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पाकिस्तान में कुत्तों की खूनी लड़ाई

११ अप्रैल २०१२

आंखों में खून भर कर एक दूसरे की ओर झपटते कुत्ते और शोर मचाती हजारों लोगों की भीड़. पाकिस्तानी पंजाब के कुछ इलाकों में फसल पकने का इंतजार इसी तरह होता है. इंसानों के नाक की लड़ाई है कुत्तों की जंग.

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तस्वीर: AP

पाकिस्तान में तालिबान के प्रभाव में जंग इंसान की जिंदगी का जरूरी हिस्सा हो सकता है लेकिन इलाके के कुत्ते भी अपने अंदाज में एक दूसरे से भिड़ने के लिए कुख्यात हैं. शौकीन मिजाज तमाशबीनों ने तो इनकी ट्रेनिंग से लेकर खास देखभाल तक का इंतजाम कर रखा है.

आधिकारिक रूप से कुत्तों की लड़ाई पर प्रतिबंध है, और पशुओं के अधिकार की बात करने वाले इसे क्रूर करार देते हैं. बावजूद इसके अमीर पाकिस्तानी किसान, जमींदार और कारोबारी सर्द मौसम में कुत्तों की खूनी जंग देखने का शौक फरमाते हैं. राजधानी इस्लामाबाद से करीब 110 किलोमीटर दूर पंजाब के तांगधे सायेदान गांव में कुत्तों की जोरदार लड़ाई चल रही है. मुकाबला खत्म हुआ तो ढोल और दुदुंभी का शोर गूंजा. विजेता कुत्ते मोती के मालिक बड़े शान से उसे कंधे पर बिठाकर जब चले तो नजारा देखने वाला था. आगे आगे नाचते झूमते लोगों की कतार, मोती पर लुटाए जाते नोटों की बरसात और हजारों लोगों की आंखों में मोती के लिए छलकता प्यार और सम्मान. मोती के मालिक तसद्दुक हुसैन कहते हैं, "मै मोती को अपने बच्चों की तरह प्यार करता हूं. वह मेरी शान है."

पंजाब के गांवों में इस तरह के कुत्तों की जंग को बुली कहते हैं. फसल तैयार होने का इंतजार इन्हीं लड़ाइयों से गुलजार रहता है. लड़ाई के नियम बिल्कुल आसान हैं जंग तब तक चलती है जब तक कि लड़ाकों में से कोई एक जख्मी हो कर मर न जाए, या फिर भाग जाए या उसका मालिक हार मान कर उसे मुकाबले से बाहर निकाल ले जाए. जीतने वाले को ईनाम के रूप में ट्रॉफी, मोबाइल फोन, टीवी जैसी चीजें या फिर ढाई हजार से 50 हजार रुपये तक की रकम मिलती है. आमतौर पर यह रकम आयोजकों की जेब देख कर तय होती है.

बुली आयोजित करने वाले अब्दुल गफ्फार बताते हैं, "हम यह लड़ाई इसलिए करवाते हैं कयोंकि हमें कुत्तों की लड़ाई से प्यार है. हर आयोजक अपनी या अपने किसी साथी की जमीन इस लड़ाई के लिए चुनता है. यह ताकवर लोगों का शौक है." मोती जैसे चैम्पियन कुत्तों के खाने पीने पर हर महीने कई हजार रुपये का खर्च आता है इसके अलावा साल की बड़ी लड़ाइयों के लिए जबर्दस्त ट्रेनिंग भी होती है. ये लड़ाइयां सितंबर से शुरू हो कर मार्च-अप्रैल तक चलती हैं. मोती की महंगी खुराक के बारे में हुसैन बताते हैं, "हम उसे हर रोज दो लीटर दूध, एक किलो गोश्त, घी और एक सेव के साथ कुछ और चीजें भी परोसते हैं.हर महीने इस पर 25 हजार रुपये खर्च होते हैं. मेरे परिवार के आधे लोग ब्रिटेन में रहते हैं. मेरा भाई वहां वकील है वह मुझे पैसे भेजता है जिससे कि मैं कुत्ते को खिलाऊं और परिवार का सम्मान बना रहे." मोती की उम्र दो साल है लेकिन पहली लड़ाई से पहले उसने एक साल ट्रेनिंग में बिताए हैं. ट्रेनिंग के दौरान हर रोज उसे मोटरसाइकिल के पीछे 20 किलोमीटर भागना होता है.

कुत्तों की जंग में जीतने वाले अपने मालिकों के लिए गर्व और सम्मान का तोहफा लाते हैं लेकिन हारने वाले कुत्तों की कहानी एकदम अलग है. हारे हुए एक कुत्ते के मालिक उसके जख्मों को संक्रमण से बचाने के लिए नमक रगड़ते हैं और बात करने को भी बड़ी मुश्किल से ही तैयार होते हैं, "मेहरबानी करके मुझसे कुछ न पूछिए. मैं परेशान हूं. मेरा कुत्ता हार गया है. मेरे पास अब बोलने की हिम्मत नहीं यह शर्मनाक है."

पाकिस्तान में आतंकवादी संगठनों पर भी जब पाबंदी लगती है तो वो नाम बदल कर अपना काम करने लगते हैं और कोई उनसे पूछताछ नहीं करता. ऐसे हालात में कुत्तों की जंग पर लगी रोक का पालन कराने के लिए पुलिस के पास फुर्सत ही कहा. कुत्तों की जंग वाली जगह पर चाय नाश्ते की दुकानें सजती है, पार्किंग के लिए ठेके दिए जाते हैं और हर मुकाबले की विडियो रिकॉर्डिंग होती है. बड़ी बड़ी लड़ाइयों के विडियो लोग कतार में लग कर खरीदते हैं. एक अलिखित कैलेंडर बना हुआ है और इन मुकाबलों का हर मुरीद, कुत्तों के मालिक और दुकान लगाने वाले जानते हैं 200 किलोमीटर के दायरे में मजमा कब और कहां लगेगा. 45 साल के इश्तियाक अहमद ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "जहां कही मुकाबला होता है, मैं अपनी स्टॉल लगाता हूं और एक दिन में 1500 रुपये तक कमा लेता हूं जो मेरी दुकान से होने वाली कमाई से बहुत ज्यादा है."

Afghanistan Hundekampf
तस्वीर: AP

पंजाब पुलिस का कहना है कि वो इन लड़ाइयों पर छापा मारते हैं और दोषियों को गिरफ्तार भी करते हैं. पंजाब पुलिस की प्रवक्ता नबीला गजनफर बताती हैं कि गिरफ्तार किए गए ज्यादातर लोगों को जमानत मिल जाती है. सरकार ने इसके लिए अधिकतम छह महीने की कैद और 500 रुपये के जुर्माने की सजा रखी है. पशुओं के अधिकार की बात करने वाले लोग इसे नाकाफी बताते हैं. पाकिस्तान एनिमल वेल्फेयर सोसायटी से जुड़े जुल्फिकार ओथो बताते हैं कि हारने वाले कुत्तों के मालिक उन्हें गोली मार देते हैं. उनके मुताबिक औसतन हर एक मुकाबले के बाद एक कुत्ते की जान जाती है. लड़ाई के दौरान लगे कुछ जख्म भरते ही नहीं और अक्सर वो भी कुत्तों के मौत की वजह बनते हैं. पर तमाशाई इससे बेपरहवाह है वो तो यहां तक कहते हैं, "खुदा ने कुत्तों को लड़ने और काटने के लिए बनाया है. अगर हम उन्हें नहीं लड़ाएंगे तो भी वो आपस में लड़ते रहेंगे."

एनआर/एएम(एएफपी)