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जख्मों और चुनौतियों में फंसा इराक

१४ दिसम्बर २०११

इराक में धमक के साथ घुसी अमेरिकी सेना अब शांति से टुकड़ियों में बंटते हुए वहां से बाहर निकल रही है. सद्दाम अतीत में हैं और देश बम धमाकों की चपेट में. लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति कहते हैं कि इराक का भविष्य सुनहरा है.

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तस्वीर: AP

इराक से आखिरी अमेरिकी टुकड़ी के निकलने की तैयारी के साथ राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा, "वे दिन खत्म हो चुके हैं." ओबामा ने इराक को भरोसा दिलाया कि वॉशिंगटन हमेशा अच्छे दोस्त की तरह उसके साथ खड़ा रहेगा. सोमवार को व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने इराक के प्रधानमंत्री नूरी अल मलिकी से मुलाकात की. दोनों नेताओं ने इराक युद्ध में मारे गए अमेरिकी सैनिकों को श्रद्धाजंलि दी.

2003 में इराक में घुसी अमेरिकी सेना की आखिरी टुकड़ी 17 दिसंबर को वापस लौट रही है. फिलहाल वहां सिर्फ 6,000 जवान हैं. 2007 में एक वक्त ऐसा भी आया जब इराक में 1,70,000 अमेरिकी सैनिक थे. आठ साल तक चले इराक युद्ध में 4,500 अमेरिकी जवान मारे गए, 32,000 घायल हुए. अरबों डॉलर के युद्ध ने अमेरिका में एक राजनीतिक बहस भी छेड़ दी.

जॉर्ज बुश के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति बनते ही ओबामा ने एलान किया था कि वह इराक से सेना वापस बुलाएंगे. इराकी प्रधानमंत्री के साथ मुलाकात के बाद उन्होंने इराक के भविष्य पर चर्चा की. दोनों के बीच तेल, शिक्षा, राजनीति और सुरक्षा पर चर्चा हुई. युद्ध से बिखरे इराक के लोगों को संदेश देते हुए ओबामा ने कहा, "आप अकेले खड़े नहीं रहेंगे."

मलिकी के साथ साझा प्रेस कांफ्रेंस में इराक का मनोबल बढ़ाते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा, "आने वाले वर्षों में, ऐसा अनुमान है कि इराकी अर्थव्यवस्था भारत और चीन से भी ज्यादा तेजी से बढ़ेगी. तेल उत्पादन बढ़ने के साथ इराक फिर से इलाके का अग्रणी तेल उत्पादक बनने की राह पर है."

दरअसल अमेरिका के लिए यह बहुत जरूरी है कि इराक फिर से खुशहाली के दिन देखे. अमेरिकी सेना ने 13 दिसंबर 2003 को इराक के पूर्व राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को पकड़ा गए और तीन साल बाद उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया. सद्दाम को मारने और इराक में अमेरिकी सेना के घुसने पर बहस अब भी होती है. अगर इराक एक सफल राष्ट्र नहीं बन सका तो यह बहस अमेरिका पर भी कई आरोप लगाएगी.

इराक की चुनौतियां

राजनीतिक बयान और इच्छाशक्ति के इतर इराक अब भी कई चुनौतियों से जूझ रहा है. देश के उत्तर इलाके में कुर्दों की अपनी स्वायत्त सरकार है. कुर्द इलाका ईरान और सीरिया की सीमा से सटा है. इलाका तेल संपदा से भरा हुआ है. इराक इसे अपना बताता है, जबकि कुर्द खुद को इराक से अलग मानते हैं.

देश की सुरक्षा एजेंसियां आतंरिक सुरक्षा बहाल रखने में कुछ हद तक सक्षम हैं लेकिन सीमा को सुरक्षित रखने लायक अनुभव और संख्या अभी इराक के पास नहीं है. इराकी सेना के एक शीर्ष अधिकारी के मुताबिक 2020 तक इराक अपनी जल, थल और वायु सीमा की पूरी सुरक्षा करने में सक्षम नहीं हो पाएगा.

आतंकवादी संगठन अल कायदा अब भी इराक के लिए बड़ी मुश्किल बना हुआ है. 2006 और 2007 के भारी खून खराबे के बाद सुन्नियों के हिंसक हमलों में भारी कमी आई है. अल कायदा के खिलाफ सुन्नी उग्रपंथियों और अमेरिका के बीच सहयोग शुरू हुआ. इसके बाद से ही इराक अल कायदा के निशाने पर है. हमले, अपहरण, हत्याएं और धमाके आम बात हो चले हैं. देश में दूसरे संप्रदायय और समुदाय के लोगों को निशाना बनाया जा रहा है.

इनके अलावा देश में अब तक लोकतांत्रिक ढांचा सही से खड़ा नहीं हो सका है. राजनीतिक पार्टियों के आपसी मतभेदों के चलते देश में 2010 से अब तक न तो कोई गृह मंत्री है और न ही कोई रक्षा मंत्री.

ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशल के मुताबिक इराक दुनिया का आठवां सबसे भ्रष्ट देश है. इराकियों के सुनहरे भविष्य की राह में यह एक बड़ी बाधा है.

सामाजिक चुनौतियां

आठ साल के युद्ध में करीब एक लाख लोगों को गंवाने वाले इराक की सामाजिक स्थिति बदहाल ही है. करीब 25 फीसदी जनता बेहद गरीबी में रह रही है. 2003 के बाद समाज में महिलाओं की स्थिति बेहद खराब हुई है. देश में कट्टरपंथी ताकतों का प्रभाव काफी बढ़ा है. करीब 18 लाख लोग आज भी विस्थापितों की तरह जिंदगी गुजार रहे हैं.

तेल की आंच

इसमें कोई शक नहीं कि इराक का भला तेल से ही होगा. लेकिन 2003 से अब तक इराक में तेल उद्योग को लेकर कोई कानून नहीं बना है. तेल से होने वाली आय को लेकर केंद्र सरकार और राज्यों के बीच खींचतान अब भी मची हुई है. विशेषज्ञों के मुताबिक इराक अगर तेल उद्योग के लिए सही संरचना बना दे तो एक दशक के भीतर देश में बड़े सकारात्मक बदलाव दिखने लगेंगे.

अमेरिका पर आरोप

कई इराकियों का मानना है कि अमेरिका ने इराक की जनता के बीच आपसी फूट डाली. आरोप लगाने वालों के मुताबिक पूर्व तानाशाह सद्दाम हुसैन के दौर में इराक में सांप्रदायिक बैर कम था. शियाओं की अगुवाई वाली सरकार अरब के सुन्नियों को सांप्रदायिक बैर का जिम्मेदार ठहराती है.

प्रभावित करते पड़ोसी

युद्ध के बाद अपने पैरों पर खड़े हो रहे इराक को पड़ोसियों और मित्र देशों की मदद की जरूरत है. लेकिन पड़ोसियों ने खुद इराक की नाक में दम किया हुआ है. सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल असद के खिलाफ आठ महीने से प्रदर्शन चल रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक सीरिया में अब तक 5,000 से ज्यादा प्रदर्शनकारी मारे जा चुके हैं. आशंका है कि अगर सीरिया से लोग विस्थापित होकर इराक आए तो बगदाद के लिए भारी मुश्किलें पैदा होंगी.

इराक की सरकार पर आरोप लगते हैं कि वह ईरान के शियाओं के प्रभाव में है. वॉशिंगटन का आरोप है कि ईरान इराक के दक्षिणी हिस्से में शियाओं को हिंसक चरमपंथ की ट्रेनिंग दे रहा है. तेहरान आरोपों से इनकार करता है.

पड़ोसी देश कुवैत से इराक के संबंध अब भी खराब हैं. 1990 में सद्दाम हुसैन ने तेल संपदा से भरे कुवैत पर हमला कर दिया. युद्ध में ईरान और पश्चिमी देशों ने कुवैत की मदद की और इराकी सेना को पैर पीछे खींचने पड़े. इसके बाद से ही कुवैत के साथ इराक के संबंध खराब रहे. इराक की नई सरकार का आरोप है कि कुवैत उनके तेल निर्यात में बाधा डालने के लिए समुद्री रास्ते को रोकने की कोशिश कर रहा है.

रिपोर्ट: एपी, एएफपी/ओ सिंह

संपादन: ए जमाल

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