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श्रीलंका युद्ध अपराध मामले पर जिनेवा में चर्चा

१५ मार्च २०१२

श्रीलंका में गृहयुद्ध खत्म होने के तीन साल बाद भी युद्ध के अंतिम चरण में हुए अपराधों को ले कर कोई फैसला नहीं आया है. अब जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र इस पर चर्चा कर रहा है.

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कैबिनेट मंत्री महिंदा समरसिंघेतस्वीर: picture-alliance/dpa

श्रीलंका के सांसदों ने संयुक्त राष्ट्र से मांग की है कि वह सरकार पर दबाव बनाएं ताकि इस सिलसिले में जांच तेज हो सके और देश में एक बार फिर से गृहयुद्ध जैसी स्थिति ना खड़ी हो जाए. वहीं अमेरिका संयुक्त राष्ट्र के सामने एक प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहा है जिसके चलते श्रीलंका सरकार पर जांच के लिए दबाव बनाया जा सके. अमेरिका इस महीने के अंत तक इस प्रस्ताव को पारित करा लेना चाहता है. संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की राजदूत एलीन डोनाहो ने कहा, "मैंने जब श्रीलंका की राजदूत से बात करनी चाही तो उन्होंने कहा, उन्हें (श्रीलंका के लोगों को) आपके कदम पसंद नहीं, वे आपसे नफरत करते हैं." डोनाहो ने कहा कि इस के बावजूद भी "हमने यह बात साफ की है कि हम प्रस्ताव लाएंगे और उसे जरूर पारित कराएंगे."

Eileen Donahoe
अमेरिका की राजदूत एलीन डोनाहोतस्वीर: Eric Bridiers

अमेरिका को समर्थन

तमिल नेशनल अलायंस के नेता राजावोराथायम संपंथन ने अमेरिकी प्रस्ताव का समर्थन किया है. गुरुवार को जारी एक बयान में उन्होंने कहा कि सरकार ने अब तक जांच की तरफ कोई रुचि नहीं दिखाई है. संपंथन के अनुसार सरकार ने कई बार संयुक्त राष्ट्र को वादे किए लेकिन उन पर अमल नहीं किया और अमेरिका और भारत जैसे देशों से दबाव के बावजूद अब तक इस मामले में कोई कदम नहीं उठाया गया है.

संपंथन के बयान में सेना पर भी आरोप लगाए गए हैं. बयान में कहा गया है कि गृहयुद्ध खत्म होने के बाद भी सेना देश में अल्पसंखयकों के साथ बुरा व्यवहार करती है. बयान में कहा गया है, "गृहयुद्ध के खत्म होने के बाद श्रीलंका में शांति लाने की कोशिशें हाथ से निकलते हुए दिख रही हैं. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार संगठन को जल्द से जल्द कोई ठोस कदम उठाना होगा ताकि अतीत में हुई त्रासदी को दोहराने से रोका जा सके."

सरकार की दलील

यह बयान ऐसे समय में आया है जब श्रीलंका में सिंहली समुदाए के नेता देश भर में अमेरिकी प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार लिट्टे के खिलाफ लड़ाई के आखिरी पांच महीनों में कम से कम 7000 नागरिकों की जान गई. इन्हें युद्ध अपराधों में गिना जा सकता है और इसमें सरकार और लिट्टे दोनों पर आरोप लगाए गए हैं. सरकार ने माना है कि गृहयुद्ध के अंतिम महीनों में सैनिकों के हाथों नागरिकों की जान गई लेकिन इन्हें युद्ध अपराध मानने से इनकार किया है. सरकार का कहना है कि सेना ने वही किया जो जरूरी था और जानबूझ कर मासूम नागरिकों को नुकसान नहीं पहुंचाया.

श्रीलंका के दल के साथ जिनेवा पहुंचे कैबिनेट मंत्री महिंदा समरसिंघे का कहना है कि सरकार जरूरी कदम ले रही है और अगर इस बारे में अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाया गया तो हालात बिगड़ सकते हैं. समरसिंघे सौ सदस्यों के दल के साथ पिछले महीने जिनेवा पहुंचे. फरवरी के अंत में उन्होंने संघ के सामने कहा, "श्रीलंका खुद जानता है कि उसे इस मामले से सबसे अच्छी तरह कैसे निपटना है ताकि पूरे देश की जनता को इसका फायदा मिल सके."

रिपोर्ट: एपी, एएफपी/ईशा भाटिया

संपादन: आभा मोंढे