1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

"बच्चे पर धर्म थोपा नहीं जा सकता"

८ दिसम्बर २०१२

बॉम्बे हाई कोर्ट ने यह मानते हुए कि बच्चे पर धर्म थोपा नहीं जा सकता, 3 साल की एक बच्ची को उसके पिता के परिवार को सौंपने से मना कर दिया है. तीन साल की बेटी का पिता जेल में है और मां मर चुकी है.

https://p.dw.com/p/16ybJ
तस्वीर: AP

कोर्ट के सामने यह मामला इस तरह पहुंचा कि बच्ची के पिता ने अपनी बीवी की हत्या कर दी और खुद फिलहाल जेल में है. बच्ची के पिता, उसकी बहन और बच्ची के मामा ने उसे अपने साथ रखने की इच्छा जताई. बच्ची के पिता और बुआ ने कोर्ट में कहा है कि वह उसे रोमन कैथलिक के रूप में पालना चाहते हैं. उनका कहना है कि कैथलिक रिवाजों का जरूर पालन होना चाहिए और उसे ऐसे कॉन्वेंट स्कूल में भेजा जाना चाहिए जहां ईसाई आदर्शों को पढ़ाया जाता हो.

इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस रोशन देवी ने माना, "यह ईसाइयत के लिए बेहद अपमानजनक होगा कि बच्ची का पिता जो ईसाई है वह अपनी पत्नी की हत्या का दोषी है. बच्चे को ऐसे पिता से ईसाइयत के आदर्शों की सीख नहीं मिलेगी जिसने छोटी सी उम्र में उसे उसकी मां की हत्या का दोषी और उसके प्रति क्रूरता दिखाने के लिए सलाकों के पीछे देखा हो."

जज ने यह दलील भी खारिज कर दी कि बच्चे पर धर्म का असर जरूरी होना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह संविधान में दिए धर्म की आजादी के अधिकार के सीधे खिलाफ होगा. साथ ही लैंगिक रूप से भेदभावपूर्ण भी. कोर्ट ने बच्ची को उसके नाना को सौंपने का फैसला किया है.

यह फैसला लेते समय कोर्ट ने इस बात को भी ध्यान में रखा कि मां की मौत के बाद वह अपने नाना नानी के पास ही रह रही है. जज ने अपने फैसले में कहा, "यह बच्ची के हित में है कि उसे ऐसे धार्मिक मत से दूर ही रखा जाए जो उसने अबोध अवस्था में नहीं देखा ताकि उसका बचपन तनाव मुक्त रह सके."

लड़की की बुआ ने दी कि 1890 के गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट की धारा 17 के मुताबिक कोर्ट के लिए यह जरूरी है कि वह बच्चे का अभिभावक चुनने में धर्म का भी ध्यान रखे. उनकी वकील उदय वारुंजकर ने कहा कि बच्ची का पिता रोमन कैथलिक है इसलिए बच्ची को भी रोमन कैथलिक के रूप में ही बड़ा किया जाना चाहिए.

हालांकि जजों ने यह दलील खारिज कर दी और कहा कि धारा 17 यह नहीं कहती कि पितृसत्तात्मक समाज में केवल पति के धर्म को ही माना जाना चाहिए. जज ने यह भी कहा कि लड़की की बुआ ने बच्ची को सौंपने की मांग दिसंबर तक नहीं कि और अब जो उसने मांग रखी तो वह भी अपनी मर्जी से नहीं. बच्ची की बुआ ने जेल में बंद उसके पिता के निर्देश पर बच्ची को अपने साथ रखने की मांग की.

एनआर/एजेए (पीटीआई)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें