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गाउक बने जर्मनी के राष्ट्रपति

१८ मार्च २०१२

साम्यवादी पूर्वी जर्मनी के मानवाधिकार कार्यकर्ता और पूर्व पादरी योआखिम गाउक यूरोपीय संघ के अहम देश के राष्ट्रपति बन गए है. गाउक का राष्ट्रपति बनना चांसलर अंगेला मैर्केल के लिए राजनीतिक सिरदर्द भी हो सकता है.

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Der neue Bundespräsident Joachim Gauck (2.v.l) bekommt am Sonntag (18.03.2012) Blumen von Bundeskanzlerin Angela Merkel (CDU) nach seiner Wahl durch die Bundesversammlung im Reichstag in Berlin. 1240 Wahlleute bestimmten den neuen Bundespräsidenten. Foto: Kay Nietfeld dpa +++(c) dpa - Bildfunk+++
Bundespräsidentenwahl 2012 Bundespräsident Joachim Gauckतस्वीर: picture-alliance/dpa

72 साल के गाउक को राष्ट्रीय संसद में कुल 991 वोट मिले जबकि उनके प्रमुख प्रतिद्वंद्वी और नाजी विरोधी अभियान चला रहे बीटे क्लार्सफेल्ड को महज 126 वोटों से संतोष करना पड़ा. जर्मनी के लोगों को उम्मीद है कि 1989 में बर्लिन दीवार गिराने के लिए शांतिपूर्ण विरोध का नेतृत्व करने वाले गाउक राष्ट्रपति पद की गरिमा को फिर से बहाल करेंगे. सबसे कम कार्यकाल वाले उनसे पहले के राष्ट्रपति क्रिस्टियान वुल्फ के दौर में इस कुर्सी पर आर्थिक गड़बड़ियों के धब्बे लग गए.

जर्मन राष्ट्रपति पद की शपथ लेन के बाद गाउक ने सांसदों से कहा, "मैं एक बात का वादा कर सकता हूं और वो यह कि आपने आज जो मुझे जिम्मेदारी सौंपी है उसे पूरा करने में अपनी सारी ताकत और पूरा मन लगा दूंगा."

सभी बड़ी पार्टियों का समर्थन मिलने के बाद उनकी जीत में तो कोई शंका थी ही नहीं. यहां तक कि चांसलर मैर्केल की मध्य दक्षिणपंथी सीडीयू पार्टी ने भी अपना हाथ उनके कंधे पर रख दिया. हालांकि कुछ राजनीतिक विश्लेषक उनके चुनाव को मैर्केल के लिए बहुत सहज नहीं मान रहे हैं. वैसे तो जर्मन राष्ट्रपति का पद एक तरह से बस दिखावे के राष्ट्र प्रमुख का है लेकिन फिर भी वह जर्मन राजनीति में चांसलर मैर्केल के प्रभुत्व को चुनौती दे सकते हैं.

Bundespräsidentenwahl 2012 Bundespräsident Joachim Gauck
तस्वीर: picture-alliance/dpa

मैर्केल ने भी आधे मन से ही गाउक को समर्थन दिया है. अपने गठबंधन के उदारवादी सहयोगी फ्री डेमोक्रैट्स के विपक्षी पार्टियों के साथ मिल कर क्रिस्टियान वुल्फ को हटाने के लिए गाउक का समर्थन करने के बाद मैर्केल के पास और कोई रास्ता बचा नहीं था. वुल्फ तो सीडीयू के पूर्व सांसद रहे है लेकिन गाउक का किसी राजनीतिक दल से कोई सीधा जुड़ाव नहीं है. हालांकि विवादास्पद मुद्दों पर किसी सधे हुए उपदेशक की तरह मन की बात कहने वाले के रूप में उनकी पहचान सब ओर है.

लोगों को प्रिय हैं गाउक

शनिवार को जारी एक ओपिनियन पोल के नतीजे बताते हैं कि योआखिम गाउक को जर्मनी की 80 फीसदी जनता पसंद करती है. हालांकि देश की दो तिहाई जनता का कहना है कि उनकी सोच में गाउक देश की राजनीतिक पार्टियों के लिए एक "असहज" राष्ट्रपति होंगे. जर्मनी के राष्ट्रपति के पास देश की कार्यपालिका में सीमित अधिकार हैं लेकिन उससे देश को नैतिक नेतृत्व देने की उम्मीद की जाती है. इस हिसाब से इस पद पर गाउक का होना एक अच्छा संदेश देता है.

जर्मनी के सबसे ज्यादा बिकने वाले अखबार बिल्ड के रविवार संस्करण में कहा गया है, "संघीय गणराज्य के राष्ट्रपति को हमारे देश की आत्मा का संरक्षक होना जरूरी है." बिल्ड ने 2010 में राष्ट्रपति पद की दौड़ में उनकी उम्मीदवारी का समर्थन किया था.

चांसलर मैर्केल और राष्ट्रपति गाउक दोनों जर्मनी के पूर्वी हिस्से से आते हैं. मैर्केल के पिता भी पादरी थे. दोनों का दावा है कि उनके बीच अच्छे रिश्ते हैं लेकिन मैर्केल ने 2010 में उनकी बजाए वुल्फ को राष्ट्रपति पद पर बिठाया.

गाउक की जिंदगी पर शीत युद्ध के दौर का गहरा असर है. जब वो 11 साल के थे तभी उनके पिता को साइबेरियाई गुलाग में कथित रूप से जासूसी के लिए भेजा गया और वो चार साल तक नहीं लौट सके. साम्यवाद खत्म होने और जर्मनी के एकीकरण के बाद गाउक ने पूर्वी जर्मनी की कुख्यात खुफिया पुलिस स्तासी के दस्तावेजों की पड़ताल की और उनके गुनाहों को सामने लाकर लोगों के दिल में जगह बनाई.

संसद के निचले सदन बुंडेसटाग के स्पीकर नॉर्बर्ट लैमर्ट ने उम्मीद जताई है कि गाउक अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे. साथ ही होर्स्ट कोएलर और क्रिस्टियान वुल्फ के जल्दी जल्दी पद से हटने के कारण बने अस्थिरता के माहौल को भी खत्म करने में बड़ी भूमिका निभाएंगे. जर्मन जनता भी उनसे यही उम्मीद लगाए बैठी है.

रिपोर्टः रॉयटर्स/एन रंजन

संपादनः ए जमाल

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