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गरीब इसरो की बड़ी सफलताएं

९ सितम्बर २०१२

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी, इसरो ने अपना 100वां अंतरिक्ष अभियान सफलता के साथ पूरा किया है. 2016 तक भारत अंतरिक्ष में अपना एस्ट्रोनॉट भेजना चाहता है. अंतरिक्ष कार्यक्रम का पैसा भारत में गरीबों के काम आ सकता है क्या?

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तस्वीर: AP

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की जमीर को भी शायद यही बात कचोट रही है. भारत के 100वें अंतरिक्ष मिशन के मौके पर उन्होंने कहा, "कई बार सवाल पूछे जाते हैं कि भारत जैसा गरीब देश अंतरिक्ष कार्यक्रम पर खर्च कर सकता है कि नहीं और क्या इसमें खर्च किए गए पैसे कहीं और लगाए जा सकते हैं या नहीं. " प्रधानमंत्री के मुताबिक यह सवाल पूछने वाले लोग भूल रहे हैं कि एक देश का विकास उसकी तकनीकी प्रगति पर निर्भर करता है. संयुक्त राष्ट्र की विकास सूची में भारत 187 देशों में से 134वें स्थान पर है. इस साल हुए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि भारत में पांच साल की उम्र से नीचे 42 फीसदी बच्चे कुपोषण का शिकार हैं.

आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से पीएसएलवी सी 21 रॉकेट के साथ दो विदेशी उपग्रहों को भेजा गया है. भारत ने सितंबर 2009 में चंद्रयान1 को अंतरिक्ष में भेजा था. इससे चांद पर पानी का भी पता लगा. 2010 दिसंबर में एक प्रक्षेपण नाकाम रहा और रॉकेट बंगाल की खाड़ी में जा गिरा.

इसरो के प्रमुख उडिपी रामचंद्र राव ने कहा कि इसरो का कार्यक्रम शोध पर केंद्रित है और वह कुछ ऐसे खोज करना चाहता है जिससे भारत की आर्थिक जरूरतों को पूरा किया जा सके. उन्होंने कहा कि 1975 से अब तक बहुत कम पैसों के बावजूद इसरो बहुत सफल रही है. 1983 में इसरो ने दुनिया का सबसे बड़ा रिमोट सेंसिंग और संपर्क उपग्रहों का नेटवर्क बनाया. इसरो के उपग्रह मौसम की जानकारी, पानी संसाधनों की जानकारी और आपदाओं के लिए जानकारी इकट्ठा करने के लिए लगाए गए हैं.

इन सफलताओं के बावजूद इसरो को अपने काम के लिए बहुत पैसे नहीं मिलते हैं. सालाना 1.1 अरब डॉलर का बजट बाकी देशों के मुकाबले बहुत ही कम है लेकिन फिर भी भारत जल्द ही एक उपग्रह मंगल ग्रह भेजना चाहता है.

एमजी/एनआर(पीटीआई, डीपीए)

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