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डोन्ट गिव अप का पाठ पढ़ाते थ्री इडियट्स

७ अप्रैल २०१२

बढ़ती प्रतियोगिता, कम नंबर, माता पिता का दबाव..पढ़ाई करो नहीं तो कुछ नहीं होगा...ऐसे तानों के दबाव से अकसर बच्चों का कोमल हृदय टूट जाता है, जो उन्हें खुदकुशी का रास्ता दिखाता है या अवसाद में ढकेल देता है.

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तस्वीर: privat

मुश्किल दौर का सामना कर चुके अरुण पंडित और दो साथियों (वैभव शर्मा, रितिका गुप्ता) ने मिल कर एक ग्रुप शुरू किया था. उद्देश्य था कि किसी भी कीमत पर जीवन में हार नहीं माननी है. याहू पर शुरु हुआ ग्रुप इतना फेमस हुआ कि एक वेबसाइट की शक्ल तैयार हो गई. डोन्ट गिव अप वर्ल्ड, यानी हारो मत, वेबसाइट को बनाने वाले सदस्यों में से एक वैभव शर्मा से जर्मनी में डॉयचे वेले ने बातचीत की.

12वीं कक्षा के दिनों के बारे में बताते हुए वैभव की आवाज में वही तकलीफ झलक रही थी जो शायद उन्होंने तब महसूस की होगी. औसत नंबर से 12वीं में पास हुए, फिर घरवालों ने वही सलाह दी जो अकसर ऐसे लोगों को मिलती है, कि इंजीनियरिंग मत पढ़ो. "कॉलेज में हमारे कम नंबर थे, सामने वाले कमरे रहने वाले साथी का भी यही हाल. लेकिन हम मेहनत करते रहे. 2005 हमने सोचा कि हमारे जैसे कई लोग होंगे जो डिप्रेशन का शिकार हो जाते होंगे."

खुद को मजबूती से खड़ा रखते हुए इन तीनों ने याहू पर एक ग्रुप बनाया. जो ग्रुप के सदस्य बने उन्हें ईमेल पर हौसला बढ़ाने वाले संदेश भेजे. धीरे धीरे लोग जुड़े. उनकी प्रतिक्रिया से समझ में आया कि लोगों को फायदा हो रहा है. फिर इसके बाद यह वेबसाइट बनाई गई. डोन्ट गिव अप वर्ल्ड डॉट कॉम के नाम से शुरू हुई इस वेबसाइट पर ऐसे लोगों के इंटरव्यू हैं जिन्होने जीवन में कभी हार नहीं मानी. ऐसे लेख, कविताएं, पोस्टर हैं जो लोगों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं.

वेबसाइट पर जिन लोगों ने सबस्क्रिप्शन लिया है सिर्फ उन्हें ही मोबाइल और ईमेल से संदेश भेजे जाते हैं. यह पूछने पर कि अभी भी भारत में कई हिस्से ऐसे हैं जहां वेबसाइट या इंटरनेट लोग कम इस्तेमाल करते हैं. वहां ये क्या करते हैं. वैभव ने बताया, "हम लोगों ने कुल्लू मनाली, पंजाब और मुंबई के स्कूल में तीन सेमिनार किए. इसके अलावा कई कॉलेजों में भी हमने छात्रों को समझाया कि हार मानने से कुछ नहीं होता. मेहनत और धीरज ही सफलता की कुंजी है." कई कॉलेजों में वह सेमिनार कर चुके हैं.

Symbolbild Depression und Suizid
बच्चों का हाथ थामिए, छोड़िए मततस्वीर: picture alliance/Dries Luyten

इंजीनियरिंग करने के बाद कम नंबरों के कारण उन्हें बड़ी कंपनियों के कैंपस इंटरव्यू में नहीं बैठने दिया लेकिन उन्होंने बाहर काम करना शुरू किया. काफी साल तक पांच हजार रुपये महीना में काम करते रहे वैभव ने बताया कि जर्मनी आने का मौका उनके लिए बहुत खुशियों भरा था. वैभव कहते हैं कि सफलता को कभी उन्होंने सिर पर चढ़ने नहीं दिया और आगे भी नहीं चढ़ने देंगे.

वैभव यह भी मानते हैं कि माता पिता की इच्छा होती है कि उनका बच्चा आगे बढ़े. "वह उस पर दबाव डालते हैं और इसका असर बच्चों पर बुरा पड़ता है. लेकिन साथ ही वह यह भी कहते हैं कि दूसरे की सफलता देख कर जलन का भाव मन में नहीं लाना चाहिए. लेकिन यह सोचना चाहिए कि उसे कितनी मेहनत के बाद यह मिला है, मुझे भी मिलेगा."

इंग्लिश की वेबसाइट को अलग अलग भाषाओं में करने का काम शुरू करने की योजना है और इसकी डिजाइनिंग का काम एक ऐसे व्यक्ति को दिया गया है जिसने नौकरी नहीं मिलने के कारण अपनी कंपनी शुरू. वैभव कहते हैं कि आर्ट्स से पढ़े या साइंस से पढ़ें, मौके सबको मिलते हैं, मौके पर चौका लगाते आना चाहिए और अगर चूक गए तो हारना नहीं बल्कि मेहनत के रास्ते पर चलना चाहिए.

रिपोर्टः आभा मोंढे

संपादनः ओ सिंह

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