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सोच में जहर घोलता है आतंकवाद

२४ जुलाई २०११

नॉर्वे में आतंकी हमले में 90 से अधिक लोग मारे गए हैं. हमले के पीछे इस्लामी कट्टरपंथियों का हाथ होने का संदेह हुआ, न कि ईसाई कट्टरपंथी का. समीक्षक फेलिक्स श्टाइनर का कहना है कि आतंक हमारे दिमाग में जहर भर रहा है.

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बेहरिंग ब्रेविकतस्वीर: picture alliance/dpa

आतंकवाद इस आयाम में अवाक करता है, चाहे वह दक्षिणपंथी हो या वामपंथी, एक या दूसरे धर्म के कट्टरपंथियों का हो या संगठित गुटों का या किसी अकेले पागल का. और आतंकवाद का शिकार होने वाले व्यक्ति के लिए यह व्यर्थ है कि किस विचारधारा के लिए या किसके नाम पर उसे अपनी जान देनी पड़ी है या वह घायल हुआ है. क्योंकि आतंकवाद के शिकार निर्दोष होते हैं. और इसीलिए आतंकवाद इतना घिनौना है, चाहे उसे किसी ने अंजाम दिया हो.

आतंक इसलिए भी आतंक हो जाता है कि उसका प्रत्यक्ष शिकारों से परे भी असर होता है. आतंक डर पैदा करता है. मेरा शहर, मेरा विमान, या जिस सभा में भाग लेने मैं जा रहा हूं कहीं अगला लक्ष्य तो नहीं हैं? अक्सर राजनीतिज्ञों की मांग होती है कि आतंकवाद से डर कर हम अपना व्यवहार न बदलें. नहीं तो आतंक की जीत हो जाएगी. ये सच है.

लेकिन आतंकवादवाद और ज्यादा डर पैदा करता है. संभावित अपराधियों से डर. मेरा पड़ोसी या ट्रेन में मेरे बगल में बैठा व्यक्ति खतरनाक हैं क्या, क्योंकि उसकी दाढ़ी है या उसने अलग सा लिबास पहन रखा है, मुसलमान है या परदेशी दिखता है. साफ है कि आतंकवाद सोच में जहर घोलता है. डर से पूर्वाग्रह बनते हैं और भारी डर से फोबिया. एक स्वतंत्र, लोकतांत्रिक समाज में ऐसा नहीं होना चाहिए.

बहुत से यूरोपीय देशों में हाल में हुए चुनावों में विदेशी या इस्लाम विरोधी दलों की भारी जीत की तरह नॉर्वे में हमले के बाद के घंटों ने दिखाया है कि कि यूरोप में सोच कितनी जहरीली हो चुकी है. सब कुछ कितना फिट बैठता है, नॉर्वे के सैनिक अफगानिस्तान में तैनात हैं, वह लीबिया पर नाटो के हमलों में भाग ले रहा है. ऐसी स्थिति नॉर्वे की राजधानी में हुए हमले के लिए सिर्फ एक मुस्लिम ही जिम्मेदार हो सकता था. उसके दो ढ़ाई घंटे के बाद एक यूथ कैंप पर गोलीबारी. नतीजा साफ था, क्या यह अल कायदा का तरीका नहीं है , कई जगहों पर सिलसिलेवार हमले?

Flash-Galerie Doppelanschlag Norwegen
यूथ कैंप में आए युवातस्वीर: dapd

अगली खबरों से जर्मन टेलिविजन के विशेषज्ञ डगमग नहीं हुए. इस बीच गिरफ्तार व्यक्ति के पास नॉर्वे की नागरिकता है. लेकिन नागरिकता इस बीच बहुत से आप्रवासियों ने ले ली है. संदिग्ध भूरे बालों और नीली आंखों वाला है? तो वह इस्लाम धर्म स्वीकार करने वाला स्थानीय निवासी होगा. धर्म परिवर्तन करने वाले खास तौर पर अधिक चरमपंथी होते हैं. जर्मनी में यह बात लोगों को चार साल पहले सावरलैंड ग्रुप की गिरफ्तारी के बाद से पता है. जर्मनी में शांति से रहने वाले मुसलमानों ने जर्मन टेलिविजन में ऐसे बयान सुनकर क्या सोचा होगा.

इस बीच हमें पता है, गिरफ्तार हुआ व्यक्ति निश्चित तौर पर मुसलमान न होकर रैडिकल ईसाई है. बाकी जानकारियों के लिए अभी बहुत जल्दबाजी होगी. तय सिर्फ इतना है - आतंकवाद घृणित होता है, मुख्य रूप से शिकारों की वजह से भी. खासकर आतंकवाद के शिकारों की वजह से.

समीक्षा: फेलिक्स श्टाइनर/मझा

संपादन: एम गोपालकृष्णन

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