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सींग बने जान के दुश्मन

९ फ़रवरी २०११

वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड और 'ट्रेफिक' की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 2010 में दक्षिण अफ्रीका में शिकारियों ने तकरीबन हर दिन एक गेंडे का शिकार किया और इसकी खास वजह रही गेंडे की नाक.

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तस्वीर: J. Sorges

अकेले दक्षिण अफ्रीका में ही पिछले साल कुल 333 गेंडों को मार डाला गया जिसमें से 10 दुर्लभ काले गेंडे थे जो अब पूरी दुनिया में सिर्फ 3500 के लगभग बचे हैं. पशु संरक्षण के तमाम प्रयासों के बावजूद इतनी बड़ी संख्या में गेंडों का मारा जाना दक्षिण अफ्रीका में अब तक की सर्वाधिक पशु अपराध दर को दर्शाता है.

इस मामले पर वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड के अफ्रीकन राइनो प्रोग्राम के मैनेजर डॉ. जोसेफ ओकेरी बताते है कि 2009 में हुई 122 मौतों की तुलना में 2010 में लगभग तीन गुना अधिक (333) गेंडों को तस्करों ने मौत के घाट उतार दिया. डॉ. ओकेरी का मानना है कि पहले की तुलना में पोचर्स अधिक संगठित और अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे पता चलता है कि इन गेंडों के शिकार के पीछे कोई बड़ा संगठन काम कर रहा है.
शिकार की वजह

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तस्वीर: picture-alliance / dpa

जब इस बात की सघन जांच-पड़ताल की गई तो इसकी वजह दक्षिण एशिया में स्थित वियतनाम में मिली. एशियाई देशों में गेंडे के सींग और अन्य पशु अंगों की भारी मांग है, पर इसके व्यापार पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के चलते इन अंगों की सप्लाई अवैध शिकारी करते हैं. भारी मुनाफे को देख अब इसमें बड़े अपराधी संगठन भी जुड़ गए है जो भारत तथा नेपाल से लेकर जावा और सुमात्रा तक इस काम को अंजाम दे रहे हैं. यही संगठन अब दक्षिण अफ्रीका में भी अवैध शिकार को अंजाम दे रहे हैं.

दरअसल परंपरागत एशियाई चिकित्सा में गेंडे के सींग का उपयोग यौन शक्तिवर्धक दवाईयों बनाने में तो किया ही जाता था पर अब यह भी दावा किया जाने लगा है कि इसके इस्तेमाल से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का उपचार भी संभव है. बिना किसी वैज्ञानिक प्रमाण के बावजूद लोग इस पर आंख मूंद कर भरोसा कर रहे है जो गेंडों की मौत का कारण बन रहा है.

रोकनी होगी तस्करी
वन्य पशु अंगों की तस्करी और व्यापार रोकने के लिए बनी डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की सहयोगी संस्था ट्रेफिक के अमेरिकी रीजन के क्षेत्रीय निदेशक क्राफोर्ड एलेन का कहना है कि इस समस्या को दूर करने के लिए दो देशों के अधिकारियों को अधिक जिम्मेदारी और तालमेल से काम करना होगा. वह कहते हैं, हमने इस तस्करी को रोकने और इस समस्या पर गंभीर चर्चा के लिए अक्टूबर 2010 में दक्षिण अफ्रीका के पांच अधिकारियों की टीम भी वियतनाम भेजी थी. स्थानीय अधिकारियों को सावधान करने के अलावा हमें इस घृणित व्यापार को इसके स्रोत पर ही रोकना होगा.
दक्षिण अफ्रीका की आय का एक बहुत बड़ा हिस्सा वन्य पर्यटन के जरिए आता है. इस वजह से इस घटना पर चिंता जताते हुए दक्षिण अफ्रीका के ईस्टर्न केप पार्क के प्रमुख बताते हैं कि गेंडों की संख्या बढ़ाने के लिए पार्क तथा पर्यटन विभाग ने वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड के ब्लैक राइनों प्रोग्राम के लिए 20 काले गेंडे देने की योजना बनाई है जिससे लुप्तप्राय होने की कगार पर जा पहुंचे काले गेंड़ों की संख्या को बढ़ाया जा सके.
खतरे में प्रजाति
इसके अलावा दक्षिण अफ्रीका में वन्य पशु संबंधी कानून भी और कड़े कर दिए गए है. पिछले साल अवैध शिकार के मामले में 122 लोगों की गिरफ्तारी भी हुई है.
दक्षिण अफ्रीका वर्तमान में 21 हजार गेंडों का घर है जो दुनिया में कहीं भी पाए जाने वाले गेंड़ों मे सबसे अधिक है. यहां के राष्ट्रीय उद्यानों ने गेंडों के संरक्षण में सफलता भी पाई है. दुनियाभर में पोचिंग और अन्य मानवीय गतिविधियों के चलते आने वाले 30 सालों में दुनियाभर की 25 प्रतिशत स्तनपाई प्रजातियां लुप्त होने का खतरा है.

रिपोर्टः संदीपसिंह सिसोदिया (सौजन्यः वेबदुनिया)

संपादनः ए कुमार

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