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जर्मनी में विदेशी मानसिक रोगियों के लिए खास केंद्र

११ मई २०११

चाहे दुख हो, कोई मानसिक बीमारी या फिर नशे की लत, डॉक्टरों को इन मरीजों को ठीक करने में वक्त लगता है. और जो मरीज जर्मनी में पैदा नहीं होते, उनके लिए तो और भी मुश्किल. उनके लिए काम कर रहा है एक खास केंद्र.

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Head Bio medical scientist, Alison Whytell from Morecambe, watches a urine sample being tested at Barrow-in-Furness Hospital, England, after a massive outbreak of Legionnaires disease, in this Aug. 4, 2002 file picture. At least five tourists from the German state of Saxony have been infected with the Legionnaires disease during holidays in Slovenia, a Saxony government spokeswoman said Wednesday Aug. 7, 2002. One of them died July 30 in a Slovenian hospital
तस्वीर: AP

बीमारियों के बारे में मरीजों की समझ अलग होती है और कई बार वे डॉक्टरों को सच नहीं बताते. कई अस्पतालों में इसलिए खास विभाग बनाए गए हैं ताकि दूसरे देशों और संस्कृतियों से आ रहे लोगों का खास ध्यान रखा जा सके.

A wounded Afghan boy is seen on the bed at a hospital after a suicide attack at a market in Kunduz province, north of Kabul, Afghanistan on Saturday, May 19, 2007. A suicide attacker detonated himself next to German soldiers shopping in a crowded market in northern Afghanistan on Saturday, killing 10 people and wounding 16, officials said. Three Germans were killed and two wounded in the attack, said police seven civilians were killed and 15 wounded, including seven seriously, the Interior Ministry said. (AP Photo)
तस्वीर: AP

एक महिला इराक से आईं और पिछले 30 साल से जर्मनी में रह रही हैं. उन्हें माइग्रेन यानी कई दिनों तक चलने वाले सरदर्द की परेशानी है. वह बताती हैं, "50 साल से मुझे माइग्रेन है. यह बहुत ही बुरा है...हर दिन मुझे दर्द होता है."

कैसे समझाएं बीमारी

लगभग 60 साल की यह महिला अपनी बीमारी को शब्दों में सही तरह से जाहिर नहीं कर सकती. उन्हें डिप्रेशन भी हो गया है. वह कहती हैं, "जब मैं टीवी में अपने देश के बारे में कुछ देखती हूं तो मुझे दो तीन रातों तक नींद नहीं आती. और मैं इंतजार करती हूं. पता नहीं किस चीज का, लेकिन मैं इंतजार करती रहती हूं. इराक में कुछ होता है तो मुझे सरदर्द हो जाता है."

जिस तरह से यह महिला अपनी बीमारी के लक्षण बता रही थीं, उससे डॉक्टरों को बीमारी का पता लगाने में काफी परेशानी हुई. लेकिन फिर बॉन के इंटरकल्चरल ऐंबुलेंस में उन्हें मदद मिली. बॉन के एक बड़े क्लीनिक में काम कर रहे डॉ. गेलास हाबाश कहते हैं कि जो व्यक्ति जर्मनी में पैदा नहीं हुआ है, वह अपने मानसिक तनाव को दूसरे तरीके से जाहिर करेगा.

Das undatierte von der Bundesmarine zur Verfuegung gestellte Bild zeigt die Bettenabteilung des Einsatzgruppenversorger Frankfurt am Main. Die Bundesregierung will die "Frankfurt am Main" fuer die Libanon-Mission der UN zur Verfuegung stellen, wie von verschiedenen Quellen am Freitag, 18. August 2006, berichtet wird. (AP Photo/Bundesmarine) ** NUR ZUR REDAKTIONELLEN VERWENDUNG ** ----Undated picture released by German navy shows the hospital section of the navy support vessel 'Frankfurt am Main'. The German government plans to offer the support ship to take part in the U.N. mission in Lebanon, lawmakers confirmed Friday, Aug 18, 2006. (AP Photo/Bundesmarine) ** EDITORIAL USE ONLY **
तस्वीर: AP

केंद्र में मदद

हाबाश खुद उत्तर इराक के हैं. उनके मुताबिक अरब देशों में मानसिक बीमारी वैसे भी काफी शर्मनाक मानी जाती है. वह कहते हैं, "मिसाल के तौर पर डिप्रेशन कहें तो इनमें से कई लोगों को समझ में नहीं आएगा. मानसिक तनाव के बारे में पूछने पर वे शारीरिक परेशानियों के बारे में बोलने लगते हैं. वे सिर दर्द कहेंगे, पेट दर्द या पीठ दर्द कहेंगे."

करीब नौ साल से बॉन में इंटरकल्चरल ऐंबुलेंस यानी एक तरह का केंद्र काम कर रहा है, जहां विदेशों से आए कई लोग अपनी मानसिक स्थिति मनोवैज्ञानिकों को आसानी से कह सकते हैं. डॉ हाबाश कुर्दी, अरबी और रूसी भाषा बोल रहे मरीजों के साथ बात कर सकते हैं. इस तरह मरीज अपनी भाषा में अपनी समस्या बताकर सही इलाज तक पहुंच सकते हैं.

रिपोर्टः एजेंसियां/एमजी

संपादनः वी कुमार

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