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यूं ही डिप्रेशन की दवाई खाए जाते हैं अमेरिकी

७ फ़रवरी २०११

अमेरिका में जो लोग अवसाद को रोकने वाली दवाइयां खाते हैं, उनमें से एक चौथाई तो बिना किसी डॉक्टरी सलाह के ही इन्हें खाए जाते हैं. एक अध्ययन के मुताबिक दवा लेने वालों में 25 फीसदी अमेरिकियों की जांच हुई ही नहीं.

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तस्वीर: Fotolia/Jasmin Merdan

यूं बिना किसी सलाह के दवा लेने का नतीजा खतरनाक हो सकता है. इस बारे में कनाडा की यूनिवर्सिटी ऑफ मानीटोबा में अध्ययन हुआ है. यूनिवर्सिटी में मेडिकल की छात्रा जीना पागुरा और उनके साथियों ने यह अध्ययन किया है. जीना कहती हैं, "जिन फायदों के लिए एंटीडिप्रेशन दवाइयां ली जाती हैं, हम नहीं कह सकते कि वे वाकई इतनी बड़े हैं या नहीं कि बिना किसी जांच के ही दवाई लेने का खतरा उठाया जाए."

जर्नल ऑफ क्लिनिकल साइकॉलजी में छपे इस अध्ययन में पागुरा और उनकी टीम ने एक सर्वेक्षण के जरिए डाटा जुटाकर पेश किया है. इस सर्वेक्षण के लिए अमेरिका में 2001 से 2003 के बीच 20 हजार से ज्यादा लोगों से बातचीत की गई.

सर्वे में हर 10 में से एक व्यक्ति ने बताया कि वह पिछले एक साल से डिप्रेशन के लिए गोली खा रहा है. और गोली खाने वालों में से 25 फीसदी ऐसे हैं जिन्होंने इस बारे में डॉक्टर से कभी सलाह नहीं ली. आमतौर पर डॉक्टर उन्हीं को दवाई देते हैं जो डिप्रेशन की गंभीर हद में पहुंच जाते हैं.

पागुरा बताती हैं, "ये लोग डिप्रेशन से जुड़ी समस्याओं के लिए डॉक्टरों के पास जा रहे हैं. इन्हें सोने में परेशानी, खराब मूड, रिश्तों में मुश्किलें जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि गोलियां इन परेशानियों में मददगार साबित हो सकती हैं, लेकिन ये समस्याएं तो वक्त के साथ खुद भी ठीक हो सकती हैं. या फिर साइकोथेरेपी से ही इन्हें हल किया जा सकता है."

नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ के मुताबिक अमेरिका में डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोग डिप्रेशन की गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं. इसके अलावा चार करोड़ लोग तनाव के शिकार हैं. हालांकि पागुरा के सर्वे में सभी मानसिक बीमारियों को शामिल नहीं किया गया.

रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार

संपादनः ए कुमार

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