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गबरू और पढा़कू बनेंगे बिहार के कैदी

२७ अक्टूबर २०१२

14 साल की सजा के बाद जब वो बाहर आया, तो एक हट्टा कट्टा और पढ़ा लिखा इंसान मालूम हुआ. ये प्रेमचंद की कोई कहानी नहीं, बिहार की जेलों में शुरु हो रहा प्रयोग है. जेलों में जिम और पुस्तकालय बनाए जा रहे हैं.

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तस्वीर: AP

बिहार सरकार के फैसले के बाद राज्य की सभी जेलों में जिम और लाइब्रेरी बनाई जा रही है. मकसद कैदियों की शारीरिक और मानसिक क्षमता बढ़ाना है. राज्य के डीजी(जेल) आनंद किशोर के मुताबिक, "बिहार की आठ सेंट्रल और 31 जिला जेलों में जिम और पुस्तकालय बनाने के लिए जेल विभाग ने पैसा जारी कर दिया है."

जिम बनाने के लिए सेंट्रल जेलों को एक लाख रुपये जारी किए गए हैं. जेल अधीक्षकों से कहा गया है कि वे अच्छे ट्रेनर का इंतजाम करें, ताकि कैदी अत्याधुनिक मशीनों को सही ढंग से इस्तेमाल कर सकें. ये काम एक महीने के भीतर पूरा करने के आदेश दिये गए हैं.

डीजी जेल के मुताबिक जेलों में जिम और लाइब्रेरी बनाने का यह भारत में पहला प्रयोग है. दरअसल इसकी मांग कैदियों ने ही की. कैदियों ने कहा कि जेल में रहते हुए वे अपनी सेहत का ख्याल नहीं रख पा रहे हैं. कम जगह होने के कारण कैदी सुबह शाम लंबी दूरी तक घूम नहीं पाते. खेलने के लिए भी पर्याप्त जगह नहीं है.

बिहार की जेलों में इस वक्त 25,000 कैदी हैं. सब कुछ योजना के मुताबिक चला तो अगले साल मार्च में सभी जेलों के कैदियों के बीच खेल कूद और क्विज जैसी प्रतियोगिताएं भी होंगी.

आनंद किशोर मानते हैं कि जिम और पुस्तकालय की वजह से कैदी खुद को व्यस्त रख सकेंगे. इससे उन्हें नकारात्मक विचारों से मुक्ति मिलेगी. पुस्तकालय में जाकर वे अखबार, किताबें और पत्रिकाएं पढ़ सकेंगे. किताबें धर्म, विज्ञान और मनोरंजन की होंगी. सरकार चाहती है कि कैदी खुद को चुस्त दुरुस्त रखें ताकि बाहर निकलने पर वे नई ऊर्जा के साथ जिदंगी की अगली पारी शुरू कर सकें.

ओएसजे/एनआर (पीटीआई)