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होलोकॉस्ट डे: नवनाजी खतरा रहा बहस का मुद्दा

२७ जनवरी २०१२

जर्मनी आउश्वित्स यातना शिविर से यहूदी कैदियों की आजादी के सालगिरह को याद कर रहा है. लेकिन हाल ही में नवनाजी गुट के आतंक से दक्षिणपंथी हिंसा जर्मनी के लिए नई चुनौती बन गई है.

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साहित्य आलोचक राइष-रानित्स्कीतस्वीर: picture-alliance/dpa

"उनका एक ही मकसद था, एक ही उद्देश्य - मौत." इन शब्दों के साथ जर्मन साहित्य आलोचक मार्सेल राइष-रानित्स्की ने एक बार फिर नाजी जर्मनी में यहूदियों की यातना को चिंता का विषय बताया. 27 जनवरी 1945 को सोवियत रूस के सैनिकों ने अब के पोलैंड में स्थित आउश्वित्स यातना शिविर से वहां कैद यहूदियों को आजाद किया था. दुनिया भर में 27 जनवरी को इसलिए याद किया जाता है. जर्मनी 1996 से इस दिन को स्मृति दिवस के रूप में मनाता है.

Auschwitz Tor Arbeit macht frei
आउश्वित्सतस्वीर: picture alliance / dpa

संसद में हुई सभा में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए पोलिश मूल के राइष-रानित्स्की ने हिटलर के शासन के दौरान यूरोपीय यहूदियों की मौत और उनपर जुल्मो सितम के बारे में बात की. 91 साल के राइष-रानित्स्की एक यहूदी परिवार से हैं और उन्होंने खुद वॉरसा के यहूदी घेटो में वक्त गुजारा है. वे वॉरसा घेटो के विद्रोह को दबाएजाने के बाद जीवित बच गए लोगों में शामिल हैं. रानित्स्की ने अपनी यातना को याद करते हुए नाजियों के बारे में कहा, नाजियों ने उस वक्त यहूदी नागरिकों से कहा था कि वे उन्हें सिर्फ दूसरी जगह भेजना चाहते हैं. लेकिन इस बहाने लाखों यहूदियों को यातना शिविरों में बंद कर उन्हें व्यवस्थित तरीके से मारा गया.

आउश्वित्स यातना शिविर में कैद हजारों यहूदियों की मौत को याद कर रहे बुंडेस्टाग के अध्यक्ष नॉर्बर्ट लामेर्ट ने कहा, "यह लोग बहादुरी की मिसाल हैं." जर्मन संसद के निचले सदन बुंडेस्टाग में शुक्रवार को आयोजित बैठक में चांसलर अंगेला मैर्केल और राष्ट्रपति क्रिस्टियान वुल्फ भी शामिल हुए.

हालांकि इस बात को अब 60 साल हो गए हैं और जर्मनी में इस सिलसिले में बहस भी जारी है, लेकिन हाल ही में प्रकाशित एक सर्वेक्षण के मुताबिक अब भी 20 प्रतिशत जर्मन यहूदी विरोधी भावनाएं पाल रहे हैं. जर्मन संसद के निचले सदन के प्रमुख लामेर्ट का कहना है कि यह 20 प्रतिशत भी बहुत ज्यादा है. जर्मन संसद ने इस सिलसिले में एक स्वतंत्र समिति का गठन किया था जिसका काम यहूदियों को लेकर लोगों का रवैया जानना था.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

इतिहासकार पेटर लोंगेरिश का कहना है कि वर्तमान स्थिति में यहूदी विरोधी भावना शायद हिंसा के रूप में जाहिर न हो, लेकिन यह लोगों के रुख में दिखाई देता है. पिछले ही साल पूर्वी जर्मनी के शहर त्स्विकाउ में एक नवनाजी गुट का पर्दाफाश हुआ जिसे 2000 से लेकर 2007 के बीच तुर्की और ग्रीस के नौ प्रवासियों और एक महिला पुलिसकर्मी की मौत का दोषी माना जा रहा है.

लोंगेरिश मानते हैं, "इसमें हैरान करने वाली बात है कि हम अब तक सोच रहे थे कि नई पीढ़ी के साथ जर्मनी में इस तरह की भावना पूरी तरह खत्म हो जाएगी. लेकिन ऐसा नहीं है. यह रवैया नए नए रूप लेकर हमारे सामने आता है." जर्मन सांसद अब इस बात पर विचार कर रहे हैं कि समाज में यहूदी विरोधी और नस्लवादी भावनाओं को किस तरह खत्म किया जाए.

रिपोर्टः डीपीए, रॉयटर्स/एम गोपालकृष्णन

संपादनः महेश झा

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