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नई तकनीक ने लोगों से छीन ली नींद

८ मार्च २०११

टीवी, सेलफोन और लैपटॉप की कीमत में अब नींद भी जुड़ गई है. हर इंसान की जरूरत बनते जा रहे ये गैजेट लोगों से उनकी नींद छीन रहे हैं. तकनीक का विकास लोगों को उनकी दैनिक जिंदगी की जरूरी चीजों से दूर ले जा रहा है.

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तस्वीर: Fotolia/somenski

अमेरिका समेत दुनिया भर के ज्यादातर देशों में सोने से पहले टीवी देखना एक जरूरी काम बन गया है. इसके अलावा अब इसमें विडियो गेम्स खेलना, देर रात ईमेल चेक करना और इंटरनेट पर चैट करना या फिर एसएमएस करना रोजमर्रा की आदतों में शुमार हो रहे हैं. नतीजा लोगों के सोने में बाधा आ रही है. वॉशिंगटन की 'नेशनल स्लीप फाउंडेशन' एनएसएफ के उपाध्यक्ष रसेल रोजेनबर्ग ने एक बयान जारी कर कहा है, "दुर्भाग्य से सेलफोन और कंप्युटर जैसे उपकरण जो हमारी जिंदगी को उपयोगी और मजेदार बनाने के लिए इजाद किए गए हैं, वो हमसे हमारी नींद छीन रहे हैं. नतीजा रात में कम देर सोना और फिर उसका असर अगले दिन के कामकाज पर."

Flash-Galerie Mobile World Congress Barcelona 2011
तस्वीर: AP

एनएसएफ के ताजा सर्वे में शामिल 95 फीसदी लोगों ने कहा कि वो रात को सोने से पहले कम से कम एक घंटे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट के साथ वक्त गुजारते हैं, इनमें से दो तिहाई लोगों का मानना है कि इस वजह से सप्ताह के कामकाजी दिनों में उनकी नींद पूरी नहीं हो पाती. हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के चार्ल्स जाइसलर ने बताया कि सोने से पहले कृत्रिम रोशनियों के दायरे में रहने से जागरूकता बढ़ जाती है और मिलेटोनिन का बनना कम हो जाता है. मिलेटोनिन हार्मोंस नींद लाने में मददगार होता है. एक इंटरव्यू में जाइसलर ने कहा, "तकनीक हमारे बेडरूम तक घुस आया है. बेडरूम में तकनीक की ये घुसपैठ लोगों के लिए जरूरी नींद के घंटों में कमी ला रही है."

हर महीने नींद में 50 घंटे की कमी

46 से 64 साल के बीच की उम्र वाले लोगों पर इसका सबसे ज्यादा बुरा असर देखने को मिला है. ये लोग हर रोज सोने से पहले टीवी देखते हैं. 13 से 18 साल के बीच की उम्र वाले एक तिहाई से ज्यादा और 19 से 29 साल की उम्र वाले 28 फीसदी युवा सोने से पहले विडियो गेम खेलने में वक्त जाया करते हैं. 61 फीसदी लोगों ने ये भी कहा कि वो सप्ताह में एक से ज्यादा बार रात को सोने से पहले अपने लैपटॉप या कंप्युटर का इस्तेमाल करते हैं. इसके अलावा हमेशा संपर्क में बने रहने की कीमत भी लोगों को अपनी नींद के रूप में चुकानी पड़ रही है क्योंकि अक्सर देर रात को आने वाले फोन कॉल्स और एसएमएस नींद का बेड़ागर्क करते हैं.

Mobilfunkmesse in Barcelona Flash-Galerie
तस्वीर: AP

एनएसएफ के सर्वे का जवाब देने वाले 10 फीसदी बच्चों ने कहा कि सोने के बाद अक्सर रात को आने वाले एसएमएस से उनकी नींद खुलती है. ज्यादातर लोग अपना फोन रात में भी बंद नहीं करते. सबसे ज्यादा बुरी हालत 13 से 18 साल की उम्र वाले बच्चों की है.

नींद के जानकार बताते हैं कि किशोरों को औसतन सवा नौ घंटे की नींद लेनी चाहिए लेकिन ज्यादातर पढ़ने वाले बच्चे सप्ताह के कामकाजी दिनों में औसतन साढ़े सात घंटे की नींद ही ले पा रहे हैं. बच्चों की कम नींद जाइसलर को सबसे ज्यादा परेशान कर रही है. उन्होंने कहा, "बच्चे हर रात डेढ़ घंटे कम सो रहे हैं इसका मतलब है हर महीने नींद में 50 घंटे की कमी, ये नुकसानदायक है."

एनएसएफ के मुताबिक अमेरिकी लोगों में नींद की कमी उनके काम, मूड, परिवार, ड्राइविंग, स्वास्थ्य और सेक्स जीवन पर बुरा असर डाल रही है.एनएसएफ ने कहा है कि मां बाप अगर अपने बच्चों का स्कूल में प्रदर्शन सुधारना चाहते हैं तो उन्हें उनके बेडरूम से मोबाइल और कंप्युटर जैसी चीजें बाहर निकालनी होगी.

रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन

संपादनः ईशा भाटिया

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