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घुड़सवारी का फ्रांसीसी अंदाज अब विश्व धरोहर

२८ नवम्बर २०११

फ्रांसीसी अंदाज में घोड़े की सवारी अहिंसा का पाठ पढ़ाती है. यहां घोड़े और सवार के बीच सौहार्द का रिश्ता है और इसी दम पर उसने यूनेस्को के धरोहरों की सूची में अपनी जगह बना ली है. रविवार को सात नए धरोहरों का एलान हुआ.

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तस्वीर: fotolia/Guilu

इंडोनेशिया के बाली द्वीप पर यूनेस्को के राजदूतों ने सैकड़ों नामों के बीच इन नए धरोहरों का एलान किया. फ्रांस की परंपरा में घुड़सवार के लिए घोड़े और इंसान के बीच बेहतर रिश्तों की बात है. यूनेस्को ने इस नई परंपरा को अपनी धरोहरों में शामिल करते हुए लिखा है, "सवारों के लिए आम तौर पर जरूरी होता है कि वो घोड़े के साथ दोस्ताना संबंध बनाएं, आपसी भरोसा कायम करें और हल्कापन हासिल करने के लिए काम करें." धरोहरों की सूची में शामिल दूसरे नाम हैं साइप्रस की सियातिस्ता काव्य द्वंद्व. इसमें कवियों को वायलिन या सारंगी के साथ कविता पाठ करनी होती है और वो भी मौके पर ही सोच कर. इसके साथ मौन नृत्य भी होता है जो ऊर्जा से भरा, तात्कालिक और बिना संगीत का होता है. यूनेस्को की सूची में चीन की छायादार कठपुतलियां और बेल्जियम का रंगपटल भी शामिल किया गया है.

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तस्वीर: AP

इनके अलावा मेक्सिको के मारियाची संगीत को भी इसमें जगह मिली है. रविवार को मेक्सिको में इस मौके पर खूब जश्न हुआ. यहां दर्जनों बैंड हैं जो इस संगीत को जिंदा रखे हुए हैं. इन्हीं में से एक लॉस रियाल्स में वायलिन बजाने वाले लुईस मार्टिनेज कहते हैं, "हमारे पास ऐसा कुछ है जिस पर हम गर्व कर सकते हैं. मारियाची दुनिया भर में मेक्सिकन लोगों की पहचान है और यूनेस्को की धरोहर में शामिल होने से इस बात पर और तगड़ी मुहर लग गई है." यहां जालिस्को राज्य की राजधानी को मारियाची की जन्मभूमि माना जाता है. 1994 से यहां मारियाची उत्सव मनाने की शुरुआत हुई और हर साल 10 हजार संगीतकार इस उत्सव के लिए यहां जमा होते हैं. संगीतकारों में कई तो जापान जैसे दूर दराज के देशों से भी आते हैं.

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तस्वीर: picture alliance / Photoshot

यूनेस्को ने अपनी धरोहरों में अमूर्त विरासतों को शामिल किया है और मकसद है इन्हें लोगों की नजर में लाना जिससे कि लोग इनका महत्व समझें, इनके बारे में बातचीत हो, सांस्कृतिक विविधता का सम्मान हो. यूनेस्को के विश्व धरोहरों में दो तरह की सूची है, एक सूची अमूर्त चीजों की है जिनमें सांस्कृतिक परंपराएं, रीती रिवाज और कलाएं हैं. यह सूची लंबी है. दूसरी सूची वैसी विरासतों की है जो खतरे में हैं और जिन्हें संभाला जाना बेहद जरूरी है. ऐसी संस्कृतियां जिनका जिंदा रहना मानव समुदायों और देशों के लिए बेहद जरूरी है.

यूनेस्को ने यह कार्यक्रम 2008 में शुरू किया था. यही वक्त था जब अमूर्त सांस्कृतिक विरासतों की सुरक्षा का समझौता असर में आया. इससे पहले इस कार्यक्रम को मास्टरपीसेज ऑफ द ओरल एंड इंटैन्जिबल हेरिटेज ऑफ ह्यूमैनिटी के नाम से जाना जाता था और इसके तहत इस तरह की सांस्कृतिक विरासतों की पहचान की जाती थी. इसमें धरोहरों की पहचना कर संबंधित देशों की सरकार से इसकी सुरक्षा के लिए कदम उठाने को कहा जाता था. यूनेस्को की तरफ से इस काम के लिए पैसा देने की शुरुआत 2001 में हुई. यूनेस्को की तरफ से विशेषज्ञों का एक पैनल सूची में नए नामों के लिए उनकी छानबीन करता है और उसके बाद उसकी रिपोर्ट के आधार पर तय किया जाता है कि किसे शामिल करना है और किसे नहीं.

Manuel Zelaya - Wahl in Honduras
तस्वीर: dpa

पिछसे साल यूनेस्को ने धरोहरों की सूची में 47 नाम शामिल किए थे इनमें भारत का छऊ नृत्य भी था. यह नृत्य हजारों हजार साल से चला आ रहा है. इसके अलावा भारत का कुटियट्टम, संस्कृत थिएटर, वेद मंत्रों का पाठ, रामलीला, गढ़वाल का रम्मान, केरल का थिएटर मुदियेत्तु, राजस्थान का स्थानीय नाच कालबेलिया इन सब को भी जगह मिली है.

रिपोर्टः एएफपी/एन रंजन

संपादनः ए जमाल

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