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म्यूजियम जाइए, सेहत बनाइए, खुश रहिए

२४ मई २०११

जो लोग म्यूजियम या कंसर्ट में जाते हैं, ड्रामे में हिस्सा लेते हैं या कोई यंत्र बजाते हैं, वे लोग अपनी जिंदगी में ज्यादा खुश रहते हैं. खुशी के इस पैमाने में पैसा कोई रोल अदा नहीं करता और न ही पढ़ाई लिखाई.

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तस्वीर: AP

महामारी विज्ञान और सामुदायिक स्वास्थ्य पर ब्रिटिश मेडिकल एसोसिएशन की पत्रिका की जो स्टडी मंगलवार को जारी की गई, उसके मुताबिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शामिल होने और खुश रहने के इस रिश्ते में पुरुष और महिलाओं की भूमिका अलग अलग है.

इसमें कहा गया है कि पुरुष किसी कंसर्ट में जाकर सुनना पसंद करते हैं या फिर म्यूजियम में जाकर चीजों को देखना पसंद करते हैं. इससे उनकी सेहत अच्छी रहती है लेकिन स्त्रियों में बात अलग है. वे इन कलाओं में हिस्सा लेना चाहती हैं. वे वाद्य यंत्र बजाना चाहती हैं या किसी ड्रामे में रोल करना चाहती हैं. इससे उनकी सेहत अच्छी होती है.

नॉर्वे की विज्ञान और तकनीक यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों की इस टीम ने कोएनराड क्यूपर के नेतृत्व में काम किया. उन्होंने नॉर्वे के करीब 50,000 लोगों से बातचीत की. इन लोगों से विस्तार में बात की गई. उनसे पूछा गया कि वे अपना खाली वक्त कैसे बिताते हैं, वे अपनी सेहत के बारे में क्या सोचते हैं और उन्हें जीवन से क्या शिकायत है.

इसके बाद जो नतीजा सामने आया, उसने रिसर्चरों की टीम को चौंका दिया. न सिर्फ यह पता चला कि सांस्कृतिक गतिविधियों का स्वास्थ्य से सीधा लेना देना है, बल्कि यह भी पता चला कि पुरुष अगर चीजों को देखना चाहते हैं तो महिलाएं उन्हें परफॉर्म करना चाहती हैं. उन्हें इस बात से भी ताज्जुब हुआ कि इस मामले में पढ़ाई लिखाई का स्तर या अमीर गरीब होना कोई मायने नहीं रखता.

स्टडी में कहा गया, "इन तथ्यों को समझने के बाद और सामाजिक आर्थिक स्तर पर नजर डालने के बाद ऐसा पता लगता है कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने से अच्छा स्वास्थ्य हासिल हो सकता है. इससे अवसाद की संभावना कम होती है और ज्यादा संतुष्टि मिलती है."

रिपोर्टः एएफपी/ए जमाल

संपादनः ओ सिंह

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