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चमत्कार: इलेक्ट्रॉड्स ने लकवा भगाया

२० मई २०११

अमेरिका के न्यूरो सर्जनों ने शरीर के लकवे से जूझ रहे एक मरीज की कमर में इलेक्ट्रॉड्स लगाए. प्रयोग सफल रहा और चिकित्सा विज्ञान में पहली बार लकवे को मात देकर मरीज अपने पैरों पर उठ खड़ा हुआ. दिमाग की मदद के बिना पैर चले.

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तस्वीर: AP

अमेरिका के रॉब समर्स को 2006 में एक कार ने टक्कर मारी जिसके बाद छाती के नीचे उनके पूरे शरीर को लकवा मार गया. लेकिन पांच साल बाद अब समर्स अपने पैरों पर खड़े हो रहे हैं, वह ट्रेड मिल पर चल भी पा रहे हैं. यह कमाल न्यूरो सर्जनों के एक प्रयोग से हुआ है. इलाज से जुड़े दल ने समर्स की निचली रीढ़ की हड्डी पर इलेक्ट्रॉड्स लगाए और ऐसा करते ही चमत्कार हो गया.

सुन्न पड़ी टांगों में एकाएक जान लौटने लगी. पैरों को शरीर के सिग्नल मिलने लगे. वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने उनकी टांगों पर खास मशीनें लगाईं, जिनसे पता चला कि मरीज के पैरों में हरकत होने लगी है. डॉक्टरों की देखरेख में समर्स खड़े हुए और बोले, ''जैसे ही मैं उठा, मुझे यकीन नहीं हुआ. यह सबसे विलक्षण अनुभव है. कई लोगों को यकीन नहीं हो रहा है कि मैं लकवे का पीड़ित हूं.''

लुईसविले केंटकी यूनिवर्सिटी के स्पाइनल कॉर्ड रिसर्च सेंटर के 11 चिकित्सा विज्ञानियों ने यह प्रयोग किया. प्रोफेसर सुजान हारकेमा कहती हैं, ''यह पहली बार मिली कामयाबी है. इससे इस तरह के लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी को बेहतर करने की संभावनाओं के नए दरवाजे खुल जाते हैं. लेकिन अभी हमारे सामने लंबा रास्ता है.''

प्रयोग सफल होने से चिकित्सा जगत को एक नई रोशनी मिली है. 20 साल की उम्र में लकवे का शिकार होने के बाद समर्स ने खुद को यूनिवर्सिटी के प्रयोग के हवाले किया. 26 महीने तक उनका इलाज चला. उनके पैरों की शिथिल पर चुकी मांसपेशियों को फिर से जिंदा किया गया. फिर आई इलेक्ट्रॉड्स लगाने की बारी. रीढ़ की हड्डी में विद्युतीय आवेश से भरपूर इलेक्ट्रॉड्स लगाते ही समर्स के पैर हिलने डुलने लगे. डॉक्टरों के मुताबिक इस प्रयोग के बाद वह लगातार चार मिनट तक खड़े रह सकते हैं.

प्रयोगकर्ताओं के मुताबिक रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से में कुछ स्वतंत्र कोशिकाओं को एक समूह होता है. शरीर को संतुलित और वजन के अनुरूप स्थिर करने के लिए यह कोशिकाएं दिमाग के सिग्नलों के बिना भी पैरों की हरकतों को नियंत्रित कर सकती हैं. इन्हीं कोशिकाओं वाले हिस्से पर 16 इलेक्ट्रॉड्स लगाकर विद्युतीय आवेश बहाया गया. सर्जनों के मुताबिक घुटने, टखने, नितंब और एडी़ से जुड़ी नाड़ियों ने इस आवेश को सिग्नल की तरह लिया और समर्स खड़े होने में सक्षम हुए. इस प्रक्रिया में चार घंटे दस मिनट का वक्त लगा.

इस प्रयोग को रीढ़ की हड्डी की समस्या से जूझ रहे अन्य मरीजों के लिए वरदान माना जा रहा है. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में स्पाइनल कॉर्ड की दिक्कत की वजह से मुश्किल से चलने फिरने वाले मरीजों को इलेक्ट्रॉड्स सहारा देंगे.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह

संपादन: एस गौड़

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