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चेंपियंस लीग में कोच होंगे रोबिन दत्त

२१ मार्च २०११

बुंडेसलीगा तालिका में क्लब ऊपर नीचे आ-जा रहे हैं. सत्र की शुरुआत के सपने बिखर रहे हैं. कोच जा रहे हैं. आ भी रहे हैं - मसलन भारतीय मूल के कोच रोबिन दत्त, जो तालिका में दो नंबर की टीम लेवरकूजेन के कोच बनेंगे.

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भारतीय मूल के कोच रोबिन दत्ततस्वीर: AP

बुंडेसलीगा में बवेरिया म्यूनिख की हालत खराब है, लीग तालिका में वह चौथे स्थान पर है और जाहिर है कि इसके लिए जिम्मेदार माना जा रहा है टीम के कोच लुई फॉन गाल को. इस सत्र के अंत में उन्हें जाना पड़ेगा. बुंडेसलीगा के सबसे धनी क्लब बवेरिया म्यूनिख के कोच की नौकरी पर सबकी नजर रहती है, और लगता है कि इस सत्र में दूसरे नंबर पर रहने वाली टीम बायर लेवरकूजेन के कोच युप हाइंकेस को यह मौका मिलने वाला है. यानी अब कोचों के ताश फेंटे जाने वाले हैं.

और इसके चलते खुल गया है बुंडेसलीगा में भारतीय मूल के अकेले कोच रोबिन दत्त की किस्मत का पिटारा. वे 2007 से फ्राइबुर्ग क्लब के कोच हैं. उनके निर्देशन में क्लब दूसरी लीग से बुंडेसलीगा में आ चुका है और दो साल से वहां टिका हुआ है. बायर लेवरकूजेन के कोच युप हाइंकेस सत्र के अंत में क्लब छोड़ रहे हैं और अगले सीजन में रोबिन दत्त क्लब के कोच होंगे. यानी कोलोन में जन्मे रोबिन दत्त के लिए एक नया अध्याय शुरू हो रहा है. उनका क्लब फ्राइबुर्ग अभी तालिका में आठवें स्थान पर है, लेकिन अगले साल वे चैंपियंस लीग में खेलने वाली एक टीम की ट्रेनिंग के लिए जिम्मेदार होंगे. टीम के सबसे जाने वाले चेहरों में जर्मनी के कप्तान रह चुके मिषाएल बालाक हैं.

बेशक, बायर कंपनी की टीम लेवरकूजेन देश के परंपरासमृद्ध फुटबॉल टीमों में से नहीं, लेकिन सफल टीमों में से एक समझी जाती है. क्लब का बटुआ भरा रहता है, इसलिए अच्छे खिलाड़ी और कोच उसे हमेशा मिलते रहे हैं. ऐसे क्लब का कोच बनना 46 वर्ष के रोबिन दत्त के लिए एक नई शुरुआत है.

नई शुरुआत रोबिन को फ्राइबुर्ग में भी करनी पड़ी थी. फ्राइबुर्ग की टीम स्थानीय फुटबॉल परंपरा में रचे बसे क्लब की टीम है, उसकी संस्कृति में पैठ लगाना एक चुनौती था. साथ ही दत्त को फोल्कर फिंके का स्थान लेना पड़ा था, जो 16 सालों तक फ्राइबुर्ग के कोच रहकर बुंडेसलीगा में रिकार्ड कायम कर चुके थे. फिर 2009 में पहली बार बुंडेसलीगा के कोचों की पांत में, और अब बुंडेसलीगा क्लब लेवरकूजेन के साथ यूरोपीय प्रतियोगिता के मैदान में. आसान तो नहीं, लेकिन हर कोच का सपना जरूर है.

रिपोर्ट: उज्ज्वल भट्टाचार्य

संपादन: ए जमाल

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