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साइकलिंग चैंपियन आर्मस्ट्रॉन्ग की वापसी

५ जुलाई २००९

सात बार 'तूर दे फ्रांस' का ख़िताब जीतने वाले अमेरिका के लैंस आर्मस्ट्रॉन्ग कैंसर से लड़कर इस साल फिर इस सबसे बड़ी साइकल रेस में दिखे. वह शुरुआती दौड़ में दसवें स्थान पर रहे, पर उनकी वापसी से कई उम्मीदें लगाई जा रहीं हैं.

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इस बार पीली जर्सी में नहीं उतरे आर्मस्ट्रॉन्गतस्वीर: AP

अमेरिका के साइक्लिंग सुपरस्टार लैंस आर्मस्ट्रॉन्ग ने 1999 से लेकर 2005 तक लगातार कुल सात बार तूर दे फ्रांस का ख़िताब जीता और परंपरा के अनुसार विश्व स्तर की साइकिल रेसों के विजेता पीली जर्सी पहनकर रेस में हिस्सा लेते हैं. इस साल आर्मस्ट्रॉन्ग ने पीली जर्सी तो नहीं पहनी और तूर दे फ्रांस की शुरुआती रेस में भी दसवें स्थान पर रहे, लेकिन एक बार फिर उन्होंने साबित कर दिया कि कैंसर पर उन्होंने जीत हासिल कर ली है. उनके रेस में हिस्सा लेने का मक़सद कैंसर को लेकर लोगों में जागरूकता पैदा करना है.

दुनिया की सबसे अहम साइकिल रेसों में गिना जाता है तूर दे फ्रांस जो इस साल मोनैको में हो रहा है. वहां पहुंचे मीडिया की नज़रें आर्मस्ट्रॉन्ग पर टिकी हुई थीं. रेस से पहले 20 मिनट के वार्म अप से लेकर उनके कपड़ों तक, हर बात की चर्चा थी. रेस के दौरान रास्ते के किनारो लोग "लैंस" वाले बैनर लहरा रहे थे. हालांकि लोगों और मीडिया के समर्थन को बावजूद आर्मस्ट्रॉन्ग अपना पुराना चमत्कार नहीं दिखा पाए. इस साल रेस की पहली पीली जर्सी स्विट्ज़रलैंड के फाबियान कांसेलारा ने जीती और दूसरे स्थान पर पहुंचे स्पेन के आल्बेर्टो कोंतादोर जो लैंस आर्मस्ट्रॉन्ग की अस्ताना टीम से हिस्सा ले रहे हैं.

2008 में आर्मस्ट्रॉन्ग ने ऐलान किया था कि वह इस साल तूर दे फ्रांस में हिस्सा लेंगे और इसीलिए उन्हें देखने के लिए विश्व भर से बहुत से लोग पहुंचे थे. लेकिन आर्मस्ट्रॉन्ग के पैरों ने उनका साथ नहीं दिया और 15.5 किलोमीटर की रेस में उन्हें 20 मिनट 12 सेकेंड लगे. रेस से पहले आर्मस्ट्रॉन्ग ने कहा, "मैं कुछ परेशान था, लेकिन यह आम बात है. अगर हमारी टीम नहीं भी जीतती है, तो मैं बस इसलिए खुश हूं कि मैं आज यहां उपस्थित हूं. मैं 2005 में इस रेस को ख़त्म कर देता." लेकिन अमेरिकी राज्य टेक्सस के आर्मस्ट्रॉन्ग ने इस रेस और अपने आप से बहुत उम्मीदें नहीं लगाई थीं. उन्होंने माना, " यह रेस मुश्किल है और रास्ता भी कठिन है, तकनीकी तौर पर. और इतने सालों बाद रेस में वापस आने पर यह मुश्किलें होती हैं." आर्मस्ट्रॉन्ग अपनी सारी रेसों में गंभीर रहते थे, लेकिन इस बार उन्होंने कहा कि उन्हें मज़ा आ रहा है.

1996 में 25 साल की उम्र में आर्मस्ट्रॉन्ग के शरीर में कैंसर का पता चला जो उनके फेफड़ों, दिमाग और उनके शरीर के कई हिस्सों तक पहुंच गया था. दिमाग में ट्यूमरों के ऑपरेशन के बाद डॉक्टरों का मानना था कि आर्मस्ट्रॉन्ग ज़्यादा दिन ज़िंदा नहीं रह पाएंगे. लेकिन 1998 में आर्मस्ट्रॉंग एक बार फिर रेस में उतरे और सातवीं बार तूर दे फ्रांस खिताब के विजेता बने. लैंस आर्मस्ट्रॉन्ग फाउंडेशन के ज़रिए आजकल वह लोगों में कैंसर को लेकर जागरूकता पैदा करने में लग गए हैं.

रिपोर्ट- एजेंसियां/एम गोपालकृष्णन

संपादन- ए कुमार