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गरीबी का खौफ सता रहा है जर्मनों को

६ सितम्बर २०१२

आंतकवाद, प्राकृतिक आपदा और युद्ध- जर्मन जनता अब इन सब मुश्किलों से ऊपर उठ चुकी है. लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक जर्मनी के लोगों की चिंता अब उनकी आर्थिक स्थिति को लेकर है.

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तस्वीर: picture alliance/chromorange

यूरो संकट और यूरो क्षेत्र के गरीब देशों को मदद जर्मनी के लिए बोझ बन रहा है, कम से कम एक नए सर्वे में लोगों का रवैया यही रहा है. आर+वी नाम की बीमा कंपनी ने "जर्मनों का खौफ" नाम के एक जनमत सर्वेक्षण में 2,500 लोगों से कुछ सवाल किए और जवाब में पता चला कि ज्यादातर लोगों को डर है देश में बढ़ती बेरोजगारी और बिगड़ती आर्थिक स्थिति का. पिछले 20 सालों से आर+वी का इंफोसेंटर यह सर्वेक्षण करा रहा है. इंफोसेंटर की प्रमुख रीता जाकली कहती हैं, "जर्मनी के करीब तीन चौथाई लोग यानी 73 प्रतिशत को डर है कि यूरो संकट के उधारों की भरपाई उन्हें करनी होगी. और इस डर को देखते हुए बाकी सारी चिंताएं कम हो जाती हैं."

जर्मनों को खास डर खाने पीने की चीजों के बढ़ते दामों से है. पिछले साल की तरह इस साल भी 63 प्रतिशत जर्मनों को इस बात का डर था कि खाने पीने में लगातार ज्यादा पैसे खर्च करते रहना पड़ेगा. डरों की "रैंकिंग" में पिछले 20 सालों में आम जरूरतों की कीमतें बढ़ने का डर 13 बार पहले स्थान पर रहा. 55 प्रतिशत लोगों को यह भी लगता है कि देश के नेता काम के बोझ तले दबते जा रहे हैं. इसके अलावा बेरोजगारी पिछले साल के मुकाबले इस साल लोगों के मन में और बड़ा खौफ पैदा कर रही है. सर्वेक्षण में हिस्सा ले रहे 52 प्रतिशत लोगों के लिए देश के बिगड़ते आर्थिक हालात परेशानी का बड़ा मुद्दा बन गए हैं.

Symbolbild Zerbrochene Euromünze
तस्वीर: egeneralk - Fotolia

दिलचस्प बात यह है कि आर्थिक संकट के डर के बावजूद लोगों में अपनी नौकरियों को खोने का डर कम है. इस मामले में जर्मन ज्यादा तनाव लेते नहीं दिख रहे. बुढ़ापे में लाचारी, ड्रग्स या किसी गंभीर बीमारी का शिकार होना या फिर शादी और निजी संबंधों के टूटने की चिंता जर्मनों को कम ही सता रही है. आर्थिक चिंताओं से लोग इतना घिर गए हैं कि अब आंतकवाद और अफगानिस्तान जैसी लड़ाइयों में जर्मनी की हिस्सेदारी भी गरीबी के खौफ से कम लगते हैं. केवल विदेशियों से तनाव या हिंसा की स्थिति अब भी जर्मनों के दिल में डर का बड़ा कारण है.

हाइडेलबर्ग विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान पढ़ा रहे मानफ्रेड श्मिट कहते हैं कि सर्वेक्षण में पूछे गए लोगों की चिंता को समझा जा सकता है, "जर्मनी की अर्थव्यवस्था पहले से धीमी गति से बढ़ रही है. यह यूरो संकट की वजह से है जिससे कई यूरो देश जूझ रहे हैं और उधारों की वजह से भविष्य में आर्थिक विकास पर सवालिया निशान बन गया है. लोगों को डर है कि यूरोप इस उधार के नीचे दबा रहेगा और जर्मन करदाताओं के लिए टैक्स देना बहुत महंगा पडे़गा." सर्वे के मुताबिक ब्रसेल्स में नेताओं के प्रदर्शन ने भी लोगों के विश्वास को हिला दिया है. सर्वेक्षण से एक बात साफ है, पैसों की कमी या गरीबी का खौफ जहां पैदा हो जाए, वहां आतंकवाद, उसके खिलाफ युद्ध, अफगानिस्तान और कई सारी और परेशानियां छोटी पड़ जाती हैं.

एमजी/एमजे(डीपीए)

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