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कान में कब होगा इंडिया शाइनिंग

१७ मई २०१२

एक साल में सबसे ज्यादा फिल्में बनाने वाले बॉलीवुड के नाम न तो एक भी ऑस्कर है. और न ही कान फिल्म फेस्टिवल में दिया जाने वाले कोई बड़ा सम्मान. हालांकि इस बार भारत से कुल तीन फिल्मों को प्रदर्शन के लिए चुना गया है.

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तस्वीर: Reuters

इनमें से दो फिल्में अनुराग कश्यप की हैं. जबकि तीसरी फिल्म असीम अहलूवालिया की है. अनुराग की फिल्म 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' को डायरेक्टर फोर्टनाइट के तहत दिखाया जा रहा है. उनकी दूसरी फिल्म पेडलर को 'क्रिटिक्स वीक' श्रेणी के तहत दिखाया जाएगा. अनुराग इस फिल्म के प्रोड्यूसर हैं. तीसरी फिल्म असीम अहलूवालिया की 'मिस लवली' है. इस फिल्म की कहानी 80 के दशक के मुंबई की है जिसमें सी ग्रेड की फिल्में बनाने वाले दो भाइयों की जिंदगी को दिखाया गया है.

इन तीनों फिल्मों की कहानी मुख्यधारा की फिल्मों से हटकर है. कोयला माफिया और राजनेताओं के गठजोड़, नपुंसकता और पोर्न इंडस्ट्री यानी अश्लीलता के कारोबार जैसे कम चर्चित विषयों के इर्द गिर्द घूमने वाली ये फिल्में भारत के वैकल्पिक सिनेमा का प्रतिनिधित्व करती हैं.

'गैंग्स ऑफ वासेपुर' को भारत में रिलीज करने से पहले कान में प्रदर्शित किया जा रहा है. इस फिल्म में जाने माने अभिनेता, मनोज बाजपेयी ने मुख्य भूमिका निभाई है. डॉयचे वेले ने इस बारे में मनोज बाजपेयी से बातचीत की. कान में शिरकत के लिए पहुंचे मनोज ने कहा, "बहुत बड़ा त्योहार है सिनेमा का. यहां पर जानी मानी फिल्मों को चुना जाता है और उनको ही दिखाया जाता है. ये फिल्म को इज्जत देने जैसा है."

Abhishek Bachchan und Aishwarya Rai Bachchan Bollywood Schauspieler
तस्वीर: AP

कुल 5 घंटे 20 मिनट की इस फिल्म की कहानी कोयला माफिया और राजनेताओं के गठजोड़ पर आधारित सच्ची घटना पर आधारित है. फिल्म को दो हिस्सों में बनाया गया है, पार्ट 1 और पार्ट 2. भारत में फिल्म 22 जून को रिलीज होगी.

एक अनुमान के मुताबिक हर साल बॉलीवुड में करीब एक हजार फिल्में बनती हैं लेकिन फिर भी इनको अंतर्राष्ट्रीय पहचान नहीं मिल पाती. आखिर क्यों इसके जवाब में मनोज बाजपेयी कहते हैं, "हमारे हिंदी सिनेमा की एक त्रासदी भी है कि वो सिर्फ नाच गाने से ही जाना जाता है. बाहर के देश में. इसी तरह के लोगों की पहुंच भी हो पाती है जो इस तरह की (व्यावसायिक) फिल्में बनाते हैं. इसलिए गंभीर निर्देशकों का काम बाहर के लोगों तक पहुंच नहीं पाता. अब धीरे धीर एक शुरुआत हो रही है. हमारे पास अनुराग कश्यप, दिबाकर बैनर्जी, नीरज पांडे और भी कई होनहार निर्देशक हैं. ये आगे आ रहे हैं. और इनकी भी दुनिया है. ये सिनेमा को आगे लेकर जा रहे हैं."

कान में बॉलीवुड फिल्मों को पुरस्कार भले ही नहीं मिलता है लेकिन रेड कार्पेट पर अभिनेत्रियों के चलने के चर्चे खूब होते हैं. इस बार बॉलीवुड की ओर से तीन हीरोइनें कान मे अपना जलवा बिखरेंगी. हर बार की तरह ऐश्वर्या राय का रेड कार्पेट पर चलना तय माना जा रहा है. कहा जा रहा है कि उनके साथ पूरा बच्चन परिवार भी रेड कार्पेट पर नजर आ सकता है. इसके अलावा सोनम कपूर और भारतीय मूल की अभिनेत्री फ्रीडा पिंटो भी रेड कार्पेट पर नजर आएंगी.

Anarkali Bollywood Werbung Graffitti
तस्वीर: Reuters

ऐश्वर्या 2002 से लगातार कान में शिरकत कर रही हैं. ऐश की तर्ज पर 2005 में मल्लिका शेरावत भी कान के रेड कार्पेट पर चलीं. साल 2007 में ऐश्वर्या राय अपने पति अभिषेक बच्चन के साथ कान में शामिल हुई थीं. और साल 2010 में दीपिका पादुकोण भी कान में शामिल हुईं. पिछले सीजन में रानी मुखर्जी और करण जौहर एक साथ रेड कार्पेट पर उतरे थे.

भारत और कान फिल्म फेस्टिवल का रिश्ता काफी पुराना है. 1946 में देवानंद के भाई चेतन आनंद की फिल्म 'नीचा नगर' को गोल्डन पिक्स अवॉर्ड मिला था. ये आजादी से एक साल पहले की बात है. इसके तीन दशक बाद सत्यजीत रे की 'पाथेर पांचाली' (1956) को कान का 'द बेस्ट ह्यूमन डॉक्यूमेंट' का अवार्ड मिला. 80 और 90 के दशक में ख्वाजा अहमद अब्बास की 'परदेसी', मृणाल सेन की 'एक दिन प्रतिदिन' और श्याम बेनेगल की 'निशांत' जैसी फिल्मे कान के अलग अलग वर्गों में भारत की ओर से नामांकित हुई. लेकिन पुरस्कार मिला 1988 में मीरा नायर की फिल्म 'सलाम बांबे' को. इस फिल्म को गोल्डन अवॉर्ड मिला.

वीडी/ओएसजे (एएफपी, पीटीआई)

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