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गांव की प्यास बुझी, नया नाम भी मिला

२० जून २०११

भारत में एक गांव का नाम कुछ खास अंदाज में बदला है. मुजफ्फरनगर जिले के शिव नगर गांव का नाम अब स्नैपडील डॉट कॉम नगर रख दिया है. कंपनी ने अपना थोड़ा पैसा खर्च कर गांव के लोगों की प्यास बुझा दी और सरकार को सीख भी दे दी.

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तस्वीर: DW

इंटरनेट के जरिए सामान बेचने वाली वेबसाइट स्नैपडील डॉट कॉम ने उत्तर प्रदेश के शिव नगर गांव को गोद लिया. कंपनी ने गांव के लोगों को पीने का साफ पानी मुहैया कराने का वादा किया और इसे पूरा भी किया. कंपनी के सीईओ कुणाल बंसल कहते हैं, "ईमानदारी से कहूं तो हमने बहुत ही सामान्य काम किया, बहुत ज्यादा खर्चा भी नहीं आया. हमने 15 हैंडपंप लगाए, जिनसे लोगों को घर के पास ही साफ पानी मिलने लगा है. हमने कुल करीबन 5,000 डॉलर खर्च किए. सबसे अच्छी बात यह है कि अब गांव के लोगों को अगले 15-20 साल तक स्वच्छ पानी मिलता रहेगा."

कुणाल बंसल के मुताबिक गांव का नाम बदलने के पीछे भी एक खास मकसद है. नए नाम के जरिए राज्य सरकार पर एक कटाक्ष कसा गया है. बंसल मानते है कि सरकार और प्रशासन अगर चाहता तो यह काम खुद भी कर सकता था. स्नैपडील के कदम से सामाजिक कल्याण की सोच रखने वाली अन्य कंपनियों के लिए भी एक रास्ता तैयार हुआ है.

बंसल मानते है कि निजी कंपनियां भी चाहें तो भारतीय देहातों की शक्ल बदल सकती हैं, "भारत में 6,40,000 कंपनियां हैं. इनमें से कई हमसें कहीं ज्यादा बड़ी हैं. अगर ये कंपनियां अपने संसाधनों का सिर्फ 10 फीसदी भी इस्तेमाल करें तो भारत के 64,000 गांवों और करोड़ों लोगों की पानी की समस्या खत्म की जा सकती है."

इसमें कोई शक नहीं कि स्नैपडील अपने परोपकारी काम का इस्तेमाल अब लोकप्रियता बटोरने के लिए कर रही है. लेकिन सच यह भी है कि सरकारी योजनाओं और धूल फांकती फाइलों वालों भारतीय तंत्र के बीच स्नैपडील ने एक गांव की प्यास तो बुझा ही दी है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह

संपादन: उभ

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