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मोटापे, बेचैनी की वजह रासायनिक दवाएं

२२ मई २०१२

ऑटिज्म, मोटापा और बेचैनी से लोगों को छुटकारा मिल सकता है. लेकिन उसके लिए वैज्ञानिकों समझना होगा कि रासायनिक दवाओं के छिड़काव का बिमारियों से क्या संबंध है.

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तस्वीर: Reuters

अमेरिका की नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस इसके लिए एक प्रयोग किया. एक गर्भवती चुहिया को रासायनिक छिड़काव वाली फसल के संपर्क में लाया गया. नतीजों के विश्लेषण से साफ हुआ है कि तीसरी पीढ़ी के चूहों में इन बीमारियों जैसे लक्षण पाए गए.

अब वैज्ञानिक ये समझने में जुटे हैं कि क्या इस प्रयोग के जरिए इंसान में मोटापे, बेचैनी और ऑटिज्म का कारण समझा जा सकता है.

यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के डेविड क्र्यू का कहना है, "हम लोग रासायानिक क्रांति के बाद की तीसरी पीढी है. लोगों में मानसिक बीमारियां बढ़ रही हैं. साफ है कि इसका कोई न कोई संबंध है."

Auch Tiere werden immer dicker
तस्वीर: dpa

प्रयोग के लिए वैज्ञानिकों ने उन चूहों की तीसरी पीढ़ी को चुना जिनके पूर्वज रासायनिक दवाओं के संपर्क में आ चुके थे. उन चूहों में टेस्टॉसटेरॉन नाम के हार्मोन का रिसाव ज्यादा हुआ.

वैज्ञानिकों ने गर्भवती चुहिया का विंक्लोजोलीन नाम के एक रासायनिक दवा से संपर्क कराया जो कि आमतौर पर फल और सब्जियों पर छिड़की जाती है. इस दवा का असर हार्मोन्स के रिसाव पर होता है. और कई पीढियों तक बना रहता है.

वैज्ञानिकों ने रासायनिक दवाओं का सामाजिक व्यवहार पर पड़ने वाले असर का भी आकलन किया है. जिन चूहों के पूर्वज रासायनिक दवाओं के संपर्क में आ चुके थे.

वैज्ञानिकों का मानना है कि रासायनिक दवाओं के संपर्क में आने से अनुवांशिक बदलाव आ जाता है. स्किनर कहते हैं, "पूर्वजों का हमारे मस्तिष्क पर असर पड़ता है और आप तनाव पर अलग तरह की प्रतिक्रिया देते हैं. हमें पता नहीं था कि तनाव के बारे में प्रतिक्रिया पूर्वजों से आती है."

वैज्ञानिक कहते हैं कि इस तरह के प्रयोग का मकसद इंसान पर खतरे का आंकलन करना नहीं बल्कि उस प्रक्रिया का पता लगाना है जिससे ये नुकसान होता है.

वीडी/एएम (एएफपी)

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