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श्टुटगार्ट में बॉलीवुड का जमावड़ा

१९ जुलाई २०१२

बॉलीवुड के दीवाने केवल भारत में ही नहीं, दुनिया भर में फैले हैं और जर्मनी इस दीवानगी में काफी आगे है. जर्मन शहर श्टुटगार्ट में इंडियन फिल्म फेस्टिवल इसी दीवानगी की झलक है.

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तस्वीर: DW/I.Bhatia

भारतीय फिल्मों का यह फेस्टिवल पिछले नौ सालों से लगातार श्टुटगार्ट में चल रहा है. हालांकि अब तक इसे 'बॉलीवुड एंड बियोंड' के नाम से जाना जाता था, लेकिन इस साल इसका नाम बदल कर 'इंडियन फिल्म फेस्टिवल' कर दिया गया है. फेस्टिवल के आयोजक ऑलिवर मान नाम बदलने के बारे में बताते हैं, "हम लोगों को यह बताना चाहते हैं की भारतीय सिनेमा केवल बॉलीवुड नहीं है. हमने अपने फेस्टिवल में मसाला फिल्मों की संख्या कम की है. अब हम शॉर्ट और डॉक्यूमेंट्री फिल्मों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं."

फेस्टिवल के उद्घाटन समारोह में मंगेश हडावले की फिल्म 'देख इंडियन सर्कस' दिखाई गयी, जो मसाला फिल्मों से काफी दूर है. हाल ही में इस फिल्म के अभिनेता नवजुद्दीन सिद्दीकी और अभिनेत्री तनिष्ठा चटर्जी को न्यूयॉर्क फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट एक्टर और बेस्ट एक्ट्रेस का पुरस्कार दिया गया. फिल्म की स्क्रीनिंग के दौरान मेट्रोपॉल सिनेमा का हॉल खचाखच भरा रहा. कई दर्शकों को तो जमीन पर बैठ कर ही फिल्म देखनी पड़ी. खुद निर्देशक मंगेश पूरी स्क्रीनिंग के दौरान दरवाजे पर ही खड़े रहे.

Mangesh Hadawale und Tanishtha Chatterjee
मंगेश हडावले और तनिष्ठा चटर्जीतस्वीर: DW

'देख इंडियन सर्कस' राजस्थान के एक छोटे से गांव में रहने वाले एक परिवार की कहानी है जो अपने बच्चों को सर्कस दिखाने के लिए पैसे जमा करता है. फिल्म खत्म होने के बाद मंगेश ने कहा की वह अपनी फिल्म के जरिए देश में चल रही सर्कस को लोगों तक लाना चाह रहे हैं, "एक सर्कस वह है जो आम लोगों की जिंदगियों में चल रही है. रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें जिस तरह जूझना पड़ता है, वह सर्कस का तमाशा ही है. और एक सर्कस वह है जो हमारी संसद में वोट के भूखे नेताओं के बीच चलती है."

फिल्म देखने के लिए भारतीयों के साथ साथ कई जर्मन भी यहां पहुंचे. रंग बिरंगी साड़ियों और सलवार कुर्ते के साथ जर्मनी के लोग पूरी तरह बॉलीवुड के रंग में डूबे हुए नजर आए. हालांकि मसाला फिल्मों की संख्या को कम रखने की कोशिश है, लेकिन शाहरुख खान के बिना जर्मनी में बॉलीवुड अधूरा सा लगता है. शाहरुख की डॉन 2 को फेस्टिवल में दिखाई जा रही है. इसी तरह कुणाल कोहली की 'तेरी मेरी कहानी' भी यहां दिखाई जा रही है. तीसरी बार श्टुटगार्ट पहुंचे कुणाल कहते हैं, "इस फेस्टिवल की खास बात यह है कि यहां केवल भारतीय फिल्में दिखाई जाती हैं और मैं मानता हूं कि फिल्म निर्माताओं को ऐसी जगहों पर आ कर भारतीय सिनेमा का प्रचार करना चाहिए."

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कुणाल कोहलीतस्वीर: DW/I.Bhatia

फेस्टिवल में मशहूर फिल्म निर्माता मणिरत्नम की पत्नी सुहासिनी मणिरत्नम मुख्य अतिथि के रूप में पहुंची हैं. सुहासिनी अपने साथ तमिल फिल्म 'सिन्धु भैरवी' ले कर पहुंची हैं, जिसे 'स्पेशल तमिल सेक्शन' में रखा गया है. सुहासिनी बताती हैं, "ऐसा केवल फिल्म फेस्टिवल में ही हो पता है जहां आप इतने तरह के लोगों से मिल पाते हैं जो अलग अलग तरह का सिनेमा बनाते हैं." सुहासिनी फेस्टिवल की ज्यूरी का भी हिस्सा हैं. खुद चेन्नई फिल्म फेस्टिवल के आयोजन से जुड़ी सुहासिनी कहती हैं, "यहां आ कर मुझे बहुत कुछ सीखने को मिलता है. हालांकि हमारे यहां सब काम बहुत बड़े स्तर पर होते हैं और ऐसा यहां नहीं है, लेकिन जूरी में दूसरे लोगों से मिल कर काफी कुछ नया पता चलता है."

पांच दिन तक चलने वाले फेस्टिवल में साठ फिल्में दिखाई जा रही हैं. अलग अलग श्रेणी में कुल सात हजार यूरो की रकम पुरस्कार में दी जाएंगे. मेनस्ट्रीम फिल्मों में डॉन 2 और तेरी मेरी कहानी के अलावा जिंदगी ना मिलेगी दोबारा, एक मैं और एक तू भी दर्शकों का ध्यान अपनी ओर खींच रही हैं. फेस्टिवल के दूसरे दिन की शुरुआत मराठी डॉक्यूमेंट्री 'बिटर सीड्स' से हुई. इसके अलावा 'आई एम कलाम' और 'ऑल इन गुड टाइम' जैसी फिल्में भी दिखाई जा रही हैं. साथ ही हर रोज 'टी टॉक' भी आयोजित किए गए हैं, जिनमें भारतीय सेना, भ्रष्टाचार और किन्नरों जैसे विषयों पर चर्चा की जाएगी.

रिपोर्टः ईशा भाटिया, श्टुटगार्ट

संपादनः एन रंजन

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