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गर्भवती मां की सेहत का बच्चे के मोटापे पर असर

१९ अप्रैल २०११

गर्भवती मां के खाने से कोख में ही बच्चे के डीएनए में बदलाव आ सकते हैं. मां की आदतों का बच्चों पर बुरा असर पड़ सकता है और उनमें मोटापे, हृदय के रोग और डायबिटीज का खतरा बढ़ सकता है.

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तस्वीर: Fotolia/Karen Roach

न्यूजीलैंड में ऑकलैंड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पीटर ग्लकमैन कहते हैं, "यह एक बहुत बड़ी खोज है क्योंकि पहली बार गर्भवती मां के खाने और बच्चों के मोटापे के बीच का संबंध देखने को मिल रहा है. हम जान सकते हैं कि गर्भवती मां का पोषण किस तरह किया जा सकता है." ग्लकमैन कहते हैं कि पोषण हर महिला के लिए अलग होगा लेकिन मोटापे के फैलाव को रोकने में शोध के नतीजों का फायदा उठाया जा सकता है.

डीएनए बदलता है मां की कोख में

शोध में ब्रिटेन, न्यूजीलैंड और सिंगापुर के वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया. इससे पता चला है कि गर्भवती मां के खाने से कोख में बच्चे के डीएनए पर फर्क पड़ सकता है. इस प्रक्रिया को एपीजेनेटिक चेंज कहते हैं. अगर बच्चों के जीन्स मां की कोख में ही बहुत ज्यादा बदलने लगते हैं तो उनका शरीर खाना सही तरह से पचा नहीं पाएंगे जिससे वे जल्दी मोटे होंगे. ग्लकमैन का कहना है कि सात साल की उम्र पहुंचते पहुंचते ऐसे बच्चे औसतन बच्चों से करीब तीन किलो भारी होते हैं. "इस उम्र में तीन किलो बहुत ज्यादा होता है." ग्लकमैन कहते हैं कि बड़े हो जाने के बाद भी कई बार यह मोटापा बच्चों के शरीर से जाता नहीं है और इससे डायबिटीज और दिल का दौरा पड़ने की आशंकाएं बढ़ जाती हैं.

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तस्वीर: dpa

मां के स्वास्थ्य का असर बच्चे पर

शोध में 300 गर्भवती माओं के नाल को नापा गया और फिर छह से लेकर नौ साल के बच्चों के वजन के साथ उसके संबंध को आंकने की कोशिश की गई. ग्लकमैन ने कहा कि उन्होंने यह प्रयोग बार बार दोहराया. शोध से पता चला कि बच्चे के पैदा होते वक्त मां या बच्चे के वजन का छह साल के बाद बच्चे के वजन पर कोई असर नहीं पड़ा. मतलब कि अगर एक पतली महिला एक छोटे बच्चे को जन्म दे सकती है और बाद में वह बच्चा मोटा हो सकता है क्योंकि गर्भ में ही उसकी जीन्स में बदलाव आएं हैं यानी उसमें कुछ एपिजेनेटिक बदलाव हुए हैं.

ग्लकमैन के मुताबिक अगर गर्भवती होने के पहले तीन महीनों में मां ने कम कार्बोहाइड्रेट वाला खाना खाया तो इसका संबंध बाद में बच्चे के वजन से हो सकता है. ग्लकमैन के मुताबिक इसका एक निष्कर्ष यह हो सकता है कि जब कोख में एंब्रायो या बच्चे को कम कार्बोहाइड्रेट वाला खाना दिया जाता है तो उसकी शारिरिक प्रक्रिया यह सोचने लगती है कि बाद में भी उसे कम कार्बोहाइड्रेट मिलेंगे. मतलब कि बच्चे का शरीर कार्बोहाइड्रेट बचाने लगता है और इसे चर्बी में बदल देता है. ऐसा होने से बच्चे के पैदा होने के बाद भी शरीर लगातार कार्बोहाइड्रेट बचाता है, ताकि खाना न मिलने पर शरीर इस चर्बी का इस्तेमाल कर सके.

ग्लकमैन कहते हैं कि इससे पता चलता है कि गर्भवती माओं के स्वास्थ्य पर खास ध्यान देना जरूरी है और केवल मोटे वयस्कों पर ध्यान देने से कुछ नहीं होगा. साथ ही माओं पर ध्यान देने से बाद में बच्चों को गंभीर बीमारियों से भी बचाया जा सकेगा.

रिपोर्टःएजेंसियां/एमजी

संपादनः एन रंजन

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