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अचानक "देशभक्त" होता बांग्लादेश

२८ फ़रवरी २०१३

शरीफुल आलम ने अपने कंधे पर चार साल के बेटे को बिठा रखा है. जब वह जय बांग्ला का नारा लगाते हैं, तो उनका बेटा भी दोहराता है. दोनों के माथे पर हरे रंग की पट्टी लगी है.

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तस्वीर: AFP/Getty Images

जैसे जैसे बांग्लादेश के स्वतंत्रता के समय धोखेबाजी के आरोपों में लोगों को सजा सुनाई जा रही है, वैसे वैसे ये नारे बढ़ रहे हैं. 33 साल के आलम का कहना है, "मैं चाहता हूं कि मेरा बेटा बड़ा हो तो इस बात को याद रखे कि उसके देश के साथ क्या हुआ है और हमने अपराधियों और धोखेबाजों से कैसे निजात पाया है."

राजधानी ढाका के शाहबाग चौराहे पर प्रदर्शनकारियों की भीड़ लगी है, जबकि शहर के दूसरे हिस्सों में भी इसी तरह के प्रदर्शन हुए हैं. लोगों की मांग है कि जिन लोगों ने 1971 में बांग्लादेश मुक्ति के वक्त धोखेबाजी की, उन्हें सजा मिलनी चाहिए.

अदालत ने पांच फरवरी को कादिन मुल्ला नाम के जमाते इस्लामी नेता को आजीवन कारावास की सजा सुनाई, उसके बाद से ही वहां प्रदर्शन शुरू हुए. विपक्षी पार्टी के मुल्ला पर आरोप है कि वह हत्या और बलात्कार जैसे मामलों में शामिल थे. पूर्वी पाकिस्तान एक सशस्त्र क्रांति के बाद 1971 में अलग राष्ट्र बांग्लादेश बना. लेकिन लंबी हिंसा के बाद इस दौरान करीब 30 लाख लोग मारे गए और करीब दो लाख औरतों के साथ बलात्कार हुआ.

Proteste in Dhaka
तस्वीर: AFP/Getty Images

आलम का कहना है, "हमारे पास अब मौका है कि हम गद्दारों को सजा दें, जिन्होंने निहत्थे लोगों पर जुल्म किया." प्रधानमंत्री शेख हसीना ने 2010 में इस प्राधिकरण यानी ट्राइब्यूनल का गठन किया था. इसका उद्देश्य पाकिस्तान का साथ देने वाले लोगों को सजा देना है. आलम का कहना है, "मैं चाहता हूं कि उन सभी को फांसी दे दी जाए."

इससे पहले भी इन लोगों के खिलाफ मुकदमे की कोशिश की गई थी लेकिन बांग्लादेश के निर्माता और शेख हसीना के पिता मुजीबुर रहमान की हत्या के बाद 1975 में इसे रोक दिया गया था.

चारों ओर प्रदर्शन

स्वतंत्रता विरोधी पार्टी समझी जाने वाली जमाते इस्लामी के आठ और नेताओं के खिलाफ कानूनी कार्यवाही चल रही है. पार्टी का कहना है कि ये सारे मुकदमे राजनीति से प्रेरित हैं. पार्टी ने इसके विरोध में हड़ताल की है, पुलिस के साथ झड़पें की हैं और यहां तक कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान भी पहुंचाया है.

परेशानी यह हो गई है कि स्वतंत्रता समर्थक युवा भी सड़कों पर उतर आए हैं और दोनों गुटों के बीच टकराव की स्थिति बन रही है. उनका कहना है कि मुल्ला को बहुत हल्की सजा दी गई है. उनका कहना है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं की जाती हैं, तब तक उनका प्रदर्शन जारी रहेगा.

Proteste in Dhaka
तस्वीर: Reuters

शिक्षक, छात्र, सामाजिक कार्यकर्ता, क्रिकेटर, फुटबॉलर, वकील, सांसद, फिल्मकार, स्वतंत्रता सेनानी और कुछ राजनीतिक नेता भी इस प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे हैं. स्कूल ड्रेस में इस प्रदर्शन में शामिल होने आई 14 साल की सोनिया अख्तर का कहना है, "हम चाहते हैं कि पाकिस्तान का साथ देने वाले गद्दारों को सही सजा मिले."

सरकार कोशिश कर रही है कि वह मुल्ला के आजीवन कारावास की सजा के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील करे और यह भी कोशिश कर रही है कि इस पार्टी पर पाबंदी लगा दी जाए. मानवाधिकार संगठनों और समाजिक कार्यकर्ताओं ने सरकार के इस कदम की आलोचना की है, जिसके मुताबिक ऊपरी अदालत प्राधिकरण के फैसले को पलट सकती है और दोषियों को मौत की सजा सुना सकती है.

ढाका के एक थियेटर के निर्देशक कमालुद्दीन कबीर का कहना है कि दोषियों को सजा मिलनी ही चाहिए, ताकि हिसाब बराबर हो सके, "बांग्लादेश विरोधी तत्वों के लिए जगह नहीं है. कट्टरपंथी जमाते इस्लामी पर प्रतिबंध लगना चाहिए. इसके नेताओं को फांसी दी जानी चाहिए."

बांग्लादेश में एक नास्तिक और सरकारी नीतियों का विरोध करने वाले ब्लॉगर की हत्या कर दी गई है. इसके बाद से राजधानी में तनाव और बढ़ गया है. जमाते इस्लामी और दूसरी कट्टरपंथी पार्टियों ने शाहबाग चौराहे पर चल रहे प्रदर्शन को नास्तिक करार दिया है.

एजेए/आईबी (डीपीए)

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