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सोने के पीछे भागते बैंक

५ अगस्त २०११

किसी जमाने में वित्तीय संकट से निपटने के लिए बैंक और दूसरे संस्थान जम कर सोना खरीदते थे. आज के जमाने में यूरो और डॉलर संकट से निपटने के लिए इस सुनहरी धातु को सबसे अच्छा उपाय समझा जाता है.

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तस्वीर: picture-alliance/ dpa

फ्रैंकफर्ट के निजी मेत्सलर बैंक के फ्रीडरिष फॉन मेत्सलर का कहना है, "जब भी संकट आता है तो लोग समझते हैं कि सोने से फायदा हो सकता है. अभी भी दुनिया के अलग अलग हिस्सों में देखें, तो संकट दिखता है." सोने के पीछे भागते निवेशकों की वजह से सोने की कीमत पिछले दो साल में दोगुनी हो गई है.

बदलता वक्त

जर्मन बैंक कॉमर्सबैंक से जुड़े युगेन वाइनबर्ग का कहना है, "जब तक अमेरिका और यूरोप में कर्ज संकट पूरी तरह खत्म नहीं होता है, तब तक सोना ऊपर की ओर चढ़ता रहेगा." 1990 के दशक के आखिर में सोने की कीमत अभी से पांच गुना कम हुआ करती थी. उस वक्त बैंकों में सोना इस तरह नहीं जमा किया जाता था. मिसाल के तौर पर बैंक ऑफ ऑस्ट्रेलिया ने 1997 में छह महीने के अंदर 167 टन सोना बेच दिया था. इसके बाद सोने की कीमत और नीचे चली गई.

दुनिया भर में सोने का उत्पादन घटा और खानें बंद हुईं. सिर्फ दक्षिण अफ्रीका में दो लाख खनिकों को नौकरी गंवानी पड़ी. अमेरिकी सेवा ब्लूमबर्ग के मुताबिक साल 2000 में सोने की कीमत प्रति आउंस सोने की कीमत घट कर 272 डॉलर रह गई.

Goldbarren im Tresor
तस्वीर: picture-alliance/ dpa

लेकिन 9/11 के बाद बदलाव आया. बाजार को मंदी से बचाने के लिए उसमें पूंजी बहाई गई. ब्याज दर शून्य के आस पास पहुंच गई, महंगाई का साया लौट आया. खाने पीने के चीजों की कीमतें बढ़ने लगीं और अमेरिका में घरों की कीमत भी बढ़ गई.

असुरक्षा से मांग बढ़ी

उस घटना के बाद से निवेश बैंकरों ने तीन बार इस बात को नोट किया कि सोने में विपत्ति के वक्त उछाल आता है. 2008 में जब अमेरिकी बैंक लेमन ब्रदर्स दीवालिया हो गया, साल 2010 में जब ग्रीस भयंकर वित्तीय संकट में फंसा और 2011 में जब यूरोपीय संघ अपने सदस्य देशों आयरलैंड, पुर्तगाल और स्पेन के वित्तीय संकट को बचाने के लिए परेशान दिखे.

Goldbarren im Schaubergwerk Merkers
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और इसके बाद से ही सोने की रफ्तार में कोई कमी नहीं आई है. कॉमर्सबैंक के विश्लेषकों का कहना है कि सोना किसी माल से बढ़ कर है. लेकिन बाद की हलचलों से पता लगता है कि सोना सिर्फ महंगाई के खिलाफ सुरक्षा और आर्थिक खतरे से निपटने का औजार है, बल्कि ऐसी मुद्रा के तौर पर देखी जा सकती है, जो विश्व की दो महत्वपूर्ण मुद्राओं डॉलर और यूरो के कमजोर होने से मजबूत होती जा रही है.

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निवेश सलाहकार विलहेम पिनेमन इस बात से राजी हैं. वह 2005 से अपने ग्राहकों के लिए सोने के बिस्कुट खरीद रहे हैं. उनका कहना है, "मेरे ग्राहक इस बात को मानते हैं कि नोटों से कहीं ज्यादा सोने की कीमत बढ़ती है." लेकिन कुछ लोग इस पर डर भी जताते हैं. बर्लिन के क्विरिन बैंक की सुजाना श्टाइनमन का कहना है, "मुझे लगता है कि सारा पैसा सोने में लगा देना बड़ी जोखिम है और इस बात को सभी लोग नहीं समझ पा रहे हैं."

बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं का रोल

जर्मनी के लैंडसबैंक बाडेन वुर्टेमबर्ग का अनुमान है कि अगले साल मध्य तक सोने की कीमत बढ़ती रहेगी. समझा जाता है कि बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं की केंद्रीय बैंकों की वजह से सबसे ज्यादा कीमतें बढ़ेंगी. मिसाल के तौर पर मेक्सिको की बैंक ने तीन महीने के अंदर 93 टन सोना खरीदा है. चीन, रूस, भारत और थाइलैंड जैसे देश भी सोने को जमा कर रहे हैं. जबकि औद्योगिक देशों ने अपना सोना बेचना लगभग बंद कर दिया है.

NO FLASH Ausstellung "Gold" im "American Museum of Natural History" in New York
तस्वीर: AP

विश्व स्वर्ण काउंसिल के मुताबिक अमेरिका अपने भंडार में 8133 टन सोना लिए बैठा है, जबकि जर्मनी 3401 टन. दुनिया भर के सभी केंद्रीय बैंकों के पास करीब 27300 टन सोना पड़ा है.

अगर इसमें अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और अंतरराष्ट्रीय सेटेलमेंट बैंक के खातों को जोड़ दिया जाए, तो इनके पास करीब 30,800 टन सोना है. जब से रिकॉर्ड रखा जा रहा है, तब से करीब 1,65,000 टन सोने का खनन किया गया है. यानी इसका पांचवां हिस्सा बैंकों के पास है.

रिपोर्टः रोल्फ वेंकेल (ए जमाल)

संपादनः एस गौड़

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