाल करने वाले 17 करोड़ अमेरिकी उपभोक्ताओं का डेटा चीन सरकार के हाथ में हैं.तस्वीर: ROBIN UTRECHT/picture alliance

अमेरिका में सरकार को लगता है कि टिकटॉक  इस्तेमाल करने वाले 17 करोड़ अमेरिकी उपभोक्ताओं का डेटा चीन सरकार के हाथ में हैं, जिस से राष्ट्रीय सुरक्षा और प्राइवेसी को खतरा है. 24 अप्रैल को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने टिकटॉक पर लगाम कसने वाले एक कानून पर हस्ताक्षर किए. इसके प्रावधान के अनुसार या तो टिकटॉक के चीनी मालिक उसे किसी अमेरिकी को बेच दें या फिर अमेरिका में टिकटॉक पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया जाएगा.

टिकटॉक की मालिक चीनी कंपनी बाइटडांस  इस कानून को अदालत में चुनौती देने की तैयारी में है. बीजिंग ने इस कदम को ‘अमेरिकी सांसदों की लूट' बताते हुए कहा है कि अमेरिका हर अच्छी चीज छीनना चाहता है. जानकारों का कहना है कि अगर बाइटडांस इस कानूनी लड़ाई में हारता है, और टिकटॉक किसी अमेरिकी को बेच देता है, तो यह वाशिंगटन के सामने चीन की हार मानी जाएगी.

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24 अप्रैल को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने टिकटॉक पर लगाम कसने वाले एक कानून पर हस्ताक्षर किए.तस्वीर: Joly Victor/abaca/picture alliance

टिकटॉक को बेचने की खबरों का खंडन करते हुए बाइटडांस के मालिक ने अपने स्वामित्व वाली न्यूज ऐप टूटिआओ पर यह ऐलान किया है, कि टिकटॉक को किसी अमेरिकी को बेचने का उनका कोई इरादा नहीं है.

टिकटॉक पर प्रतिबंध लगाने वाला कानून

इस नए कानून के अनुसार बाइटडांस को अमेरिका में टिकटॉक का मालिकाना हक त्यागना होगा और उसे किसी अमेरिकी को बेचना होगा. अमेरिका ने टिकटॉक को यह सौदा पूरा करने के लिए 270 दिन दिए हैं. अगर इन दिनों में अमेरिका को लगता है कि कोई सौदा हुआ है, और जल्दी ही टिकटॉक को किसी अमेरिकी को बेच दिया जाएगा, तब वह इस मोहलत को 90 दिन और बढ़ा सकती है. हालांकि यह बहुत बाद की बात है, क्योंकि जब तक वो 270 दिन पूरे होंगे, तब तक अमेरिका में अगली सरकार बन जाएगी. अगर डॉनल्ड ट्रंप अगले प्रधानमंत्री बनते हैं, तो वो यह 90 दिनों की अतिरिक्त मोहलत देंगे या नहीं, यह कोई नहीं जानता.

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चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का अखबार ग्लोबल टाइम्स के सम्पादक हू शीजीन का कहना है कि अब यह कानून वाशिंगटन को दूसरे चीनी ऐप पर प्रतिबंध लगाने के कदम को बढ़ावा भी दे सकता है. इसके चलते चीनी ई-कॉमर्स ऐप, टेमू पर भी प्रतिबंध लगाया जा सकता है.

क्यों अमेरिका टिकटॉक पर लगाना चाहता है प्रतिबंध?

एफबीआई के निदेशक क्रिस्टोफर व्रे ने यह बात कई बार कही है कि बाईटडांस चीनी सरकार के नियंत्रण में है. अमेरिकी अधिकारी को अंदेशा है कि बाइटडांस चीनी सरकार की आदेशों पर काम करता है, तो वह उन्हें टिकटॉक पर अपने उपभोक्ताओं का डाटा भी देता होगा. इसी डाटा का उपयोग देश की जासूसी में होने का शक अधिकारियों को है. इसे लेकर वह राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति उनके मन में चिंताएं उभरती हैं. 

यह चिंता अकेले अमेरिका को नहीं है. टिकटॉक पर प्रतिबंध लगाने वाले सभी देशों की प्रमुख चिंता यही रही है कि टिकटॉक के बढ़ते उपभोक्ताओं का डाटा चीनी सरकार के पास होगा. यह डाटा अलग-अलग देशों से आता है. अमेरिका सहित कई देशों ने इस पर किसी ना कसी रूप में पहले ही प्रतिबंध लगाया हुआ है.

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इस नए कानून के अनुसार बाइटडांस को अमेरिका में टिकटॉक का मालिकाना हक त्यागना होगा और उसे किसी अमेरिकी को बेचना होगा.तस्वीर: Robin Utrecht/picture alliance

यूनाइटेड किंगडम, न्यू जीलैंड, नॉर्वे, फ्रांस और यूरोपीय संघ  के सरकारी उपकरणों में टिकटॉक के इस्तेमाल पर रोक है. भारत में टिकटॉक पूरी तरह से प्रतिबंधित है. इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, अफगानिस्तान, लातविया, डेनमार्क, कनाडा, इंडोनेशिया और नीदरलैंड्स, नेपाल, पाकिस्तान, सोमालिया ने भी टिकटॉक पर प्रतिबंध लगाए हैं. 

हालांकि टिकटॉक ने हमेशा ही अपने संचालन में चीनी सरकार की दखल के दावों को खारिज किया  है. पिछले साल कांग्रेस के समक्ष एक सुनवाई में टिकटॉक के सीईओ ने कहा था "मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि बाइटडांस ना तो चीन का एजेंट है और ना ही किसी और देश का.”

टिकटॉक का मशहूर ‘एल्गोरिदम' 

रायटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार जानकारों को उम्मीद है कि टिकटॉक को उसके एल्गोरिदम सहित बेचने की बजाय कंपनी अमेरिका में प्रतिबंध चुनेगी. टिकटॉक के बारे में यह भी कहा जाता है कि टिकटॉक जो कुछ है वो उसके ‘एल्गोरिदम' की वजह से है जिस पर कथित तौर पर किसी का नियंत्रण नहीं है. हालांकि कई देशों का मानना है कि चीन उसे नियंत्रित कर सकता है.

चीन ने 2020 में अपने निर्यात कानूनों में बदलाव किए जो उसे एल्गोरिदम और सोर्स कोड के किसी भी निर्यात पर एकछत्र अधिकार देते हैं, जिससे ऐप को बेचने के किसी भी प्रयास में जटिलता आ सकती है.

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टिकटॉक का ‘एल्गोरिदम' है उसकी जान.तस्वीर: Matthias Balk/dpa/picture alliance

जानकारों और कंपनी के पूर्व कर्मचारियों ने कहना है कि यह सिर्फ एल्गोरिदम नहीं है. वास्तव में यह छोटे वीडियो फॉर्मेट के साथ कैसे काम करता है, इस चीज ने टिकटॉक को विश्व स्तर पर इतना सफल बनाया है.

टिकटॉक पर इस समय लगभग एक अरब उपभोक्ता मौजूद हैं, फिर भी कंपनी घाटे में ही रही है. उसकी पैरेंट कंपनी बाईटडांस को उससे बहुत ही कम फायदा मिलता है. इसलिए चर्चा है कि किसी अमेरिकी को बेचने की बजाय टिकटॉक अमेरिका से रवानगी का विकल्प चुनेगा.टिकटॉक किसी को भी अपना एल्गोरिदम नहीं बेचना चाहता है. रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार अगर सौदे में एल्गोरिदम के साथ टिकटॉक की कीमत 100 अरब डॉलर है, तो उसके बगैर केवल 30 से 40 अरब डॉलर ही रह जाएगी.

क्या खास है इस एल्गोरिदम में

टिकटॉक के सीईओ शाऊ जी का कहना है कि टिकटॉक किसी ‘सोशल ग्राफ' नहीं बल्कि ‘इंटरेस्ट सिग्नल' पर काम करता है. इसका मतलब है कि आप कहां से हैं और कहां टिकटॉक इस्तेमाल कर रहे हैं इससे फर्क नहीं पड़ता. आप क्या सबसे ज्यादा देख रहे हैं, उस प्रणाली पर टिकटॉक काम करता है और आपको वैसी ही चीजें दिखाता है.

यूट्रेक्ट विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर कैटलिना गोंटा का कहना है, “प्रतिद्वंद्वियों के पास भी उसी तरह रुचि-आधारित एल्गोरिदम हैं, लेकिन टिकटॉक ने शॉर्ट वीडियो फॉर्मेट के साथ एल्गोरिदम के असर को अत्यंत प्रभावशाली बना दिया है.”

टिकटॉक बोर नहीं होने देता

रुचि-आधारित प्रणाली इतनी प्रभावशील है कि धीरे-धीरे एल्गोरिदम को इस बात का भी अंदाजा हो जाता है कि कौन सा यूजर किस समय क्या चीज देखना पसंद करेगा. मगर इससे बड़े पैमाने पर उपभोक्ताओं का डेटा इकट्ठा करने का जोखिम भी पैदा होता है और यही बात देशों को परेशान करे हुए है. मेटा के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘सोशल ग्राफ' प्रणाली पर काम करते हैं.

टिकटॉक की खास बात यह है कि रुचि के अनुसार आप कंटेंट तो देख पाते हैं, लेकिन बीच-बीच में वो आपको ऐसी वीडियो के भी सुझाव देगा जो आपकी रुचि से एकदम विपरीत है या फिर जिस विषय की जानकारी आपको बिलकुल नहीं है. इससे आप कुछ नया देख पाते हैं  और प्लेटफॉर्म पर बोरियत महसूस नहीं होती. यह परेशानी फेसबुक को झेलनी पड़ी है और अब कई उपभोक्ता मेटा के इंस्टाग्राम को भी इस कारण छोड़ रहे हैं.

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टिकटॉक बोर नहीं होने देतातस्वीर: Thomas Trutschel/photothek/picture alliance

तो टिकटॉक खरीदने के लिए कौन है तैयार?

पूर्व अमेरिकी ट्रेजरी सचिव, स्टीव मन्नुचिन ने मार्च में कहा था कि वह टिकटॉक की अमेरिकी संपत्ति खरीदने के लिए एक संघ बना रहे हैं, और इसे उन्होंने एक ‘ग्रेट बिजनेस' यानी कि बढ़िया व्यापर कहा.

यदि पिछले दावेदारों को देखा जाए, तो 2020 में माइक्रोसॉफ्ट ने ट्रंप के कहने पर टिकटॉक को खरीदने के लिए एक सौदे पर चर्चा की थी. बाइटडांस में कई अमेरिकी निवेशक हैं, जिनमें निवेश फर्म जनरल अटलांटिक, सुस्क्वेहन्ना और सिकोइया कैपिटल शामिल हैं.

हालांकि विश्लेषकों का कहना है कि सरकार ऐसे किसी सौदे की इजाजत नहीं देगी.

अमेरिकी जनता फैसले से नाराज

यदि टिकटॉक ये नहीं कर सका तो वो पूरे अमेरिका में हर ऐप स्टोर पर इसे बैन कर दिया जाएगा. अमेरिका की कुल आबादी लगभग तैंतीस करोड़ तीस लाख है. उसमें से करीब 15 करोड़ टिकटॉक पर हैं. इस कारण टिकटॉक पर प्रतिबंध लगाने से अमेरिकी जनता खासी नाराज भी है.

इनमें से कई अपना व्यापार टिकटॉक के जरिए ही करते हैं. कई फैशन ब्लॉगर और फूड ब्लॉगर भी टिकटॉक से ही अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं.

एसके/एनआर (एपी, रॉयटर्स)