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जर्मनी में मशहूर कार पूलिंग अब अमेरिका में चलेगी

२१ सितम्बर २०११

कार पूलिंग यानी सफर का दूसरा नाम. जर्मनी में जब अक्सर लोगों को एक शहर से दूसरे शहर जाना होता है वह तो ऐसी सेवा का इस्तेमाल करते हैं जो सस्ती और आसान है.

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साझा सवारी और पैसों की बचततस्वीर: AP

मान लीजिए आपको जर्मनी के शहर कोलोन से बर्लिन जाना है. ट्रेन का किराया है लगभग 100 यूरो. लेकिन मिटफारगेलेगेनहाइट यानी कार पूलिंग के सहारे आप किसी शख्स की गाड़ी में बैठकर बर्लिन जा सकते हैं. यह बड़ा आसान है. अगर कोई अपनी कार लेकर बर्लिन जा रहा है और उसकी गाड़ी में जगह है तो वह मिटफारगेलेगेनहाइट की वेबसाइट पर जानकारी देता है. बर्लिन जाने वाले लोग वेबसाइट के जरिए उस शख्स से संपर्क करते हैं और सस्ते में बर्लिन तक का सफर करते हैं.

यह सेवा हवाई जहाज और ट्रेन से सफर करने के मुकाबले काफी सस्ती है. जर्मनी की सबसे बड़ी कार शेयरिंग वेबसाइट मिटफारगेलेगेनहाइट अब पूरे यूरोप में विस्तार कर रही है. यही नहीं कंपनी अमेरिका में भी इस चलन को बढ़ावा देने  जा रही है.

Logo carpooling
कार पूलिंग कंपनी का लोगोतस्वीर: carpooling.com

लेकिन ट्रैफिक से लबालब अमेरिकी सड़कों पर कंपनी के लिए सफलता आसानी से नहीं मिलेगी. साझा सवारी जर्मनी में लोकप्रिय है क्योंकि यह सफर करने वालों को पैसे और तेल बचाने का मौका देती है. एकदम अनजाने लोग भी इस सेवा का इस्तेमाल करते हैं. सवारी और ड्राइवर को जोड़ने वाली प्रमुख वेबसाइट का नाम मिटफारगेलेगेनहाइट है.

इस वेबसाइट की स्थापना एक दशक पहले हुई थी. कंपनी का कहना है कि उसके 20 लाख से ज्यादा सदस्य हैं. हाल ही में कंपनी ने आठ और यूरोपीय देशों में अपना विस्तार किया है. लेकिन कंपनी चलाने वाले बड़े बाजार पर नजर गड़ाए हुए हैं. कंपनी 2012 में अपनी सेवा अमेरिका में शुरू करने वाली है.

नाम का चक्कर

Tankstelle Auto Zapfsäule
दुनिया भर में महंगा तेलतस्वीर: Fotolia/Phototom

स्वाभाविक है कि कंपनी का नाम अमेरिका में कुछ और होगा. अमेरिकी लोगों के लिए एक जर्मन नाम का उच्चारण करना काफी मुश्किल होगा. 18 अक्षर जुड़ कर कंपनी का नाम मिटफारगेलेगेनहाइट बनता है. सर्च इंजन में भी इसे लिखना कठिन काम होगा. इस वजह से कंपनी ने एक डोमेन कार पूलिंग डॉट कॉम के नाम से खरीदा.

अमेरिका में ग्राहकों को अपनी तरफ खींचने के लिए कंपनी इस नाम का इस्तेमाल करेगी. अलग-अलग देशों में कंपनी की वेबसाइट के अलग नाम हैं. लेकिन नाम बदलने के अलावा भी कंपनी को विस्तार करने के लिए काफी मेहनत करनी होगी.

इलेक्ट्रॉनिक बिजनेस विश्लेषक मार्टिन गिल डॉयचे वेले से कहते हैं, "एक चुनौती दृष्टिकोण को विकसित करने की भी है जो सरल और समझदारी के अनुरूप हो."

इसका मतलब यह है कि स्थानीय भाषा, संस्कृति और भूगोल के अनुकूल होना होगा. कई बार तो यह भी बताना पड़ेगा कि साझा सवारी क्या है. कारपूलिंग डॉट कॉम के संस्थापक और प्रबंध निदेशक माइकल राइनिके कहते हैं, "स्पेन, इटली या फिर ग्रीस में तो इस चलन के बारे में पता भी नहीं है. " घरेलू बाजार से बाहर निकलने पर कंपनी को काफी सारे बदलाव करने पड़े. कई तौर पर कार पूलिंग पूरी तरह से जर्मनी के लिए अनुकूल है. यहां घनी आबादी है और तेज रफ्तार वाले हाईवे हैं जो मुफ्त हैं.

मुनाफे का राजमार्ग

कारपूलिंग वेबसाइट के जरिए आप मुफ्त में कार मालिक को खोज सकते हैं या फिर सवारी ढूंढने में पैसे नहीं लगते. कंपनी विज्ञापन, प्रीमियम सदस्यों और ट्रेवल एजेंट्स के जरिए मुनाफा कमाती है. 10 साल पुरानी यह कंपनी पहले मुनाफे में थी लेकिन अब विस्तार योजना और नए लोगों को नौकरी पर रखने के कारण कंपनी को मुनाफा नहीं हो रहा है. नई योजना और महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए कंपनी ने म्यूनिख में नया चमचमाता दफ्तर खोला है. 

कंपनी के मालिक राइनिके को दफ्तर में आने वाला कोई बाहरी शायद ही पहचान पाए. क्योंकि राइनिके और दूसरे कर्मचारियों की ही तरह लगते हैं. वह जवान हैं. टीशर्ट पहनकर ऑफिस में घूमते नजर आ जाएंगे. राइनिके कहते हैं कि कंपनी के कई पोर्टलों के जरिए लगभग छह लाख यात्राएं व्यवस्थित होती हैं.

अमेरिका का सपना

अमेरिकी बाजार में यूरोप के नए बाजारों से बिलकुल अलग चुनौती है. अमेरिका की बढ़ती आबादी के लिहाज से साझा सवारी का आइडिया अगर चल पड़ता है तो कंपनी को मुनाफा कमाने में ज्यादा समय नहीं लगेगा. जब भी तेल के दाम बढ़ते हैं तो राइनिके सबसे ज्यादा खुश होते हैं. उन्हें पता है कि लोग साझा सवारी की तरफ बढ़ेंगे और बाजारों की तुलना में अमेरिका का बाजार भौगोलिक दृष्टि से काफी विशाल है.

कंपनी की योजना है कि घनी आबादी वाले इलाकों में स्थानीय लोगों को साझा सवारी के बारे में बताया जाए. इसके अलावा एक और मुद्दा है भरोसे का. क्योंकि अनजाने अमेरिकी साथ सवारी करेंगे तो इसकी बहुत ज्यादा जरूरत होगी. राइनिके के पास इस चुनौती का भी हल है. उनके मुताबिक सोशल नेटवर्किंग साइट जैसे फेसबुक के जरिए विश्वसनीयता स्थापित की जा सकती है.

रिपोर्ट: मार्क गैरिसन / आमिर अंसारी

संपादन: वी कुमार

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