यूरोप को मच्छरों का खतरा
२४ अप्रैल २०१२ग्लोबल वार्मिंग के चलते पश्चिमोत्तर यूरोप और बालकान में बीमारी फैलाने वाले एशियाई टाइगर मच्छरों की तादाद बढ़ सकती है. ये मच्छर गर्मियों वाले माहौल में होते हैं और यूरोप में तापमान के बढ़ने से वे यहां भी जी सकेंगे. इसकी पुष्टि ब्रिटेन और बेल्जियम के वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च के बाद की है. रिसर्च के नतीजे रॉयल सोसायटी की पत्रिका इंटरफेस में प्रकाशित किए गए हैं. टाइगर मच्छरों को डेंगू या चिकुनगुनिया बुखारों का वाहक माना जाता है और इस लिहाज से वे बहुत खतरनाक होते हैं. इन बीमारियों में सर और पूरे शरीर में बुरी तरह दर्द होने लगता है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि 1990 से 2009 के बीच में फ्रांस, इटली और बेनेलक्स देशों के अलावा जर्मनी के सीमांत क्षेत्रों में मौसम में ऐसा बदलाव हुआ है जो टाइगर मच्छरों के लिए फायदेमंद हैं. इन इलाकों में जाड़ों का तापमान बढ़ गया है. इसके अलावा बरसात ज्यादा होने लगी है. वैज्ञानिकों का कहना है कि खासकर इटली में इस बीच इन मच्छरों ने अपना बसेरा बना लिया है. वे तेजी से फैलने वाले दुनिया के 100 जीवों में से एक है.
इसके विपरीत यूरोप के स्पेन या कोरसिका जैसे उन इलाकों में जहां सूखे के दिनों की संख्या बढ़ रही है, टाइगर मच्छरों के लिए हालात बिगड़े हैं. मच्छरों के फैलने की यह रिपोर्ट दिसंबर 2011 के आंकड़ों पर आधारित है. लिवरपुल यूनिवर्सिटी के रिसर्चर साइरिल कामिनेड की टीम का मानना है कि 2030 से 2050 तक मौसम इतना बदल जाएगा कि यूरोप के बड़े हिस्से में टाइगर मच्छरों के जीने का माहौल मौजूद होगा.
इसके बावजूद बर्लिन की चैरिटी यूनिवर्सिटी क्लिनिक के ट्रॉपिकल मेडिसीन इंस्टीट्यूट कि प्रमुख प्रोफेसर गुंडेल हार्म्स स्विंगेनबर्गर चिंता की कोई वजह नहीं देखतीं. उनका कहना है, "मच्छर अकेले कुछ नहीं करते. उन्हें इंफेक्शन के स्रोत की जरूरत होती है." उनका कहना है कि जर्मनी के लोगों को फिलहाल कोई खतरा नहीं है, लेकिन भविष्य में ऐसा खतरा पैदा हो सकता है.
टाइगर मच्छरों के पैरों और पीठ पर सफेद धारियां होती हैं. वे मूल रूप से दक्षिण पूर्वी एशिया से आते हैं. इस्तेमाल हो चुके टायरों में अंडा देकर या एशिया से आने वाले फूलों के जरिए वे दूसरे देशों में पहुंच रहे हैं.
एमजे/एनआर (डीपीए)