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फुटबॉल में तकनीक और नए नियमों को जगह मिली

६ जुलाई २०१२

अब न तो रेफरी की लापरवाही से कोई गोल अमान्य होगा और न कोई मुस्लिम महिला खिलाड़ी स्कार्फ पहनने की वजह से मैदान में उतरने से रोकी जाएगी. फुटबॉल में अब तकनीक और नए नियमों की बानगी दिखेगी.

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तस्वीर: Reuters

फुटबॉल के लिए नियम बनाने वाली और इसकी संचालन समिति फीफा दबाव के आगे झुक कर गोल लाइन तकनीक और मुस्लिम महिला खिलाड़ियों को स्कार्फ के साथ खेलने की मंजूरी देने पर तैयार हो गई है.

दुनिया भर के खिलाड़ियों, मीडिया और कोच की तरफ से इस बारे में जबर्दस्त मांग उठाने के बाद यह फैसला किया गया है. हाल के महीनों में ऐसा भी कई बार हुआ जब कुछ बेहतरीन गोल सिर्फ इसलिए अमान्य हो गए क्योंकि अधिकारी गेंद को लाइन से पार जाते देख नहीं सके. इसके अलावा ईरान की महिला टीम को अहम क्वालिफाइंग मुकाबले में स्कार्फ पहनने की वजह से खेलने से रोक दिया गया. खिलाड़ी स्कार्फ उतारने को तैयार नहीं हुईं और नतीजा यह हुआ की ईरान की टीम लंदन ओलंपिक में खेलने से महरूम हो गई.

दोनों ही मामलों में फीफा और उसके लिए नियम बनाने वाली संस्था इंटरनेशनल फुटबॉल एसोसिएशन बोर्ड (आईएफएबी) ने लोगों की मांग पर गुरुवार को आम सहमति से मंजूरी दे दी. गोल लाइन तकनीक पर तो दशकों से बहस चल रही है. फीफा प्रमुख जेप ब्लाटर तो लगातार इस बात पर जोर देते रहे कि मानवीय भूल फुटबॉल की दुनिया भर में भारी मांग का हिस्सा है. स्कार्फ के मामले में फीफा सुरक्षा के नाम पर पाबंदी हटाने से इनकार करती रही और साथ ही यह खेल के नियमों में शामिल नहीं था. स्कार्फ को रग्बी और ताइक्वांडो जैसे खेलों में पहले ही मंजूरी दी जा चुकी है.

फुटबॉल में छूट दिलाने के लिए अभियान का नेतृत्व फीफा के उपाध्यक्ष और कार्यकारी समिति के सदस्य जॉर्डन के प्रिंस अली बेन अल हुसैन ने चलाया. संयुक्त राष्ट्र ने भी इसकी मंजूरी के लिए अपील की. प्रिंस अली ने बयान जारी कर कहा है, "दुनिया भर की महिला खिलाड़ियों को बधाई, हम आप लोगों को मैदान में खेलते देखने का इंतजार कर रहे हैं. महिला फुटबॉल उभर रहा है और हम लोग आप पर भरोसा करते हैं. आपको हमारा पूरा समर्थन मिलेगा."

ब्लाटर ने कहा कि 2010 वर्ल्ड कप में जर्मनी और इंग्लैंड के मुकाबले में फ्रैंक लैम्पार्ड के गोल को अमान्य करार दिया जाना एक बड़ी घटना थी जिसने इस तकनीक को लागू करने की जमीन तैयार कर दी. इसी तरह की घटना पिछले साल भी हुई जब इटली के क्लब एसी मिलान का जुवेन्टस के खिलाफ एक अहम गोल अमान्य हो गया और जुवेन्टस चैम्पियनशिप जीतने में कामयाब हो गया.

गोल लाइन तकनीक

गोल हुआ है कि नहीं इसका फैसला करने के लिए दो तकनीकों को मंजूरी दी गई है. इनमें पहली है हॉक आई जो टेनिस और क्रिकेट में इस्तेमाल की जाती है. इसमें गोलपोस्ट के पास कैमरे लगाए जाते है और उसमें दर्ज हुई तस्वीरों के आधार पर फैसला किया जाता है. दूसरी तकनीक है गोलरेफ जिसमें खासतौर से तैयार किए गए चुंबकीय क्षेत्र और खास गेंद का इस्तेमाल किया जाता है. गेंद के चुंबकीय क्षेत्र में पहुंचने पर संकेत मिल जाता है. दोनों ही तकनीकों में एक सेकेंड के भीतर रेफरी की कलाई पर बंधी घड़ी उसे संकेत कर देती है कि गेंद लाइन पार कर गई है या नहीं. इन दोनों को मंजूरी देने से पहले 10 तकनीकों का कई चरणों में परीक्षण किया गया. इस तकनीक का खासतौर से उन परिस्थितियों में इस्तेमाल किया जाएगा जब यह साफ नहीं हो पा रहा हो कि गेंद ने गोल लाइन पार की है या नहीं.

फिलहाल तो ये दोनों विकल्प के रूप में ही मौजूद रहेंगे लेकिन फीफा ने कहा है कि वह इनका इस्तेमाल अपने मुकाबलों में शुरू करने जा रहा है. दिसंबर में क्लबों के वर्ल्ड कप और 2014 में होने वाले फुटबॉल वर्ल्ड कप में इनका इस्तेमाल होगा. यूएफा के अध्यक्ष मिशेल प्लाटिनी समेत कई लोग इसका विरोध भी कर रहे हैं. प्लाटिनी का कहना है कि गोल लाइन तकनीक को मंजूरी देने के बाद भविष्य में दूसरी तकनीकों का भी फुटबॉल में घुसने का रास्ता खुल जाएगा. हालांकि वे इस बात से थोड़ी राहत महसूस कर रहे हैं कि फिलहाल इसका इस्तेमाल वैकल्पिक है.

एनआर/आईबी(रॉयटर्स,एपी)

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