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भ्रूण नष्ट करने वाले स्टेम सेल पेटेंट पर यूरोप में रोक

१९ अक्टूबर २०११

यूरोपीय अदालत ने मूल कोषिका यानी स्टेम सेल की उन सभी प्रक्रियाओं के पेटेंट पर रोक लगा दी है जिनमें भ्रूण के नष्ट होने आशंका होगी. स्टेम सेल्स पर शोध कर रहे वैज्ञानिकों के लिए यह एक बड़ा झटका है.

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तस्वीर: AP

मंगलवार को यूरोपीय न्यायालय ने फैसला दिया है कि शोधकर्ता भ्रूण से निकाले गए मानव स्टेम सेल का पेटेंट नहीं करा पाएंगे यदि उससे मानव भ्रूण नष्ट हो. यूरोपीय कोर्ट ऑफ जस्टिस (ईसीजे) ने अपने फैसले में कहा है कि अगर मनुष्य के भ्रूण का उपयोग उपचार या फिर बीमारी के निदान के लिए किया जाता है तो इसका पेटेंट किया जा सकता है, लेकिन वैज्ञानिक शोधों के लिए स्टेम सेल्स का पेटेंट नहीं कराया जा सकता. जर्मन संघीय अदालत ने लक्सेम्बर्ग स्थित यूरोपीय अदालत से ग्रीनपीस की अपील पर फैसला देने का आग्रह किया था जिसमें ग्रीनपीस ने जर्मन वैज्ञानिक ओलिवर ब्र्यूस्ट्ले को पेटेंट देने के खिलाफ मुकदमा दायर किया था. उन्होंने एक ऐसी तकनीक विकसित की थी जिससे मानवीय स्टेम सेल से मस्तिष्क की नई कोशिकाएं बनाई जा सकती थीं. इससे पार्किंसंस या फिर मस्तिष्क की कोशिकाओं को नष्ट करने वाली दूसरी बीमारियों का इलाज किया जा सकता है.

Stammzellforscher und Neuropathologe Prof. Oliver Brüstle, Universität Bonn neben Koch
तस्वीर: Michael Lange

दशकों का काम

ओलिवर ब्र्यूस्ट्ले पहले ऐसे जर्मन वैज्ञानिक हैं जो देश में भ्रूण में पाई जाने वाली मूल कोषिकाओं पर शोध कर रहे हैं. उन्होंने जर्मनी में पढ़ाई कर काम करना शुरू किया और इसके बाद स्विट्जरलैंड और अमेरिका में भी काम किया. वह एरलांगन न्यूरेन्बर्ग यूनिवर्सिटी क्लीनिक में न्यूरोसर्जन थे. इसके अलावा वह रिकंस्ट्रक्टिव न्यूरोबायोलॉजी के पहले प्रोफेसर हैं, 2002 से वह इस पद पर हैं. इसके अलावा लाइफ एंड ब्रेन नाम की बायोमेडिकल कंपनी के संस्थापक और प्रमुख भी हैं. यह कंपनी मनुष्य के मस्तिष्क और अस्थि मज्जा का कृत्रिम उत्पादन करती है.

1999 से अब तक जो भी घटनाएं हुई हैं, उसके बावजूद यह आश्चर्य है कि वह अब भी अपने काम के बारे में बात करना चाह रहे हैं. 2000 में उन्होंने जर्मन रिसर्च फाउंडेशन को एक चिट्ठी भेजी. इस के बाद उन्हें खुद का गंभीरता से बचाव करना पड़ा. इतना कि उन्हें और उनके परिवार को पुलिस सुरक्षा में रखना पड़ा. ब्र्यूस्टल ने डॉयचे वेले से बातचीत में बताया, "मुझे अच्छी तरह से याद है कि जिस दिन मैंने मूल कोषिका से दिमाग की कोषिका बनाने के बारे में जर्मन रिसर्च फाउंडेशन को चिट्ठी लिखी, तब से मैं उनकी प्रतिक्रिया के बारे में रोमांचित था. क्या वह इसे स्वीकृत करेंगे या नहीं."

गंभीर मुद्दा

राजनीतिज्ञ, गिरजाघर के प्रतिनिधि, दार्शनिक और वैज्ञानिक उनके आवेदन के खिलाफ उठ खड़े हुए और मानव मर्यादा पर तेज बहस शुरू हो गई और साथ ही इस मुद्दे पर भी कि जीवन की शुरुआत कब होती है. कृत्रिम रूप से गर्भ धारण की तकनीक इन विट्रो फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के बाद बचे हुए भ्रूण को नष्ट कर देने पर भी बहस शुरू हुई और बनाए गए स्टेम सेल्स को जर्मनी लाए जाने पर भी. ब्र्यूस्टेल कहते हैं, "मेरा मानना है कि नए इलाज विकसित करना हमारी जिम्मेदारी है, बजाए इसके कि हम उन कोषिकाओं को बस फेंक दें. सेल लाइन्स बनाना सही है क्योंकि नई तकनीक विकसित करने के लिए इनका इस्तेमाल हो सकता है."

शुरुआती दौर

ब्र्यूस्ट्ले को पहली बार स्टेम सेल की क्षमता के बारे में तब पता चला जब वह 1990 में अमेरिका गए. राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान में उन्होंने जानवरों की मूल कोषिकाओं पर प्रयोग किया, तब से वह भविष्य की तकनीक के बारे में विचार कर रहे हैं. मूल कोषिकाओं की संख्या बढ़ाना ताकि उनसे मस्तिष्क की कोशिकाएं तैयार की जा सकें और फिर इन नई कोषिकाओं को उन मरीजों के मस्तिष्क में डाला जा सके जो न्यूरोडिजनरेटिव बीमारियों से पीड़ित हैं. इस प्रणाली के विकास में महत्वपूर्ण मौका तब आया जब 1998 में पहली बार अमेरिकी वैज्ञानिक जेम्स थॉम्पसन ने मनुष्य की मूल कोषिकाओं को अलग करने में सफलता पाई. "मेरे पास एक योजना थी और मैंने थॉम्पसन को संदेश भेजा कि मैं उनसे मिलना चाहता हूं." थॉम्पसन ने जल्दी ही जवाब दिया और दोनों ने स्टेम सेल्स से मस्तिष्क कोषिकाएं बनाने की शुरुआत की. "उस समय यह बहुत ही रोमांचक था. हमने साथ में पेपर लिखे और कई साल संपर्क में रहे."

यूरोप में रोक

तब से अब तक बहुत बदलाव हुए हैं. स्टेम सेल पर शोध के महत्व को पूरी दुनिया जान चुकी थी और कुछ गुस्सा खत्म हो गया था.

ब्र्यूस्ट्ले जर्मनी में रहे और लाइफ एंड ब्रेन बायोमेडिकल कंपनी की स्थापना की ताकि विज्ञान और उसके प्रयोग के बीच दूरी खत्म की जा सके. 2002 में उन्हें बॉन यूनिवर्सिटी में रिकंस्ट्रक्टिव न्यूरोबायोलॉजी का प्रोफेसर बनाया गया. "अगले दशक में मैं चाहता हूं कि तंत्रिका तंत्र की बीमारियों को स्टेम सेल का इस्तेमाल करके ठीक हो सकें." उन्होंने यह भी बताया कि स्टेम सेल तकनीक का फायदा दवा कंपनियों को भी होगा. लेकिन मंगलवार के फैसले के बाद यूरोप में इस काम की गति थोड़ी धीमी हो जाएगी. "इसका मतलब है कि आधारभूत शोध तो यूरोप में हो सकेगा लेकिन इन शोधों से होने वाला विकास यूरोप में नहीं हो सकेगा. इसका मतलब है कि यूरोपीय वैज्ञानिक पूरी तैयारी करेंगे लेकिन इसका फल अमेरिका या एशिया ले लेगा."

रिपोर्ट: मार्लिस शाउम/आभा एम

संपादन: महेश झा