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तालिबान के घटते विदेशी लड़ाके

१० फ़रवरी २०१२

अफगानिस्तान और पाकिस्तान में जिहाद के नाम पर जुटने वाले विदेशी लड़ाके अचानक कम होते जा रहे हैं. पश्चिमी देश इसकी तीन वजह मानते हैं, ओसामा बिन लादेन का मारा जाना, सिर पर ड्रोन हमले और पैसों की कमी.

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तस्वीर: AP

हालांकि किसी के पास कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है. लेकिन फ्रांस में एक सुरक्षा अधिकारी का कहना है कि उनके पास इस बात के सबूत हैं कि संख्या घट रही है. नाम न बताने की शर्त पर उन्होंने कहा, "पिछले छह महीनों में लगभग सभी फ्रांसीसी युवाओं ने पाकिस्तान छोड़ दिया है. पहले वहां 20 से 30 फ्रांसीसी रहते थे, जो या तो धर्म परिवर्तन कर चुके थे या फिर मगरिब के संपर्क में थे." उनका कहना है, "यूरोप के दूसरे देशों से भी लोग पाकिस्तान जा रहे थे लेकिन अब उनकी संख्या में अचानक कमी आ गई है."

इस अधिकारी का दावा है कि अरब क्रांति की वजह से भी लोग अफगानिस्तान से हटने लगे. कुछ लोग लीबिया जाकर मोअम्मर गद्दाफी का सफाया करना चाहते थे. उनका कहना है, "अफगानिस्तान में लड़ाई करना ज्यादा उत्साहवर्धक भी नहीं रह गया है क्योंकि तालिबान लड़ाके अपने घर के लिए युद्ध कर रहे हैं और जिहाद को अंतरराष्ट्रीय चेहरा नहीं मिल पा रहा है."

ड्रोन बना दुश्मन

फॉरेन फाइटर्स नाम की किताब लिखने वाले फ्रांक सिलोफो का कहना है, "ड्रोन हमलों ने विदेशों से जाने वाले लड़ाकों के लिए स्थिति और दूभर बना दी है. इन ड्रोन हमलों से अल कायदा और उनके सहयोगियों के ट्रेनिंग कैंपों पर निशाना बनाया जा रहा है."

Taliban in Bamiyan Afghanistan
तस्वीर: AP

चरमपंथियों ने भी सीधे या परोक्ष तौर पर इस बात को माना है कि उनके लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं. पहले खुलेआम हथियारों की ट्रेनिंग दी जाती थी, जबकि बाद में ड्रोन हमलों और सैटेलाइट से निगरानी के डर को देखते हुए यह सब काम चोरी छिपे घर के अंदर होने लगा. हाल ही में न्यूजवीक पत्रिका को दिए इंटरव्यू में 17 साल के अफगान युवक हाफिज हनीफ ने भी माना था कि वहां लड़ाके कम हो रहे हैं. हनीफ ने खुद पाकिस्तान में आतंकवाद की ट्रेनिंग ली थी.

उसका कहना है, "जब नए लोग आते हैं, तो उनके साथ नया खून, उत्साह और पैसा आता है. यह सब अब खत्म हो गया है. अब नेता तो अपनी हिफाजत के लिए एक जगह से दूसरी जगह भागते रहते हैं."

बिन लादेन का असर

मिलिटेंट पाइपलाइन नाम की किताब में पूर्वोत्तर पाकिस्तान और पश्चिम के रिश्ते के बारे में जिक्र किया गया है. रिसर्चर पॉल क्विकशंक ने उस्ताद अहमद फारुक का जिक्र किया है और उसे तालिबान का प्रवक्ता बताया है. फारुक ने उन्हें अपनी मुश्किलों के बारे में बताया है.

फारुक ने ऑडियो संदेश में कहा, "हम जितनी ज्यादा जगहों पर आजादी से घूम सकते थे, अब वह नहीं रहे. हम लोगों और संसाधनों को खोते जा रहे हैं. हमारी जमीन पर लगातार हमले हो रहे हैं और हमारे सिर के ऊपर ड्रोन उड़ने लगे हैं." न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी में रिसर्च कर रहे क्विकशंक का कहना है कि सही आंकड़ों के बारे में तो बताना मुश्किल है लेकिन विदेशी तालिबान की संख्या अचानक से कम हो गई है.

उनका कहना है, "ड्रोन हमलों के बाद ओसामा बिन लादेन की मौत भी एक बड़ी चुनौती बन कर आई है. इन चरमपंथियों के लिए वह बेहद अहम था. वह अल कायदा का ब्रांड था. वहां जाने का मतलब इन लोगों के लिए यह था कि वे लोग उसके लिए लड़ने जा रहे थे. अब उसे रास्ते से हटाने के बाद अल कायदा के लिए नए साथियों को जुटा पाना बहुत मुश्किल हो गया है."

क्विकशंक का कहना है, "लेकिन संघर्ष अभी भी जारी है. और कुछ हिस्सों में तो यह अभी भी बड़े जिहाद के तौर पर देखा जा रहा है. हो सकता है कि उनकी संख्या कम हो जाए लेकिन जब तक अमेरिकी फौजें वहां डटी रहेंगी, मैं नहीं समझता कि वे पूरी तरह से खत्म हो पाएंगे."

रिपोर्टः एएफपी/ए जमाल

संपादनः महेश झा

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