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सोशल मीडिया पर नकेल न कसें: ईयू

४ मई २०१२

भारत में भले ही सोशल मीडिया पर पाबंदी लगाने को लेकर लंबी चौड़ी बहस चल रही हो लेकिन यूरोपीय यूनियन नहीं चाहता है कि इंटरनेट वेबसाइट पर किसी तरह की नकेल कसी जाए.

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तस्वीर: Fotolia/N-Media-Images

यूरोपीय संघ में विदेश नीति प्रमुख कैथरीन एश्टन ने अपने संदेश में कहा, "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मानवाधिकार पर वैश्विक घोषणापत्र का प्रमुख पहलू है. इसके तहत हर किसी का अधिकार है कि वह किसी हस्तक्षेप के बिना सूचनाएं एकत्रित कर सकता है."

किसी तरह का सेंसर या अखबारों के संपादकों, लेखकों या पत्रकारों या फिर ब्लॉगरों को किसी तरह से परेशान करने को स्वीकार नहीं किया जा सकता. उन्होंने एक बयान जारी कर कहा कि इनके खिलाफ हिंसा का इस्तेमाल या उन्हें गिरफ्तार करना सही कदम नहीं है.

यूरोपीय संघ ने कहा कि वह पत्रकारों के काम का बहुत सम्मान करता है क्योंकि वे बेहद जटिल परिस्थितियों में बिना किसी का पक्ष लिए सूचनाएं देते हैं. एश्टन ने कहा कि वह सभी राष्ट्रों से अपील करती हैं कि वे पत्रकारों के काम में बाधा न पहुंचाए और न ही उनके लिए ऐसे हालात बनाए कि उन्हें काम करने में डर लगे.

एश्टन का कहना है, "इंटरनेट और दूसरी मीडिया को लेकर भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लागू होती है. यूरोपीय संघ किसी भी तरह इन पर पाबंदी लगाए जाने के खिलाफ है."

Catherine Ashton
कैथरीन एश्टनतस्वीर: picture-alliance/dpa

भारत सरकार ने पिछले साल में सोशल मीडिया पर तेजी से नकेल कसने की तैयारी की है. यहां तक कि कुछ मामले अदालत भी चले गए हैं और फेसबुक तथा गूगल जैसी लोकप्रिय साइटों से कहा गया है कि वे कुछ आपत्तिजनक सामग्री हटा लें. सारा मामला तब सामने आया, जब कुछ लोगों ने सरकार में शामिल बड़े नामों को लेकर सोशल मीडिया पर अपना गुस्सा जाहिर करना शुरू कर दिया.

इस बात को लेकर भारत में लंबी बहस छिड़ी है. कुछ लोगों का मानना है कि सोशल मीडिया पर कुछ लगाम लगाया जाना जरूरी है, जबकि दूसरे इसमें किसी भी तरह की बाधा लगाने के खिलाफ हैं. भारत सरकार की राय है कि गूगल, फेसबुक और माइक्रोसॉफ्ट को किसी भी सामग्री को ऑनलाइन डालने से पहले उसे चेक करना चाहिए.

भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष जस्टिस मार्कंडेय काटजू का कहना है कि सोशल मीडिया के लिए एक लक्ष्मण रेखा होनी चाहिए. वह एक ऐसी समिति बनाए जाने की बात करते हैं, जो सोशल मीडिया पर नजर रख सके.

चीन ने भी सोशल मीडिया पर जबरदस्त पहरा लगा रखा है. यहां तक कि कई अंतरराष्ट्रीय वेबसाइट तो चीन में अपनी साइट भी नहीं दिखा पाते हैं. वैसे चीन का मानवाधिकारों को लेकर भी खराब रिकॉर्ड रहा है. दूसरी तरफ अमेरिका और यूरोपीय देशों में सोशल मीडिया पर कोई बंदिश नहीं है और इन्हें खुला छोड़ दिया गया है. मजेदार बात यह है कि जिन देशों में कोई बंदिश नहीं है, वहां की प्रेस भी भारत से मीलों आगे है.

रिपोर्टः ए जमाल (पीटीआई)

संपादनः ओ सिंह

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