1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

चेरनोबिल: 26 अप्रैल का वह एक घंटा

२६ अप्रैल २०११

यूक्रेन के चेरनोबिल में हुई परमाणु दुर्घटना को दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु हादसा माना जाता है. एक नजर डालते हैं 26 अप्रैल 1986 के उस एक घंटे पर जिसमें एक टरबाइन टेस्ट होना था लेकिन हुआ कुछ और ही.

https://p.dw.com/p/113qE
एक साधारण टेस्ट बना दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु हादसातस्वीर: AP

26 अप्रैल 1986: चेरनोबिल न्यूक्लियर प्लांट में स्थानीय बिजली के गुल होने की स्थिति को लेकर टेस्ट किया जा रहा था. कोशिश यह थी कि बिजली जाने और डीजल जेनरेटरों के चलने तक एक टर्बोजेनरेटर फीड वॉटर पम्पों को पावर दे सकता है. यह एक समान्य टेस्ट की तरह रात में शुरू हुआ.

रात 12:28 बजे: ऑपरेटर कंप्यूटर को रिप्रोग्राम करने में नाकाम रहे. इसकी वजह से रिएक्ट-4 30 फीसदी पावर पर चलता रहा. इसकी वजह से पैदा होने वाली बिजली में एक फीसदी कमी आई. रिएक्टर में सॉलिड वाटर भर गया. रिएक्टर की स्थिति अस्थिर हो गई.

रात 12:32 बजे: पावर को दोबारा मनचाहे स्तर पर लाने के लिए ऑपरेटर ने कोर से कंट्रोल रॉड्स निकाली. कोर में 26 से कम कंट्रोल रॉड्स बचीं. लेकिन ऐसा करने के बावजूद पावर सिर्फ सात फीसदी बढ़ी. इसकी वजह से 'जेनन पॉयजनिंग इफेक्ट' शुरू हुआ. जेनन I-135 का क्षीण रूप है. I-135 न्यूट्रॉन को सोखता है. इसे पॉयजन यानी जहर कहा जाता है. I-135 परमाणु विखंडन की प्रतिक्रिया को नियंत्रित करने में मदद करता है. सामान्य स्थिति में न्यूट्रॉन सोखने के साथ यह जलकर बहुत ज्यादा क्षीण हो जाता है. लेकिन पावर लेवल 1600 मेगावॉट से नीचे आने पर I-135 जेनन में अपघटित होने लगता है.

रात 1:15 बजे: ऐसी स्थिति में रिएक्टर को ऑटोमैटिक शटिग डाउन से बचाने के लिए इमरजेंसी कोर कूलिंग सिस्टम और दूसरे सिस्टम सर्किट बंद कर दिए गए. जेनन पॉयजनिंग से बचने के लिए फिर ज्यादा कंट्रोल रॉड्स निकाली गईं. इसके बाद कोर में छह कंट्रोल रॉड्स ही बचीं. ऐसी स्थिति में जरूरत पड़ने के बावजूद रिएक्टर को तुरंत शट डाउन नहीं किया जा सकता था.

रात 1:20 बजे: सभी आठ कूलिंग पम्प लो पावर पर चलने लगे. सामान्य परिस्थितियों में छह पम्प पूरी पावर से चलते हैं. लेकिन चेरनोबिल में जारी गड़बड़ी की वजह से रिएक्टर-4 में बहुत कम सॉलिड वॉटर बचा. इस स्थिति में सॉलिड वॉटर के उबलने का खतरा पैदा हो गया.

रात 1:22 बजे: शुरुआती टेस्ट में टरबाईन ट्रिप (अचानक बंद) हो गई. इसकी वजह से आठ में चार दोबारा सर्कुलेशन करने वाले पम्प बंद हो गए. स्क्रैम सर्किट अब भी बंद था.

रात 1:23:35 बजे: ठंडक कम पहुंचने की वजह से प्रेशर ट्यूब खाली पड़ने लगीं. परमाणु प्रतिक्रिया तेज होने लगी और अनियंत्रित ढंग से खूब भाप बनने लगी.

रात 1:23:40 बजे: आपरेटर को आशंका हुई. इस स्थिति को इमरजेंसी मानते हुए सभी कोरों में कंट्रोल रॉड्स डालने और रिएक्टर को शट डाउन करने का बटन दबाया.

रात 1:23:44 बजे: यह आखिरी कदम ही निर्णायक साबित हुआ. रिएक्टर सिस्टम में एक डिजायन संबंधी कमी थी जिस पर पहले किसी का ध्यान नहीं गया था. कंट्रोल रॉड्स के अंतिम छोर पर छह इंच की ग्रेफाइट की टिप लगी थी. यही टिप पहले कोर में गई और वहां से पानी को हटा दिया. पानी हटते ही कुछ ही सेकेंड में पावर बढ़ गई. सामान्य परिस्थितियों में इतनी पावर बढ़ने का असर बहुत कम देर तक रहता है. लेकिन चेरनोबिल का रिएक्टर नंबर चार सामान्य परिस्थितियों में नहीं चल रहा था. चार सेकेंड में पावर 100 गुना बढ़ गई.

रात 1:24 बजे: जबरदस्त गर्मी की वजह से कोर टूटने लगे. ईंधन की बांधने वाले तंत्र में दरारें पड़ गईं. कंट्रोल रॉड चैनल्स का आकार गड़बड़ा गया. लगातार बन रही तेजी से भाप की वजह से स्टीम ट्यूब फट गई. कई टन भाप और पानी सीधे गर्म रिएक्टर में घुस गया. भाप के दबाव की वजह से रिएक्टर में जोरदार धमाका हुआ. धमाका इतना जबरदस्त था कि रिएक्टर के ऊपर सीमेंट से बनाई गई शील्ड उड़ गई. शील्ड रिएक्टर की इमारत के छत को अपने साथ उड़ाते हुए ले गया. इस बड़े सुराख से परमाणु विकिरण सीधे वायुमंडल में फैलने लगा.

रात 1:28 बजे: दमकल की 14 गाड़ियां मौके पर पहुंचीं.

रात 2:00 बजे: रिएक्टर की छत में लगी भंयकर आग को काबू में किया गया.

सुबह 5:00 बजे: ज्यादातर आग पर काबू पा लिया गया लेकिन इन कोशिशों के बावजूद ग्रेफाइट आग पकड़ गई. ग्रेफाइट की आग की वजह से रेडियोएक्टिव तत्व वातावरण में काफी ऊपर तक चले गए.

इस तरह चेरनोबिल पावर प्लांट में शुरू हुआ एक टरबाइन टेस्ट 56 मिनट के भीतर दुनिया की सबसे बड़ी परमाणु दुर्घटना में बदल गया.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह

संपादन: ए कुमार

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें