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अल्जीरिया के बहाने फ्रांस को संदेश

२० जनवरी २०१३

अल्जीरिया के गैस प्लांट में सैकड़ों लोगों को बंधक बना कर अफ्रीकी महाद्वीप में इस्लामी चरमपंथियों ने फ्रांस को साफ संदेश दिया है कि वे कहीं भी हमला कर सकते हैं. फ्रांस की सेना ने माली पर हमला किया है.

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तस्वीर: picture alliance/abaca

जानकारों का मानना है कि अफ्रीकी देशों की सेनाएं इस तरह से व्यवस्थित नहीं हैं और संकट की घड़ी में वे करारा जवाब देने में अक्षम हैं. फ्रांस के हमले के बाद एक बड़ी संख्या माली से निकल कर यहां वहां बिखर गई है, जबकि छोटी सी संख्या में लड़ाके गुरिल्ला युद्ध कर रहे हैं.

सेनेगल की राजधानी डकार में एक युवा ने नमाज के बाद कहा, "इसके बाद मुसलमानों में खीझ फैल सकती है. किसी भी तरह के सैनिक हस्तक्षेप में बहुत बर्बादी होती है. आम लोग मारे जाते हैं. इससे लोगों में कट्टरवादिता की भावना भड़क सकती है."

सुरक्षा जानकारों ने फिलहाल अफ्रीका में कट्टर इस्लामी ताकतों के उदय की संभावना से इनकार किया है. हालांकि उन्हें लगता है कि नाइजीरिया में इसका संकट गहरा रहा है, जहां बोको हराम के आतंकी उधम मचा रहे हैं. उनका कहना है कि आम तौर पर यहां सूफी मुसलमानों की तादाद है, जो बहुत मिलनसार और खुले दिमाग वाले हैं. लेकिन उन्हें सही सरकार नहीं मिल पा रही है.

Mali Einsatz Geiseln Lieutenant Frederic Markala Frankreich Truppe Militär
माली में फ्रांस की सेनातस्वीर: Reuters

बदल दिया मामला

हालांकि माली संकट ने पूरे इलाके का परिदृश्य बदल दिया है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर माली की काफी अहमियत है, जहां दुनिया भर की कंपनियां तेल और खनन उद्योग में सक्रिय हैं. वहां के निर्माण उद्योग में भी काफी अंतरराष्ट्रीय कंपनियां लगी हैं.

उत्तरी माली में अल कायदा के लड़ाकों के पास काफी समय था कि वे संगठित हो सकें और नए लोगों की भर्ती कर सकें. पिछले साल सरकार ने इनसे बातचीत की कई कोशिश की, जो नाकाम हो गई और कुल मिला कर इससे चरमपंथी संगठन को फायदा ही हुआ.

चलता फिरता आतंक

अफ्रीकी देशों के सामने अब नई तरह की चुनौती आ गई है. उन्हें चलते फिरते आतंकी संगठनों से जूझना पड़ सकता है. कई संगठन सीमा पार कर एक देश से दूसरे देश में आ जा रहे हैं, जबकि छोटे छोटे गुट देश के अंदर सक्रिय हैं.

फ्रांस ने कई दिनों तक कोशिश की कि अफ्रीकी सेनाएं ही माली में सैनिक कार्रवाई करें. लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली तो उसे फ्रांसीसी बूटों को माली के रेगिस्तान पर उतारना पड़ा. इसके बाद मुस्लिम देशों में फ्रांस के प्रति गुस्सा और नफरत भड़क सकता है.

वॉशिंगटन इंस्टीट्यूट फॉर नीयर ईस्ट पॉलिसी के आरोन जेलिन का कहना है कि इंटरनेट पर माली की घटना ने सीरिया को भी पीछे छोड़ दिया है, "माली पर चर्चा चल रही है. ये लोग ऑनलाइन चीयरलीडर की तरह काम कर रहे हैं. लेकिन इसके बाद ऐसी स्थिति भी आ सकती है कि वे कीबोर्ड छोड़ कर एके 47 थाम लें."

और हमलों की आशंका

इस्लामी चरमपंथियों ने बार बार धमकी दी है कि वे पश्चिमी देशों के सहायक लोगों पर अफ्रीका में हमला कर सकते हैं. अल्जीरिया का गैस बंधक संकट पूरी तरह खत्म भी नहीं होने पाया कि इस पर हमले की जिम्मेदारी लेने वाले ग्रुप ने कह दिया कि वह विदेशियों को फायदा पहुंचाने वाले लोगों पर हमले करेगा.

सुरक्षा जानकारों का कहना है कि अगर अल्जीरिया जैसे देश में हमले हो सकते हैं, तो बाकी के अफ्रीकी देश तो बेहद कमजोर हैं. अफ्रीका में 1990 की खूनी क्रांति के बाद सुरक्षा और सेना काफी मजबूत हुई थी. सैनिक कार्रवाई में जो इस्लामी चरमपंथी मारे गए हैं, अल्जीरिया सरकार का दावा है कि उनमें मिस्र, ट्यूनीशिया, लीबिया, फ्रांस और माली के लोग शामिल हैं.

उत्तरी माली पर कब्जे के दौरान इस्लामी चरमपंथियों ने सहारा मरुस्थल के कई क्षेत्रों से लड़ाकों को भर्ती किया है. पहले अल कायदा के संगठन में इस हिस्से का ज्यादा प्रतिनिधित्व नहीं था.

Soldaten aus Togo fliegen nach Mali
माली जाने को तैयार टोगो के सैनिकतस्वीर: picture-alliance/dpa

आस पास में मुश्किल

पड़ोसी मुस्लिम देश सेनेगल सहिष्णु देश माना जाता है. लेकिन विदेश मंत्री मानक्योर एनदियाये ने चेतावनी दी है कि अल कायदा वहां भी अपनी जड़ें जमा रहा है. राष्ट्रपति माकी साल ने सभी सेनेगलवासियों से अपील की है कि बाहर से आने वाले मुसलमानों की संदिग्ध गतिविधियों के बारे में जानकारी दें, "हमें चौकस रहने की जरूरत है. अपने गांवों और शहरों में, जहां घुसपैठ हो सकती है." वह 500 जवानों को माली भेज रहे हैं.

माली के पश्चिमी पड़ोसी मुल्क मॉरिशियाना मे राजनीतिक विभाजन है. वहां उदारवादियों के साथ इस्लामी चरमपंथी भी हैं. लेकिन दोनों ही धड़ों का कहना है कि मॉरिशियाना को माली संकट से दूर रहना चाहिए. सत्ताधारी यूपीआर के उपाध्यक्ष यहया उल्द होरमा का कहना है, "हमने पहले ही आतंकवाद के खिलाफ जंग की काफी कीमत चुकाई है. हम उस संकट में शामिल नहीं होंगे."

घाना की कोफी अन्नान अंतरराष्ट्रीय शांति ट्रेनिंग सेंटर के एक्सपर्ट क्वेसी आनिंग का कहना है, "फ्रांस माली से चरमपंथियों को खदेड़ देना चाहता है. लेकिन कहां. मॉरिशियाना और नाइजर को समस्या हो सकती है. बुरकीना फासो को संकट झेलनी होगी."

लेकिन इन सबका सबसे ज्यादा असर नाइजीरिया पर पड़ सकता है. यह इलाके की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और यहां तेल का अकूत भंडार है. यहां के सुरक्षा बलों को पहले ही बोको हराम के चरमपंथियों से निपटना पड़ रहा है.

पश्चिमी अफ्रीका के ज्यादातर देशों को लगता है कि फ्रांसीसी हस्तक्षेप से उन्हें फायदा होगा, इनमें माली के लोग भी शामिल हैं. उनका कहना है कि क्षेत्रीय ताकतों ने इस मामले को नजरअंदाज कर दिया है. हालांकि दुनिया के इन गरीब देशों में लगातार लोकतंत्र कमजोर होता जा रहा है और इसकी वजह से कट्टरपंथी ताकतें मजबूत होती जा रही हैं.

एजेए/ओएसजे (रॉयटर्स)

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