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जान का दुश्मन बना महाकीटाणु

३१ मार्च २०११

1928 में जब पहली एंटीबायोटिक दवाई पेन्सिलीन का अविष्कार हुआ तब दुनिया में तहलका मच गया कि बैक्टेरिया को खत्म करने वाला रसायन हमें मिल गया है. लेकिन दवाई खा खा कर बैक्टेरिया ऐसा ताकतवर हुआ कि हमारी नाक में दम कर रहा है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

लंदन की एक लैबोरेटरी में जिद्दी महाकीटाणुओं से लड़ने के लिए वैज्ञानिक डेविड लिवरमोर लड़ रहे हैं. उनके हाथ में बुरी सी बदबू वाली एक कल्चर प्लेट है जो कीटाणुओं से पटी हुई है. क्रीम रंग वाला यह हमारा दुश्मन है. यह बैक्टेरिया ऐसा नया स्ट्रेन है जिस पर अब तक बनी कोई एंटीबायोटिक (प्रतिजैविक) काम नहीं करती.

मोर्चाबंद लड़ाई

सड़क पर स्टीव ओवेन इन ड्रग रेसिस्टेंट बैक्टेरिया के खिलाफ लड़ाई कर रहे हैं ताकि लोगों में ड्रग्स रेसिस्टेंट इन्फेक्शन के बारे में जानकारी बढ़े. ओवेन के पिता एक ऐसे ही बैक्टेरिया का शिकार बने जिस पर किसी भी दवाई ने काम करना बंद कर दिया था. चार साल पहले उनके पिता के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया और उनकी मौत हो गई.

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तस्वीर: picture alliance / dpa

गए तो वह सिर्फ घुटने के ऑपरेशन के लिए थे लेकिन अस्पताल में उन्हें मेथिसिलिन प्रतिरोधी स्टेफीलोकोकस ऑरियुस का संक्रमण हो गया. इसे एमआरएसए के नाम से जाना जाता है. और यह एक ऐसा सुपरबग यानी महाकीटाणु है जिस पर अब तक बनी कोई दवाई काम नहीं करती. 18 महीने तक दर्द से जूझने के बाद यह संक्रमण उनके खून में चला गया और उनके ऑर्गन्स को फेल कर दिया.

अब ओवेन और उनकी पत्नी जुल्स ने प्रतिज्ञा की है कि वह हर महीने मैराथन में दौड़ कर एमआरएसए से लड़ने के लिए उस संस्था के लिए धन जमा करेंगे जो एमआरएसए का इलाज ढूंढने के लिए काम कर रही है. दौड़ खत्म करने के बाद जुल्स कहती हैं, "ऐसा नहीं होना चाहिए था. वह सिर्फ घुटने के ऑपरेशन के लिए गए थे, इससे किसी की मौत तो नहीं होती."

ऐसी दुनिया जहां दवाई बेकार

1928 में जब अलेक्सेंडर फ्लेमिंग ने पहली एंटिबायोटिक का अविष्कार किया था, दुनिया में खुशी फैली कि चलो कुछ मिला जिससे बैक्टेरिया के संक्रमण से लड़ा जा सकता है. लेकिन यह प्रतिजैविक दवाई खा खा कर बैक्टेरिया अब इतना ताकतवर हो गया है कि उस पर कोई दवाई काम ही नहीं करती. अभी तक वैज्ञानिक सफल हुए हैं कि वह बीमारी से पहले और शक्तिशाली प्रतिजैविक दवाइयां बना सकें. लेकिन अब मामला मुश्किल है और टेढ़ा भी.

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माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरकुलोसिसतस्वीर: public domain

केवल अमेरिका में ही एमआरएसए से मरने वाले लोगों की सालाना संख्या 19 हजार है जो एचआईवी और एड्स से मरने वालों की संख्या से भी ज्यादा है. ऐसी ही कुछ हालत यूरोप की भी है. एमआरएसए के अलावा भी सुपरबग्स मिले हैं. क्षय रोग के बैक्टेरिया के ड्रग रेसिस्टेंट होने के कई मामले सामने आए हैं. और एनडीएम 1 की खबर ने तो दुनिया में तहलका मचा ही दिया है. इसके उदाहरण ब्रिटेन और न्यूजीलैंड में सामने आए हैं.

लिवरमोर की प्लेट पर एनडीएम 1 ही है. लिवरमोर ब्रिटेन की हेल्थ प्रोटेक्शन एजेंसी में एनडीएम 1 पर नजर बनाए है. वह कहते हैं, आप क्रमिक विकास के विरुद्ध नहीं जा सकते. आप सिर्फ एक कदम आगे रह सकते हैं.

मुश्किल चुनौती

लेकिन एक कदम आगे रहना कई कारणों से संभव नहीं है. एक तो दुनिया भर में कई तरह की एंटीबायोटिक दवाइयां उपलब्ध हैं. इस कारण बैक्टेरिया को अलग अलग तरह से विकसित होने के हजारों मौके हैं. भारत, थाईलैंड जैसे देशों में एंटीबायोटिक दवाई खरीदने के लिए डॉक्टर की पर्ची की कोई जरूरत नहीं. हालांकि पश्चिमी देशों में इस पर नियंत्रण है लेकिन फिर भी प्रणाली ऐसी है कि डॉक्टर एंटीबायोटिक्स लिख देते हैं.

दुख की बात तो यह है कि फायदा कमाने में लगी दवाई कंपनियां नई नई एंटीबायोटिक बनाए जा रही हैं.

ग्लैक्सो स्मिथ क्लाइन पीएलसी और एस्ट्राजेनेका पीएलसी यह दो ही कंपनियां हैं जिनमें में प्रतिजैविक दवाइयां बनाने का शोध जारी है 1990 के दशक में 20 कंपनियां थीं.

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अस्पताल के उपकरणों में मिलने वाला बैक्टेरिया सुडोनोमोनास एरुगिनोसा.तस्वीर: public domain

विश्व स्वास्थ्य संगठन इस साल 7 अप्रैल को एंटीमाइक्रोबल रेसिस्टेंस दिवस के तौर पर मनाएगा. एमआरएसए एक्शन यूके के डेरेक बटलर कहते हैं कि आधुनिक दवाइयां प्रभावशाली एंटिबायोटिक्स के बगैर काम नहीं कर सकतीं. अगर ये मैजिक बुलेट्स खो जाती हैं तो चिकित्सा विज्ञान 80 साल पीछे चला जाएगा.

अस्पतालों में गंदगी

इन महाकीटाणुओं के खिलाफ लड़ाई में फ्लेमिंग के समय से अब एक बात नहीं बदली है और वह है अस्पताल और निजी साफ सफाई. अगर इस मूलभूत तथ्य का ध्यान रखा जाए तो बहुत सारी मुश्किलें हल हो सकती हैं. ब्रिटेन के अस्पताल में स्टीव ओवेन के पिता भर्ती थे. उनके पिता ने एक बार उनसे कहा कि उन्होंने अस्पताल में चूहा देखा है.

महाकीटाणु उम्र का आदर नहीं करते. डोनाल्ड ओवेन की मौत 82 साल की उम्र में हुई और सुसन फैलन की बेटी सैमी सिर्फ 17 साल की थी जब इन जानलेवा जीवाणुओं ने उसे ग्रस लिया. अप्रैल 2008 में उसे फ्लू जैसे लक्षणों के साथ अस्पताल में भर्ती किया गया था. सैमी पेशेवर फोटोग्राफर बनना चाहती थीं. साधारण से दिखने वाले फ्लू की रिपोर्टें बहुत चिंताजनक थीं. बोन मेरो के परीक्षण से पता चला कि उसे रक्त में होने वाली एक विरली बीमारी है. इस बीमारी को ठीक करने के लिए कीमोथेरेपी की जरूरत थी. एक महीने में कोई इलाज शुरू होता इससे पहले ही सैमी की मौत हो गई.

सफाई मूलमंत्र

एमआरएसए जैसी बीमारियों पर नजर रखना बहुत जरूरी है. लिवरमोर कहते हैं, "यह कहना बहुत अच्छा लगता है कि मैं किडनी ट्रांसप्लांट कर सकता हूं. लेकिन यह इनफेक्शन लेकर अस्पताल की नर्सें यहां वहां जाएं और दूसरे मरीज की जांच से पहले हाथ न धोएं तो यह बहुत ही खतरनाक है. किडनी का ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर के बजाए नर्स की साफ सफाई ज्यादा काम आती है क्योंकि वह ज्यादा मरीजों के संपर्क में आती है."

बात डराने के लिए नहीं है लेकिन भारत एक ऐसा देश है जहां डायरिया जैसी बीमारियां अब भी आम हैं और एंटीबायोटिक्स की बाढ़. ऐसे में एनडीएम जैसे एन्जाइम का मिलना जो किसी भी जीवाणु को दवाई प्रतिरोधक बना दे वहां साफ सफाई और चौकस रहने के अलावा बीमारी से लड़ने का कोई इलाज नहीं है.

रिपोर्टः एजेंसियां/आभा एम

संपादनः वी कुमार

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