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दिल टूटा, हटा सावन की घटा

९ जून २०११

प्रेमी और प्रेमिका के बिछड़ने पर हजारों साल से लिखा जा रहा है, गाया जा रहा है. लेकिन जिन पर ऐसी आफत आती है, उनकी जान सांसत में होती है. अब मनोवैज्ञानिक इससे निपटने का नुस्खा पेश कर रहे हैं.

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'मेरी किस्मत तो हमेशा के लिए फूट गई' - बिछड़ने के बाद प्रेमी या प्रेमिका की ऐसी बातें सुनने को मिलती है. लेकिन जर्मनी की मनोचिकित्सक डॉ. डोरिस वोल्फ कहती हैं कि ऐसी बात नहीं है. किस्मत फिर से बन सकती है, लेकिन उससे पहले बिछड़ने के दर्द से उबरना जरूरी है. और इसके लिए वक्त चाहिए. वह कहती हैं, "यह वक्त एक मौका है, अपने आपको नए सिरे से पहचानने का."

महिलाओं की पत्रिका इमोशन के हाल के अंक में डोरिस वोल्फ ने एक साक्षात्कार में ये बातें कही हैं. उनकी राय में उबरने की प्रक्रिया में आम तौर पर चार दौर देखे जा सकते हैं. पहले दौर में सच्चाई को नकारने का रुझान देखा जा सकता है. उनका कहना है कि सच्चाई को स्वीकारने की ट्रेनिंग बेहद जरूरी है. मिसाल के तौर पर, शीशे के सामने खड़े होकर अपने आप से कहना: मैं स्वीकारने के लिए तैयार हूं कि हमारा रिश्ता अब खत्म हो चुका है.

नकारने के दौर के बाद बेचैनी का दौर आता है, भावनाएं उथलपुथल होने लगती हैं. डोरिस वोल्फ कहती हैं कि अगर उदास करने वाली सोच आए, तो उन्हें रोकना पड़ेगा. कहना पड़ेगा कि अभी इसका वक्त नहीं आया है. वे कहती हैं कि डायरी लिखना भी फायदेमंद हो सकता है.

तीसरे दौर में इंसान कुछ हल्का महसूस करने लगता है. वोल्फ की राय में यहां तक शोक के लिए गुंजाइश होती है. पुरानी तस्वीरें देखी जा सकती हैं, तोहफे देखे जा सकते हैं, पुरानी चिट्ठियां फिर से पढ़ी जा सकती हैं. हां, कोई दोस्त या सहेली अगर पास हो, तो बेहतर है.

फिर चौथे दौर में उन चीजों पर नजर दौड़ाने की जरूरत है, जिन पर अब तक ध्यान नहीं दिया गया था. नए दोस्त भी बनाने चाहिए. जरूरी नहीं कि तुरंत नए रिश्ते खोजे जाएं.

किस्मत बेताब है फिर से मुस्कराने के लिए, लेकिन उसके लिए तैयारी चाहिए.

रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ

संपादन: एस गौड़

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