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ब्राज़ील के जंगलों में नए लोग मिले

आभा निवसरकर मोंढे ३ जून २००८

बड़ी हैरानी की बात है कि एक तरफ़ हम मंगल पर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं और दूसरी तरफ़ अपने ही कुनबे के लोगों से अब तक अनजान हैं. इससे भी हैरानी की बात कि दोनों ही चीज़े एक ही समय में हो रही है.

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ब्राज़ील पेरू की सीमा पर मिले नए आदिवासीतस्वीर: AP

ब्राज़ील और पेरू की सीमा पर ऐसे लोगों के बारे में जिन पर अभी तक मानव सभ्यता की नज़र ही नही पड़ी थी. अमेज़न के जंगलों में इनसानों की ऐसी जाति मिली है, जिससे दुनिया अनजान थी. एक हवाई फोटो मे ये लोग पहली बार दिखे.

तीर कमान ताने लाल लोग

फोटों में साफ दिखाई पड़ता है कि लाल के लोग, जो अमेज़न के घने जंगलों में तीर कमान लिये हैं. एक फोटों में देखा जा सकता है कि दो आदिवासी हवाई जहाज़ पर तीर से हमला करने के लिये तैयार हैं और दूसरे पंद्रह आदिवासी हवाई झोपड़ियों के पास खड़े विमान देख रहे हैं. शायद वो हवाई जहाज़ को एक बड़ा पक्षी समझ रहे हैं, जो उन पर हमला कर सकता है. ये फ़ोटो ब्राज़ील और पेरू की सीमा पर इन आदिवासियों के अस्तित्व का एक ठोस सबूत है और इस बात का भी कि मनुष्य ने भले ही कितनी ही प्रगति क्यों न कर ली हो अभी भी धरती पर ऐसे कोने मौजूद हैं जहां मनुष्य नहीं पहुंच सका है.

जंगलों की कटाई इन आदिवासियों के लिये ख़तरा

अभियान से जुड़े ब्राज़ीलियाई अधिकारी ख़ोसे कार्लो मैरिलेस बताते हैं कि जंगलों की अवैध कटाई से इन आदिवासियों को बहुत ख़तरा है. इस इलाके में जो हो रहा है वह प्रकृति, आदिवासियों, पेड़ पौधों पर अत्याचार है, एक अपराध है.

बॉन में जैव विविधता सम्मेलन

जर्मनी के बॉन शहर में एक तरफ जैविक विविधता को बचाने की कोशिशें जारी हैं, भाषण, बातें, वादे, हो रहे हैं खरबों की सहायता राशि दिये जाने की घोषणाएं हो रही हैं तो दूसरी तरफ़ ब्राज़ील के जंगलों में नए आदिवासियों का मिलना, उन जंगलों की अवैध कटाई इसका जीवंत उदाहरण हैं कि सम्मेलनों में हुई घोषणाओं को जब तक अमल में लाया जाएगा तब तक न जाने कितनी प्रजातियां इस धरती से हमेशा के लिये ग़ायब हो चुकी होंगी. जंगलों की कटाई न केवल जीवों, पेड़ पौधों का आवास बरबाद करती है बल्कि उन जंगलों पर निर्भर आदिवासियों का भी. जर्मनी में पर्यावरण और विकास फोरम के युर्गन मायर कहते हैं कि गांवों में समस्या को अनदेखा किया जाता है, वहां लाखों हैक्टेर जंगल हर साल साफ हो जाते हैं. यह जैव विविधता को सबसे बड़ा ख़तरा है. कभी न कभी हमें ख़ुद से ये सवाल पूछना चाहिये, कि इन सबसे क्या होगा.भारत में भी आदिवासियों के हाल बुरे

ब्रिटिन्डी जैना एक्शएड संस्था हैदराबाद में आदिवासियों के अधिकारों के लिये काम कर रही हैं उनका मानना है कि आदिवासियों को सही लाभ कभी मिल ही नहीं पाता. उससे भी बड़ी बात कि अगर वे जीवित रहेंगे तभी तो लाभ उठा पाएंगे. स्टेफान कोरी सरवाईवल इंटरनेशनल के निदेशक हैं बताते हैं कि दुनिया को जागने की ज़रूरत है ताकि अंतरराष्ट्रीय क़ानून के मुताबिक़ इन आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा की जा सके और इन्हें ख़त्म होने से बताया जा सके. आज भी दुनिया भर में सौ से ज़्यादा आदिवासी जातियां हैं जिसकी आधी ब्राज़ील या पेरू में रहती हैं कोरी कहते हैं कि अगर इन आदिवासियों को उनके प्रकृतिक आवास से बाहर निकाला जाना उनके अस्तित्व के लिये बड़ा ख़तरा है.