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तिब्बत के धार्मिक गुरुओं को लेकर विवाद

५ मार्च २०१२

तिब्बती बौद्ध धर्म में दलाई लामा के बाद करमापा लामा का पद दूसरा सबसे प्रभावशाली पद है. अब करमापा के दो दो उत्तराधिकारी इस पद के लिए आपस में लड़ रहे हैं. लड़ाई में कानून का भी सहारा लिया जा रहा है.

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उर्गयेन त्रिनली दे रहे हैं थाये दोर्जी को चुनौतीतस्वीर: AP

थाये दोर्जी सिर्फ 18 महीने के थे जब उन्होंने लोगों से कहना शुरू किया कि वह करमापा लामा हैं जिनका पुनर्जन्म हुआ है. अब वह 28 साल के हैं और आध्यात्मिक खोज के साथ करमापा के नाम के लिए एक जटिल विवाद में फंस गए हैं. थाये दोर्जी को चुनौती दे रहे हैं उर्गयेन त्रिनली, जो 26 साल के हैं और जिनके भक्त उन्हें करमापा मानते हैं.

इन दोनों के अलावा करमापा विवाद में दलाई लामा, चीन की सरकार, भारत की सुप्रीम कोर्ट और एक प्राचीन और समृद्ध तिब्बती मठ भी फंसे हैं. सिक्किम के रूमटेक मठ में 1.5 अरब डॉलर के मूल्य का खजाना रखा है और इसमें सबसे कीमती माना जाता है "काला ताज" जो कई दशकों से छिपाकर रखा गया है.

करमापा पर विवाद

करमापा पद के दोनों उम्मीदवार उर्गयेन त्रिनली और थाये दोर्जी अब भारत में रहते हैं. त्रिनली का परिवार 2000 में तिब्बत से भागकर भारत आया जब कि दोर्जी 1993 से ही भारत में हैं. समाचार एजेंसी एएफपी से बात करते हुए थाये दोर्जी ने कहा, "हम कभी मिले नहीं हैं. मैंने काफी वक्त तक सोचा कि हम आपस में बैठकर इसे सुलझा सकते थे. लेकिन मुझे आश्चर्य होता है कि हम ऐसा नहीं कर पाए."

दोनों में से उर्गयेन त्रिनली अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा मशहूर हैं. चीन की सरकार और दलाई लामा, दोनों ने त्रिनली को करमापा के तौर पर मान्यता दे दी है. त्रिनली वॉशिंगटन में दलाई लामा के साथ भी लोगों के सामने आए हैं और इस वजह से अटकलें बढ़ रही हैं कि दलाई लामा के बाद त्रिनली तिब्बतियों के धार्मिक गुरु नियुक्त किए जाएंगे.

वहीं दोर्जी का कहना है कि स्थिति कुछ अस्त व्यस्त सी है. बौद्ध धर्म के बारे में कहते हैं, "हमें सिखाया जाता है कि सब अस्थायी है, सब गति में है और हमें अड़ंगों और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है." अपने बारे में वे कहते हैं कि इस तरह की स्थिति में किसी को भी सकारात्मक तरीके से सोचना चाहिए ताकि मुश्किलें हल हो सकें.

आध्यात्म से कानून तक

लेकिन करमापा की लड़ाई तिब्बत सरकार के लिए परेशानी खड़ी कर सकती है. दलाई लामा के बाद हो सकता है कि चीन सरकार अपनी तरफ से धार्मिक नेता का एलान करे. फिर काले ताज को भी लेकर तिब्बती धार्मिक गुट आपस में लड़ रहे हैं. 1993 में उर्गयेन त्रिनली के भक्त करमापा चैरिटेबल ट्रस्ट केसीटी के दफ्तर में घुसे और वहां से दोर्जी के समर्थकों को बाहर निकालने की कोशिश की. 16वें करमापा द्वारा गठित केसीटी ने दोर्जी को सही करमापा माना है और काला ताज भी उनकी जिम्मेदारी में सौंपा है. 2004 में केसीटी से काला ताज वापस लेने के सिलसिले में एक अपील सुप्रीम कोर्ट में दर्ज हुई, लेकिन भारत के सर्वोच्च अदालत ने इसे खारिज कर दिया.

इस बीच, करमापा वाला मामला आध्यात्म से हटकर कानूनी मामला बनता दिख रहा है. दोर्जी का कहना है कि वकीलों को मामले में शामिल होना ही था. दोर्जी करमापा कागयू के परिवार से हैं, जिसने दलाई लामा से अपने आप को स्वतंत्र रखा है. दोर्जी दलाई लामा का सम्मान तो करते हैं, लेकिन उनका कहना है कि करमापा वाले मामले में दलाई लामा का कोई प्रभाव नहीं है.

रिपोर्टः एएफपी, रॉयटर्स/एमजी

संपादनः महेश झा

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