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अब कभी नहीं बनेंगे टाइपराइटर

२७ अप्रैल २०११

दुनिया की आखिरी टाइपराइटर कंपनी ने ठक ठक कर लिखने वाले टाइपराइटर को अलविदा कहने का एलान कर दिया है. भारतीय कंपनी गोदरेज एंड बोएस टाइटराइटरों की आखिरी खेप बेचने के बाद इन्हें बनाना हमेशा के लिए बंद कर देगी.

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तस्वीर: AP

दुनिया में इस वक्त टाइपराइटर सिर्फ एक ही कंपनी गोदरेज एंड बोएस बनाती है. यह भारतीय कंपनी भी अब टाइपराइटर के उत्पादन को बंद करने का एलान कर चुकी है. गोदरेज प्रिमा ने 2009 में आखिरी 500 टाइपराइटर बनाए थे. अब इन्हीं 500 टाइपराइटरों को बेचा जा रहा है. कंपनी के जनरल मैनेजर मिलिंद दुकले कहते हैं, ''2000 के दशक से ही कंप्यूटरों का प्रभाव बढ़ गया. हमारे अलावा सभी ने टाइपराइटरों का उत्पादन बंद कर दिया.'' इसके साथ ही कंपनी ने टाइपराइटर बनाने बंद कर दिए हैं.

1867 में अमेरिका में दुनिया का पहला कमर्शियल टाइपराइटर बना. इसके बाद तो लिखावट के क्षेत्र में क्रांति आ गई. लेखकों और सरकारी विभागों के लोगों का काम टाइपराइटर ने काफी हल्का कर दिया. धड़ाधड़ शब्द पर शब्द लिखे जाते रहे. लिखावट का आकार भी स्टैंडर्ड होने की वजह से अच्छी या खराब हैंड राइटिंग का फर्क कम होता चला गया. यह टाइपराइटर की ही देन थी कि भारत में सरकारी विभागों में स्टेनोग्राफर की हजारों नौकरियां निकलीं. टाइपिंग जानने वालों को ये नौकरियां मिलीं.

कंप्यूटर का की-बोर्ड बनाने में भी टाइपराइटर की अहम भूमिका रही. की-बोर्ड का मुख्य हिस्सा आज भी टाइपराइटर पर आधारित है. लेकिन कंप्यूटर के आने के साथ ही टाइपराइटर की भूमिका घटती चली गई और अब टाइपराइटर पूरी तरह दम तोड़ चुका है. इसकी ठक ठक करती आवाज फिर बीच में किर्रर.. के साथ पेज नीचे लाने का अंदाज अब बीते दिनों से धूल हटाने जैसी भावुक बात है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह

संपादन: ए कुमार