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परदे पर उतरेगा नंदीग्राम का आंदोलन

३१ मार्च २०११

लाइट, कैमरा, एक्शन. निर्देशक के इतना कहते ही तमाम पात्र अपने डायलाग बोलने लगते हैं. अंतर सिर्फ यही है कि जिस कहानी पर यह फिल्म बन रही है उसमें एक्शन चार साल पहले हुआ था.

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तस्वीर: DW

फिल्मों में आमतौर पर ज्यादातर चीजें काल्पनिक होती हैं. लेकिन पश्चिम बंगाल के पूर्व मेदिनीपुर जिले में नंदीग्राम की हिंसा पर बांग्ला में बन रही इस फिल्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसकी कहानी तो असली है ही, पात्र भी असली हैं. चार साल पहले 14 मार्च, 2007 को जमीन अधिग्रहण का विरोध कर रहे लोगों पर पुलिस की फायरिंग में 14 लोगों की मौत हो गई थी. उसके बाद भी करीब छह महीने तक वहां के लोगों को भारी हिंसा झेलनी पड़ी. अब उस पूरी कहानी को परदे पर उतारने का काम चल रहा है.

Flash-Galerie Manik Mandal
तस्वीर: DW

मानिक मंडल के उपन्यास चोखेर पानी (आंख के आंसू) पर आधारित इसी नाम से बन रही डेढ़ घंटे लंबी इस फिल्म की फिलहाल शूटिंग चल रही है. इसे राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों के बाद रिलीज करने की योजना है. मंडल कहते हैं, ‘यह कोई कहानी नहीं बल्कि असलियत है. इस फिल्म में हीरो और हीरोइन वही लोग हैं जो असली कहानी में थे. इस लिहाज से यह एक अनूठी फिल्म है.'

फिल्म के निर्देशक श्यामल कर्मकार कहते हैं, ‘इस फिल्म में मालती जाना, आलिया बीबी और अखरोजा बीबी भी काम कर रही हैं. नंदीग्राम आंदोलन के दौरान उनको अत्याचार और बलात्कार का शिकार होना पड़ा था. अब फिल्म में भी वह उसी पात्र को निभा रही हैं.' कोलकाता के रहने वाले श्यामल विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म परिंदे के निर्माण के दौरान एसोसिएट एडिटर के तौर पर काम कर चुके हैं. इस फिल्म में अशोक विश्वनाथन भी एक छोटी-सी भूमिका निभा रहे हैं.

Flash-Galerie Mani Mandal
तस्वीर: DW

इस फिल्म की कहानी एक ऐसे माओवादी के इर्द-गिर्द घूमती है जो अपना आधार बढ़ाने नंदीग्राम आता है और उसे गांव की एक लड़की से प्यार हो जाता है. श्यामल कहते हैं कि यह सच्ची कहानी है. यह उन लोगों के प्रति एक श्रद्धांजलि होगी जो नंदीग्राम में जमीन की लड़ाई में अपनी जान गंवा चुके हैं.

अखरोजा बीबी कहती है कि उसे आंदोलन के दौरान पुलिस और राजनीतिक दलों के गुंडों के अत्याचार का सामना करना पड़ा था. शारीरिक शोषण भी हुआ. अखरोजा खुश है कि इस फिल्म के जरिए देश के बाकी हिस्सों के लोग यह जान सकते हैं कि उनके साथ कैसा सलूक हुआ था.

इस फिल्म की शूटिंग भी उन जगहों पर ही चल रही है जहां इसकी असली पटकथा लिखी गई थी. यानी नंदीग्राम और उसके आसपास के वह इलाके जिनको उस आंदोलन के दौरान पूरी दुनिया में सुर्खियां मिली. यहां राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि बदलाव की हवा के बीच होने वाले विधानसभा चुनावों के बाद सिनेमाघरों में आने वाली इस फिल्म से एक बार फिर राजनीतिक उठापटक बढ़ना तय है.

रिपोर्टः प्रभाकर,कोलकाता

संपादनः एन रंजन

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