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समय से पहले पैदा होने पर ऑटिज्म का खतरा

१७ अक्टूबर २०११

वैज्ञानिक काफी समय से ऑटिज्म की वजह ढूंढते आए हैं. अब पता चला है कि बच्चों का समय से पहले जन्म होना एक वजह हो सकता है. लेकिन सामान्य जन्म वाले बच्चों में इसका होना अभी भी एक पहेली बना हुआ है.

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तस्वीर: DW

समय से पहले बच्चों के जन्म से कई तरह की बीमारियां होने का खतरा बना रहता है. गर्भ में शिशु के शरीर का पूरी तरह विकास होना बच्चे के स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है. एक नए शोध में पता चला है कि जिन बच्चों का समय से पहले जन्म हो जाता है या जिनका आकार और वजन जन्म के वक्त सामान्य से छोटा होता है उनमें ऑटिज्म का खतरा अधिक होता है. शोधकर्ताओं के अनुसार ऐसे बच्चों में ऑटिज्म का खतरा पांच गुना अधिक होता है.

कारण की तलाश

अमेरिका में दो दशकों तक चले इस शोध में 862 बच्चों की जांच की गई. इन बच्चों का जन्म न्यू जर्सी की तीन अलग अलग काउंटी में 1984 और 1987 के बीच हुआ. जन्म के वक्त इन बच्चों का वजन 500 और 2,000 ग्राम के बीच था. जन्म के समय एक स्वस्थ शिशु का वजन ढाई से चार किलो के बीच होना चाहिए. बच्चों के बड़े होने पर देखा गया कि इन में से पांच प्रतिशत को ऑटिज्म था. जबकि जिन बच्चों का स्वास्थ्य जन्म के समय सामान्य था उन में से केवल एक प्रतिशत में ही ऑटिज्म पाया गया.

14.12.2007 DW-TV Projekt Zukunft Autismus
तस्वीर: DW-TV

मुख्य शोधकर्ता जेनिफर पिंटो मार्टिन इस बारे में बताती हैं, "इन बच्चों की संज्ञात्मक दिक्कतों के आगे ऑटिज्म छुप सा जाता है. जितनी जल्दी इसकी पहचान हो सके बच्चे के लिए उतना ही अच्छा है, इस से उन्हें स्कूल और घर दोनों ही जगह मदद मिल सकती है." जेनिफर पिंटो मार्टिन यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिलवेनिया स्कूल ऑफ नर्सिंग के सेंटर फॉर ऑटिज्म एंड डेवेलपमेंटल डिसएबिलिटीज रिसर्च की अध्यक्ष हैं.

व्यव्हार पर असर

ऑटिज्म व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार को प्रभावित करता है. इससे प्रभावित व्यक्ति खुद में सिमटा रहता है और लोगों से संपर्क करने में हिचकिचाता है. एक ही काम को बार-बार दोहराना भी इसके लक्षणों में से एक है. अधिकतर माता पिता का ध्यान अपने बच्चों की तरफ तब जाता है जब बच्चे 2-3 साल की उम्र में ठीक तरह बोलना नहीं शुरू कर पाते या खेल में रुचि नहीं दिखाते. ऐसे बच्चे अधिकतर अकेले रहना पसंद करते हैं और सवाल का ठीक तरह जवाब नहीं दे पाते.

वैज्ञानिक आज तक ऑटिज्म की असली वजह नहीं ढूंढ पाए हैं. कुछ लोगों का मानना है कि बच्चों को दिए जाने वाले टीकों के कारण यह होता है, लेकिन वैज्ञानिक इस बात को निराधार मानते हैं. इस बीमारी का कोई इलाज भी नहीं है.

रिपोर्ट: एएफपी/ ईशा भाटिया

संपादन: आभा मोंढे

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