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दिल्ली यूनिवर्सिटी में रामायण पर महाभारत

२ नवम्बर २०११

दिल्ली यूनिवर्सिटी के इतिहास के पाठ्यक्रम से एक लेख का हटाया जाना राजनैतिक मोड़ ले रहा है. लेख में रामायण के अलग अलग अनुवाद प्रस्तुत किए गए हैं, जिस से कुछ हिन्दू दल नाराज हैं.

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तस्वीर: cc-by:Bryan Allison-sa

अक्टूबर में दिल्ली यूनिवर्सिटी ने किताब 'मैनी रामायण्स' में छपे एके रामानुजन के एक लेख 'थ्री हंड्रेड रामायण्स' को पाठ्यक्रम से हटा दिया. इस लेख को हटाने की मांग 2008 में पहली बार की गई थी. काफी चर्चा करने के बाद तीन साल बाद इस पर फैसला लिया गया. हालांकि दिल्ली यूनिवर्सिटी के अधिकतर प्रोफेसर इस फैसले से सहमत नहीं थे, लेकिन हिन्दू दलों की नाराजगी को देखते हुए यह कदम लिया गया.

इस फैसले से दिल्ली यूनिवर्सिटी के कई छात्र और प्रोफेसर नाराज हैं. सोमवार को आर्ट्स फैकल्टी में विवेकानंद की मूर्ती के सामने कम से कम चार सौ लोगों ने नारे लगाए. छात्रों ने यहां से मोर्चा शुरू किया और फिर पूरी यूनिवर्सिटी का चक्कर लगा कर वाइस चांसलर के दफ्तर के बाहर पहुंचे.

2008 में लेख के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने से पहले हिन्दू कार्यकर्ता वाइस चांसलर के ऑफिस में घुस गए और वहां तोड़ फोड़ की. इसके अलावा इतहास विभाग में भी तोड़ फोड़ की गई. हिन्दू कार्यकर्तायों की शिकायत थी कि इस लेख में भगवान राम की गलत छवि प्रस्तुत की गई है. उन्हें वैसे नायक के रूप में नहीं दर्शाया गया है जैसा अधिकतर लोगों के जहन में है.

Indisches Epos Ramayana
तस्वीर: picture-alliance/dpa

साहित्यकार नाराज

दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर भारती जगननाथन ने कहा, "यह कोई धार्मिक लेख नहीं है. मैंने भी अपने लेक्चर में इस लेख का इस्तेमाल किया है, ताकि स्टूडेंट्स को दिखा सकूं कि इतिहास को कई तरह से पढ़ा जा सकता है." रोक पर नाराजगी जताते हुए कन्नड़ साहित्यकार यूआर अनंतमूर्थी ने टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में कहा, "पुराने पारंपरिक भारत में ऐसा नहीं हुआ होता. उस समय लोग ज्यादा खुले विचारों के थे. यह केवल सामुदायिकता और अत्यंत राष्ट्रवाद वाले आधुनिक भारत की समस्या है, जो विविधता को अपना नहीं पाता. यह बेहद शर्मनाक है, इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता."

रोक के खिलाफ मोर्चे में हिस्सा लेने वाली दिल्ली यूनिवर्सिटी की एना पांडा ने कहा, "अध्यापक होने के नाते हमारी कोशिश रहती है कि हम अपने छात्रों को अलग अलग तरह के विषयों से रूबरू करा सकें और यहां हमें कहा जा रहा है कि हम इतिहास को केवल एक ही नजरिये से देखें.. वैसे जैसा कोई हिन्दू दल चाहता है."

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तस्वीर: Random House

अन्य मामले

दक्षिणपंथियों की नाराजगी का यह पहला मौका नहीं है. पिछले साल ही मुंबई यूनिवर्सिटी में रोहिंटन मिस्त्री की किताब 'सच अ लॉन्ग जर्नी' को साहित्य के पाठ्यक्रम से हटाया गया था. शिव सेना बुकर प्राइज के लिए चुनी गई इस किताब के पाठ्यक्रम में होने से नाराज थी. इसी साल न्यूयॉर्क में फिल्म 'सीता सिंग्स द ब्लूज' को दिखाने पर रोक लगी. अमेरिकी व्‍यंग्‍य चित्रकार नीना पैले की इस फिल्म में सीता की कहानी सुनाई गई है, लेकिन नए जमाने के अंदाज में. अमेरिका में रह रहे हिन्दू इस से नाराज थे.

इसी तरह पिछले साल गुजरात में महात्मा गांधी पर लिखी गई किताब 'ग्रेट सोल: महात्मा गांधी एंड हिस स्ट्रगल' पर रोक लगाई गई. किताब में गांधी की एक जर्मन व्यक्ति से दोस्ती का जिक्र है. कुछ लोगों का मानना है कि यह व्यक्ति समलैंगिक था. हालांकि किताब इस बारे में कुछ भी नहीं कहती, लेकिन फिर भी गुजरात सरकार ने उस पर रोक लगाई.

सलमान रश्दी की किताब 'सैटेनिक वर्सिस' पर भी भारत में रोक लगी हुई है, क्योंकि कई धार्मिक नेताओं का मानना है कि उसमें इस्लाम को गलत रूप से प्रस्तुत किया गया है. सलमान रश्दी ने 'थ्री हंड्रेड रामायण्स' पर लगी रोक को ट्विटर पर 'अकेडमिक सेंसरशिप' का नाम दिया.

सरकार का रुख

यूनिवर्सिटी में चल रहे मोर्चों के चलते यह मामला राजनैतिक मोड़ लेता दिख रहा है. लेकिन कांग्रेस सरकार फिलहाल इस से दूर ही रहना ठीक समझ रही है. जानकारों का मानना है कि कांग्रेस सरकार इस पर टिपण्णी कर हिन्दू मतदाताओं को नाराज नहीं करना चाहती. राजनीति की जानकार अमूल्य गांगूली का कहना है, "धर्मनिरपेक्ष कहलाने वाले कांग्रेस के नेताओं ने इस पर एक शब्द भी नहीं कहा है. ना ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तरफ से कोई बयान आया है, ना गृह मंत्री की ओर से और ना ही शिक्षा मंत्री की ओर से. सब चुप्पी बनाए बैठे हैं." समाचार एजेंसी रॉयटर्स का कहना है कि आंकडें दिखाते हैं कि पिछले कुछ समय में हिन्दू पार्टी बीजेपी की ओर लोगों का झुकाव बढ़ा है. अब रामायण का मुद्दा बीजेपी के लिए एक अच्छा अवसर हो सकता है.

रिपोर्ट: रॉयटर्स/ ईशा भाटिया

संपादन: आभा मोंढे

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