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जर्मन सैनिकों को जूतों के लिए आठ साल का इंतजार

२९ अगस्त २०१९

जर्मन सेना बुंडेसवेयर ने 2016 में अपने सैनिकों को नए सैन्य जूते देने की योजना बनाई. लेकिन सैनिकों को इसके लिए अभी और लंबा इंतजार करना पड़ेगा.

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Deutschland Symbolbild Bundeswehr
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Seeger

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार जर्मन सैनिकों को नए सैन्य जूते पाने के लिए 2022 तक इंतजार करना होगा. वजह ये कि जहां इसका निर्माण हो रहा है, उसकी क्षमता सीमित है. सैनिकों को जरूरी जूते मुहैया कराने में नाकामी सैन्य उपकरणों में कमी के स्कैंडलों का हिस्सा है और वह नाटो के सदस्य जर्मनी की युद्ध तैयारी पर सवाल उठाता है.

बुंडेसवेयर ने 2016 के बाद से सभी मौसम में पहने जाने वाले सामान्य जूतों की जगह अपने सैनिकों को दो जोड़ी भारी सैन्य जूते और एक जोड़ी हल्के सैन्य जूते देने की योजना बनाई. बर्लिन के दैनिक टागेश्पीगेल ने संसदीय जांच में रक्षा मंत्रालय द्वारा दिए गए जवाब के आधार पर लिखा है, "यह 2020 तक पूरा होना था लेकिन अब इसकी समय सीमा 2022 के मध्य तक पहुंच गई है." रक्षा मंत्रालय के अनुसार, "सीमित मात्रा में उत्पादन की वजह से सभी सैनिकों को जूते देने का समय तय नहीं किया जा सका है."

संसदीय जांच के अनुसार एक लाख 83 हजार सैनिकों में से एक लाख 60 हजार सैनिकों को भारी सैन्य जूते की पहली जोड़ी मिल चुकी है. हालांकि, उन्हें दूसरी जोड़ी नहीं मिली है. सिर्फ 31 हजार सैनिकों को अभी तक हल्के सैन्य जूते मिले हैं. रक्षा मंत्रालय से सूचना मांगने वाली विपक्षी पार्टी फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी की सदस्य मारी आग्नेस श्ट्राक सिम्मरमन ने कहा, "मुझे यह अजीब लगता है कि सैनिकों को नए जूते मिलने में आठ साल का वक्त लग रहा है. यह फैशन का सवाल नहीं बल्कि सुरक्षा की बात है. कल्पना कीजिए कि दमकलकर्मी चप्पल पहन कर आग कैसे बुझाएंगे."

सैनिकों ने सभी मौसम में पहनने वाले जूतों की गुणवत्ता और सुविधा को लेकर शिकायत की है. कुछ ने खुद से जूते खरीदे लेकिन यह नियमों के विरुद्ध है हालांकि कभी-कभी ऐसा करने की इजाजत दी जाती है. हाल ही में जारी वार्षिक रिपोर्ट में सशस्त्र सेना के कमिश्नर हंस पेटर बार्टेल्स ने नए जूते के लिए इंतजार का समय बढ़ने की आलोचना की है. उन्होंने कहा, "दुर्भाग्यवश उत्पादन की गति धीमी है. कई सैनिकों के अनुमान के अनुसार रंगरूटों को प्राथमिकता के आधार पर नए मॉडल के जूते दिए जा सकते हैं. जिन सैनिकों को जूते बदलने पर भी पुराने मॉडल के मिले हैं, वे खुद को दोयम दर्जे के सैनिकों की तरह महसूस कर रहे हैं."

रिपोर्टः  चेज विंटर

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